बीजेपी में पहले ठाकुर विधायकों की बैठक और अब ब्राह्मण विधायकों की बैठक ने पार्टी के भीतर जातीय संतुलन को लेकर हलचल बढ़ा दी

उत्तर प्रदेश में बीजेपी के अंदर इन दिनों जातियों को लेकर हलचल तेज है। पहले ठाकुर विधायकों की बैठक हुई और अब हाल ही में ब्राह्मण विधायकों ने भी अलग से बैठक की। इसके बाद राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गई है कि कहीं पार्टी के अंदर ठाकुर और ब्राह्मण के बीच खींचतान तो नहीं बढ़ रही।
दरअसल, ब्राह्मण विधायक यह महसूस कर रहे हैं कि सरकार और संगठन में उनकी बात पहले जैसी नहीं सुनी जा रही। उन्हें लगता है कि फैसलों में उनकी भूमिका कमजोर हो रही है। इसी वजह से उन्होंने आपस में बैठकर अपनी स्थिति पर चर्चा की।
आबादी के अनुपात में
ब्राह्मण: 10–11%
ठाकुर: 6–7%
लेकिन प्रतिनिधित्व में:
विधानसभा: 42 ब्राह्मण बनाम 45 ठाकुर
विधान परिषद: 14 ब्राह्मण बनाम 23 ठाकुर
यानी आबादी ज्यादा होने के बावजूद ब्राह्मणों का प्रतिनिधित्व अपेक्षाकृत कम है।
बीजेपी के लिए यह मुद्दा इसलिए भी अहम है क्योंकि यूपी में ठाकुर और ब्राह्मण दोनों ही पार्टी के पुराने और मजबूत वोटर रहे हैं। आबादी के हिसाब से देखें तो ब्राह्मणों की संख्या ठाकुरों से ज्यादा है, लेकिन सत्ता में उनकी हिस्सेदारी कम दिखाई देती है। विधानसभा और विधान परिषद – दोनों जगह ठाकुरों के विधायक और सदस्य ब्राह्मणों से ज्यादा हैं।
योगी सरकार पर पहले भी यह आरोप लगते रहे हैं कि ब्राह्मण समाज की अनदेखी हो रही है। विपक्षी दल, खासकर समाजवादी पार्टी, इस मुद्दे को बार-बार उठाती रही है और सरकार पर ठाकुर समाज को ज्यादा संरक्षण देने का आरोप लगाती है।
ठाकुर विधायकों की बैठक को पार्टी ने एकजुटता के रूप में देखा, लेकिन ब्राह्मण विधायकों की बैठक पर पार्टी नेतृत्व ने नाराजगी जताई। इससे यह संकेत मिलता है कि बीजेपी नहीं चाहती कि जातीय असंतोष खुलकर सामने आए।
कुल मिलाकर, बीजेपी के भीतर यह चिंता बढ़ रही है कि अगर अपने ही कोर वोट बैंक में असंतोष बढ़ा तो आने वाले चुनावों में नुकसान हो सकता है। अब पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह ठाकुर और ब्राह्मण दोनों को साथ लेकर चले और सत्ता व संगठन में संतुलन बनाए रखे।




