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विदेश में राहुल के सवाल, देश में सियासी बवाल- मोदी के ‘विकसित भारत’ विज़न बनाम विपक्ष का नैरेटिव

विदेश में राहुल के सवाल, देश में सियासी बवाल- मोदी के ‘विकसित भारत’ विज़न बनाम विपक्ष का नैरेटिव
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

नई दिल्ली।

विदेश दौरे के दौरान कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा भारत के लोकतांत्रिक ढांचे, चुनावी प्रक्रिया और संवैधानिक संस्थाओं की भूमिका को लेकर उठाए गए सवालों से देश की राजनीति में तीखी बहस छिड़ गई है। इन बयानों को लेकर जहां कांग्रेस उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और वैश्विक लोकतांत्रिक संवाद का हिस्सा बता रही है, वहीं भारतीय जनता पार्टी ने इसे भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंचाने वाला कदम करार दिया है।

राहुल गांधी का तर्क है कि देश में विपक्ष के लिए राजनीतिक स्पेस सीमित हो रहा है और लोकतंत्र की मजबूती के लिए निष्पक्ष चुनाव तथा स्वतंत्र संस्थाएं अनिवार्य हैं। इस पर सत्तापक्ष ने स्पष्ट किया कि भारत एक सशक्त लोकतंत्र है, जहां चुनाव आयोग, न्यायपालिका और संसद संवैधानिक दायरे में स्वतंत्र रूप से कार्य कर रही हैं।

भाजपा का कहना है कि आंतरिक राजनीतिक मुद्दों को विदेशी मंचों पर उठाना अनुचित है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार ‘विकसित भारत’ के लक्ष्य को केंद्र में रखकर आगे बढ़ने का दावा कर रही है। सरकार के अनुसार आर्थिक सुधार, डिजिटल इंडिया, बुनियादी ढांचे का विस्तार, स्टार्ट-अप संस्कृति और वैश्विक कूटनीति में भारत की बढ़ती भूमिका इस विज़न की ठोस आधारशिला हैं। सत्तापक्ष का तर्क है कि विपक्ष के आरोप इन उपलब्धियों से ध्यान भटकाने की राजनीतिक रणनीति हैं।

भाजपा ने कांग्रेस पर यह आरोप भी लगाया कि देश में अपेक्षित जनसमर्थन न मिलने पर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर लोकतंत्र और चुनावों को लेकर नैरेटिव गढ़ा जा रहा है। इसे राजनीतिक असफलता से उपजा कदम बताया गया।

वहीं कांग्रेस का कहना है कि सवाल उठाना लोकतंत्र का मूल तत्व है और इससे सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद आगामी चुनावी माहौल को और अधिक ध्रुवीकृत कर सकता है। एक ओर विकास, राष्ट्रवाद और स्थिरता का दावा है, तो दूसरी ओर लोकतंत्र, संस्थागत संतुलन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर जोर।

स्पष्ट है कि राहुल गांधी के विदेशी मंच से दिए गए बयानों और सरकार की कड़ी प्रतिक्रिया ने सियासी तापमान बढ़ा दिया है, और यह बहस आने वाले समय में संसद से लेकर सार्वजनिक विमर्श तक केंद्र में बनी रह सकती है।

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