चौबेपुर में बुजुर्गों के लिए गांव स्तर पर सामुदायिक स्वास्थ्य की जरूरत न्यूरोलॉजी शिविर में डॉ. विजय नाथ मिश्रा ने ब्रेन हेमरेज, लकवा और मिर्गी पर रखी सशक्त बात

रिपोर्ट : अनुराग तिवारी
वाराणसी, 19 दिसम्बर 2025।
चौबेपुर क्षेत्र के सुँगुलपुर गांव में आयोजित मुफ्त न्यूरोलॉजी स्वास्थ्य शिविर केवल इलाज तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसने ग्रामीण समाज में बुजुर्गों की सुरक्षा, जागरूकता और सामूहिक जिम्मेदारी के सवाल को भी मजबूती से सामने रखा। शिविर में बीएचयू के वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने ब्रेन हेमरेज, लकवा और मिर्गी जैसे गंभीर तंत्रिका रोगों पर विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि सही जानकारी, समय पर इलाज और गांव स्तर पर संगठित प्रयास ही इन बीमारियों से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।
त्र्यम्बक प्रांगण स्थित शिव मंदिर परिसर में शुक्रवार दोपहर आयोजित इस शिविर में आसपास के ग्रामीण इलाकों से बड़ी संख्या में लोग पहुंचे। दोपहर तीन बजे से शुरू हुए शिविर में कुल 75 मरीजों की जांच, परामर्श और काउंसलिंग की गई। मरीज अपने साथ पुरानी जांच रिपोर्ट और चिकित्सकीय पर्चे लेकर आए, जिससे इलाज संबंधी सलाह अधिक सटीक और उपयोगी रही। वाचस्पति उपाध्याय और पुष्कर जी द्वारा निशुल्क दवाइयों का वितरण किया गया, जबकि यश और रुद्र ने रजिस्ट्रेशन और प्रारंभिक जांच की जिम्मेदारी संभाली।
इस शिविर का आयोजन प्रसिद्ध जीन विज्ञानी प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे के प्रयासों से किया गया। क्षेत्र में न्यूरोलॉजी सेवाओं की सीमित उपलब्धता को देखते हुए यह पहल ग्रामीणों के लिए बेहद राहत भरी साबित हुई। स्थानीय लोगों के अनुसार चौबेपुर क्षेत्र में यह पहली बार था, जब न्यूरोलॉजी ओपीडी गांव स्तर पर आयोजित हुई।
शिविर को संबोधित करते हुए प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने बताया कि ठंड के मौसम में बुजुर्गों में ब्रेन हेमरेज और लकवे का खतरा बढ़ जाता है। हाई ब्लड प्रेशर, बढ़ती उम्र, अनियमित दिनचर्या और नशे की आदतें इस जोखिम को और गंभीर बना देती हैं। उन्होंने कहा कि ब्रेन हेमरेज या लकवा किसी भी परिवार के लिए अचानक आने वाला संकट होता है, जिसमें इलाज, देखभाल और आर्थिक बोझ एक साथ सामने आता है, खासकर तब जब मरीज ग्रामीण या दूरस्थ क्षेत्र में रहता हो।
उन्होंने बुजुर्गों के लिए गांव और मोहल्ला स्तर पर सक्रिय समूह बनाने की आवश्यकता पर विशेष जोर दिया। उनका कहना था कि बुजुर्गों का अकेलापन और उपेक्षा आज की बड़ी सामाजिक समस्या है। यदि गांव में संगठित समूह हों, तो नियमित स्वास्थ्य निगरानी, दवाइयों की समय पर व्यवस्था और आपात स्थिति में त्वरित मदद संभव हो सकती है। ऐसे समूह शुरुआती समय में सही निर्णय लेने में भी अहम भूमिका निभा सकते हैं, जो कई बार जीवन रक्षक साबित होता है।
प्राथमिक देखभाल को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि बेहोश मरीज को न तो खाना देना चाहिए और न ही पानी। मरीज को अस्पताल ले जाते समय करवट देकर रखना जरूरी है। आवश्यकता पड़ने पर नाक के माध्यम से तरल देना जीवन बचाने में सहायक हो सकता है। उन्होंने कहा कि संयम, धैर्य, नियमित फिजियोथेरेपी और चिकित्सक की सलाह के अनुसार दवाइयों के निरंतर सेवन से लकवे के मरीजों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार संभव है और यह कम खर्च में भी किया जा सकता है।
मिर्गी को लेकर समाज में फैली भ्रांतियों पर भी प्रोफेसर मिश्रा ने खुलकर बात की। उन्होंने कहा कि मिर्गी कोई अभिशाप या रहस्यमयी बीमारी नहीं, बल्कि एक सामान्य न्यूरोलॉजिकल रोग है। झाड़-फूंक, तंत्र-मंत्र और सामाजिक प्रताड़ना जैसी सोच न केवल अमानवीय है, बल्कि मरीज के जीवन को और जोखिम में डालती है। मिर्गी के लगभग 85 प्रतिशत मरीज नियमित और सही दवाइयों से सामान्य जीवन जी सकते हैं। उन्होंने जोर देकर कहा कि मिर्गी से पीड़ित लोगों को शिक्षा, रोजगार और सामाजिक जीवन से दूर करना गलत है।
अपने संबोधन के अंत में प्रोफेसर विजय नाथ मिश्रा ने समाज से अपील की कि गांव स्तर पर बुजुर्गों के समूह बनाए जाएं, मिर्गी और अन्य तंत्रिका रोगों को लेकर जागरूकता फैलाई जाए और नियमित स्वास्थ्य शिविर आयोजित किए जाएं। इससे ब्रेन हेमरेज, लकवा और मिर्गी से होने वाली मृत्यु और पीड़ा को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
इस अवसर पर आशा ट्रस्ट के कॉर्डिनेटर वल्लभाचार्य पांडेय, गौरीशंकर यादव, भाजपा नेत्री शारदा चतुर्वेदी, कृषि वैज्ञानिक अखिलेश चौबे, शिक्षक अतुल चतुर्वेदी, व्यापार मंडल अध्यक्ष नन्हे जायसवाल, पूर्व प्रधान सौरभ तिवारी, शिव बचन, प्रधान मनीष चौहान, ऐरा ट्वेंटी फर्स्ट के प्रबंधक विनोद सिंह सहित अनेक सामाजिक और गणमान्य व्यक्ति उपस्थित रहे।




