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उत्तर प्रदेश

डा.राज खुशीराम पंचतत्व में विलीन

डा.राज खुशीराम पंचतत्व में विलीन
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लखनऊ,18 दिसम्बर। अयोध्या घराने के वरिष्ठ एवं प्रख्यात पखावज वादक डॉ. राज खुशीराम का आज बैकुण्ठ नाम में अंतिम संस्कार कर दिया गया। लगभग 72 वर्षीय डा.राज प्रसार भारती के टाप ग्रेड आर्टिस्ट और भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में पखावज के शिक्षक थे।वे कई दिनों से अस्वस्थ थे और सांस लेने में तकलीफ होने पर उन्हें मंगलवार को मेडिकल कॉलेज दिखाया गया। इसके बाद वे गोमतीनगर स्थित अपने आवास लौट गये। तबीयत में सुधार न होने पर बुधवार रात उनका देहांत हो गया। पार्थिव शरीर को पहले गोमतीनगर आवास से पूर्व आवास और दुकान के नजदीक अमीनाबाद हनुमान मंदिर के सामने दर्शनार्थ रखा गया, फिर अंतिम यात्रा घाट पहुंची। मुखाग्नि भतीजे मुनीश खुशीराम ने दी।

डॉ. राज खुशीराम अयोध्या घराने के महान पखावज आचार्य स्वामी पागल दास के शिष्य थे। वे लखनऊ घराने के सुप्रसिद्ध कथक गुरु पंडित लच्छू महाराज की पटशिष्या, विख्यात कथक नृत्यांगना कपिला राज के पति थे। वे भातखंडे संस्कृति विश्वविद्यालय में पखावज के अतिथि शिक्षक के रूप में भी सेवाएं दे रहे थे। उनकी पत्नी और पुत्र का निधन पहले ही हो चुका है। उनके निधन पर कला एवं संगीत जगत में शोक की लहर दौड़ गई। भारतीय शास्त्रीय संगीत में अतुलनीय योगदान के लिए उन्हें कई सम्मान मिले, जिनमें उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, वाराणसी के अंतरराष्ट्रीय ध्रुपद मेला (स्वर्ण जयंती वर्ष) में मिला लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड प्रमुख है। अंतिम संस्कार में परिवारीजन के साथ कानपुर से गायक पं.विनोदकुमार द्विवेदी, अयोध्या से गुरुभाई राजकुमार झा, भाषा पंत, ज्योति किरन, राममोहन महाराज, कमलेश दुबे, हेम सिंह, रत्नेश मिश्र, सुरेन्द्र आर्य, कला समीक्षक राजवीर रतन शिष्य प्रसन्ना, अश्वित आदि बड़ी संख्या में कला जगत के लोग उपस्थित थे। उनका शांति पाठ 20 दिसम्बर को सुबह साढ़े दस बजे निवास स्थान कपिला कुंज 5/19, विरामखंड निकट हुसड़िया चौराहा जीवन प्लाजा गोमतीनगर में होगा।

जयपुर की ध्रुपद गायिका डॉ. मधु भट्ट तैलंग ने कहा, “उन्होंने जीवन भर ईश्वर की आराधना और संगीत साधना पखावज के माध्यम से की। उनका वादन सदैव अविस्मरणीय रहेगा।”

रंगमंच व फिल्म अभिनेता डॉ. अनिल रस्तोगी ने कहा, “राजू के निधन से बेहद आहत हूं। वे एक महान आत्मा, सरल स्वभाव और सच्चे सज्जन थे।”

रंगकर्मी गोपाल सिन्हा ने कहा, “हमेशा मुस्कराता चेहरा, जितने उत्कृष्ट पखावज वादक थे, उतने ही सहज और सरल व्यक्तित्व के धनी थे।” वरिष्ठ कला समीक्षक राजवीर रतन ने उन्हें याद करते हुए कहा, “वे तीन दशकों से हमारे मित्र थे और मेरे बच्चों के गुरु और संरक्षक भी रहे।”

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