धार्मिक अलगाव पर विवादित बयान, बयानबाज़ी से फिर गरमाया सामाजिक-राजनीतिक माहौल

रिपोर्ट विजय तिवारी
नई दिल्ली।
महामंडलेश्वर यति नरसिंहानंद गिरी द्वारा धार्मिक अलगाव को लेकर दिए गए एक बयान ने एक बार फिर देश के सामाजिक और राजनीतिक विमर्श को गर्मा दिया है। अपने वक्तव्य में उन्होंने कहा कि “पूरे विश्व में मुस्लिमों और गैर-मुस्लिमों की बस्तियां अलग-अलग होनी चाहिए।” यह बयान सामने आते ही सार्वजनिक मंचों से लेकर सोशल मीडिया तक व्यापक चर्चा और बहस का विषय बन गया।
बयान के बाद विभिन्न सामाजिक संगठनों, बुद्धिजीवियों, नागरिक समूहों और राजनीतिक दलों की ओर से तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई हैं। आलोचकों का कहना है कि इस प्रकार की सोच समाज में विभाजन को बढ़ावा देती है और आपसी सौहार्द, भाईचारे तथा सह-अस्तित्व की भारतीय परंपरा के विपरीत है। कई संगठनों ने इसे लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक समरसता के लिए चुनौतीपूर्ण बताया है।
संविधान विशेषज्ञों और विधि जानकारों के अनुसार, भारतीय संविधान सभी नागरिकों को समानता का अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता और किसी भी प्रकार के भेदभाव के बिना साथ-साथ रहने की गारंटी देता है। उनका कहना है कि धर्म के आधार पर आवासीय या सामाजिक विभाजन की अवधारणा संवैधानिक भावना और कानून के दायरे में स्वीकार्य नहीं मानी जाती।
इस बीच, कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और नागरिक संगठनों ने प्रशासन से अपील की है कि इस तरह के बयानों पर सतर्कता बरती जाए, ताकि समाज में तनाव, वैमनस्य या कानून-व्यवस्था से जुड़ी कोई स्थिति उत्पन्न न हो। प्रशासनिक सूत्रों का कहना है कि पूरे घटनाक्रम पर नजर रखी जा रही है और स्थिति का आकलन किया जा रहा है।
गौरतलब है कि यह पहला मौका नहीं है जब यति नरसिंहानंद गिरी के किसी वक्तव्य को लेकर विवाद खड़ा हुआ हो। इससे पहले भी उनके बयानों पर कानूनी कार्रवाई, सामाजिक विरोध और सार्वजनिक बहस देखने को मिल चुकी है। ऐसे में एक बार फिर धार्मिक बयानबाज़ी और उसकी सीमाओं को लेकर सवाल खड़े हो गए हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि लोकतांत्रिक समाज में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के साथ-साथ सामाजिक जिम्मेदारी भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, ताकि विविधताओं से भरे समाज में आपसी विश्वास और शांति बनी रहे।




