ललितपुर : जीजा की डिग्री पर सालों तक चलता रहा ‘फर्जी डॉक्टर’ का खेल, दर्जनों मरीजों की ज़िंदगी को जोखिम में डालने का संगीन मामला उजागर

रिपोर्ट : विजय तिवारी
ललितपुर में स्वास्थ्य सेवाओं की विश्वसनीयता को झकझोर देने वाला एक बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है।
एक युवक ने अपने जीजा की असली मेडिकल डिग्री और रजिस्ट्रेशन नंबर का इस्तेमाल कर खुद को डॉक्टर बताकर वर्षों तक मरीजों का इलाज किया। इस अवधि में उसने न केवल निजी क्लीनिक चलाए बल्कि कई अस्पतालों में अस्थायी डॉक्टर के तौर पर सेवाएँ भी दीं। हैरानी की बात यह है कि यह धोखाधड़ी कई सालों तक बिना किसी प्रशासनिक संदेह के जारी रही।
फर्जी डॉक्टर के खुलासे की कहानी : कैसे पकड़ी गई बड़ी गड़बड़ी?
स्वास्थ्य विभाग को हाल ही में डिग्री व पहचान सत्यापन के दौरान दस्तावेजों में नाम और फोटो की असंगति मिली।
अधिकारियों ने जब रजिस्ट्रेशन बोर्ड से मूल अभिलेख मंगाए तो पता चला कि जिस डिग्री पर आरोपी काम कर रहा था वह वास्तव में उसके जीजा की थी।
संदेह बढ़ने पर विभाग ने तत्काल जांच शुरू की, जिसमें पता चला कि वह कई वर्षों से असली डॉक्टरों की पहचान का सहारा लेकर इलाज कर रहा था।
विभाग का कहना है कि यह मामला “सुनियोजित और लम्बे समय तक चलने वाला फर्जीवाड़ा” है।
मरीजों पर बड़ा खतरा
गलत इलाज और जटिलताओं के कई मामले सामने जांच में यह भी सामने आया कि आरोपी ने गंभीर बीमारियों वाले मरीजों को गलत दवाइयाँ दीं
बिना उचित अनुभव के प्रसव और छोटे-मोटे ऑपरेशन में हाथ लगाया
कई मरीजों की हालत इलाज के बाद बिगड़ने की शिकायतें दर्ज है।
स्थानीय लोगों ने बताया कि “उसकी फीस कम थी और वह आसानी से उपलब्ध रहता था, इसलिए ग्रामीण उसे डॉक्टर मानकर भरोसा करते रहे।”
मेडिकल कॉलेज व प्रशासन की भूमिका पर गंभीर सवाल
फर्जी डॉक्टर की नियुक्ति और पंजीकरण प्रक्रिया में लापरवाही की बात भी सामने आई है।
मेडिकल कॉलेज के पैनल ने बिना गहन जांच के उसके दस्तावेज़ स्वीकार कर लिए।
फोटो मिलान, हस्ताक्षर सत्यापन और मूल प्रमाण-पत्रों की क्रॉस-जाँच नहीं की गई।
स्वास्थ्य विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने माना कि “जाँच में स्पष्ट हुआ है कि प्रारंभिक सत्यापन में गंभीर चूक हुई है।”
इस चूक ने न केवल मरीजों की जान जोखिम में डाली बल्कि सरकारी स्वास्थ्य तंत्र की विश्वसनीयता को भी चोट पहुँचाई।
स्वास्थ्य विभाग ने गठित की उच्च स्तरीय जांच समिति
घटना का संज्ञान लेते हुए विभाग ने तीन सदस्यीय समिति बनाई है, जो आरोपी के कार्यकाल की पूरी मेडिकल हिस्ट्री
उसने किन अस्पतालों में काम किया, किन मरीजों का इलाज किया और किन मामलों में जटिलताएँ उत्पन्न हुईं
—इन सभी बिंदुओं की जांच कर विस्तृत रिपोर्ट सौंपेगी।
जांच के दायरे में मेडिकल कॉलेज के अधिकारी, सत्यापन पैनल और संबंधित अस्पताल संचालक भी शामिल किए गए हैं।
पुलिस कार्रवाई तेज, कई गंभीर धाराओं में मुकदमा दर्ज
पुलिस ने आरोपी के खिलाफ धोखाधड़ी, जाली दस्तावेज़ का इस्तेमाल, मेडिकल प्रैक्टिस एक्ट के उल्लंघन और जान जोखिम में डालने जैसे गंभीर आरोपों में केस दर्ज किया है।
आरोपी को हिरासत में लेकर पूछताछ की जा रही है।
जांच इस दिशा में भी आगे बढ़ेगी कि क्या इस फर्जीवाड़े में कोई अन्य व्यक्ति भी शामिल था।
उसके जीजा की भूमिका भी जांच का हिस्सा है — क्या वे जानते थे कि उनकी डिग्री का इस्तेमाल किया जा रहा है?
समाज पर असर : क्यों बार-बार सामने आते हैं ऐसे मामले?
विशेषज्ञों के मुताबिक ग्रामीण और छोटे शहरों में—
डॉक्टरों की कमी, कम फीस में इलाज की सुविधा और प्रशासनिक स्तर पर ढीले सत्यापन - ऐसे फर्जी डॉक्टरों को बढ़ावा देते हैं।
यह मामला स्पष्ट चेतावनी है कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और कठोर सत्यापन प्रणाली की आवश्यकता कितनी महत्वपूर्ण है।
सरकार ने दिए सख्त निर्देश
राज्य स्तर पर स्वास्थ्य विभाग ने सभी जिलों को आदेश भेजा है कि डॉक्टरों की डिग्री और रजिस्ट्रेशन की पुनः जांच की जाए।
निजी अस्पतालों में कार्यरत स्टाफ का भी सत्यापन हो
फर्जीवाड़े पर शून्य सहिष्णुता अपनाई जाए।




