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धीरेंद्र शास्त्री का प्रचंड संदेश: “कब्र से उठकर देख ले बाबर, मंदिर वहीं बनाया है; अब कृष्ण जन्मभूमि की बारी”

धीरेंद्र शास्त्री का प्रचंड संदेश: “कब्र से उठकर देख ले बाबर, मंदिर वहीं बनाया है; अब कृष्ण जन्मभूमि की बारी”
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भगवा फिर इतिहास के शिखर पर — धीरेंद्र शास्त्री का प्रचंड संदेश: “कब्र से उठकर देख ले बाबर, मंदिर वहीं बनाया है; अब कृष्ण जन्मभूमि की बारी”

रिपोर्ट : विजय तिवारी

शिवपुरी / अयोध्या।

अयोध्या में राम मंदिर के शिखर पर धर्म-ध्वज फहराए जाने के साथ ही पूरे देश में धार्मिक-सांस्कृतिक उन्माद और आस्था की ज्वाला एक बार फिर तेज़ हो गई।

इसी जोश के बीच शिवपुरी में श्रीमद भागवत कथा के मंच से बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने ऐसा बयान दिया जिसने देशभर की राजनीतिक-धार्मिक बहस को और तीव्र कर दिया।

हज़ारों की भीड़ से गूंजते पंडाल में शास्त्री ने गगन भेदी स्वर में कहा :

“मुगलों की छाती पर भगवा लहराया है। कब्र से उठकर देख ले बाबर — मंदिर वहीं बनाया है।”

यह बयान सुनते ही भक्तों के बीच जय-घोष का ऐसा विस्फोट हुआ कि पूरा पंडाल एक स्वर में “जय श्री राम” की गर्जना से धधक उठा।

ध्वजारोहण का अर्थ — सिर्फ धार्मिक नहीं, ऐतिहासिक विजय

राम मंदिर के विशाल शिखर पर धर्म-ध्वज लहराने का क्षण केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं था — यह सदियों की प्रतीक्षा, संघर्ष, अदालतों की लड़ाई, आंदोलन और बलिदानों से हासिल की गई जीत का प्रतीक था।

धर्म-ध्वज पर अंकित पवित्र चिह्न — सूर्य, ॐ और विजय-चिह्न — इस बात की घोषणा थे कि सनातन अस्मिता फिर से उठ खड़ी हुई है।

देश के कोने-कोने से आए श्रद्धालुओं का कहना था कि यह सिर्फ एक समारोह नहीं बल्कि इतिहास को पलट देने वाला क्षण था — जिसमें वर्षों की पीड़ा, संघर्ष और टूटे विश्वासों को मुक्ति मिली।

अगला अध्याय मथुरा? — सुनाई दिया नया ऐलान

अपने संबोधन में शास्त्री ने स्पष्ट शब्दों में कहा—

“कृष्ण लला हम आएँगे। मंदिर वहीं बनाएँगे। जिन्हें दिक्कत हो, वो खिसक जाएँ।”

इस घोषणा के साथ ही यह संदेश साफ है कि राम मंदिर का संघर्ष समाप्त होने के बाद अब ध्यान कृष्ण जन्मभूमि पर केंद्रित हो सकता है।

सभा में मौजूद युवाओं ने नारों से जवाब दिया—

“पहले अयोध्या, अब मथुरा — सनातन जाग रहा है।”

समाज और राजनीति में नई हलचल

धीरेंद्र शास्त्री के बयान ने धार्मिक ऊर्जा के साथ-साथ सामाजिक-राजनीतिक हलचल भी तेज कर दी है।

जहाँ समर्थक इसे आस्था का गौरव-क्षण, इतिहास का पुनर्लेखन और सांस्कृतिक उत्थान मान रहे हैं, वहीं विश्लेषकों ने चेताया है कि ऐसे तीखे बयान सामाजिक संवेदनशीलता को चुनौती दे सकते हैं।

विवाद और संतुलन — दोनों साथ-साथ

इतिहास और आस्था के प्रश्नों पर मतभेद पहले से मौजूद हैं

मथुरा और काशी दोनों को लेकर भविष्य की बहस और आंदोलन तेज हो सकते हैं

सरकार, न्यायपालिका और समाज — तीनों ही क्षेत्रों में यह विषय फिर से केंद्र में आ सकता है

धर्म, राष्ट्र और पहचान — नई दिशा में कदम

अयोध्या में भगवा ध्वज का फहरना भारतीय संस्कृति और सनातन परंपरा के लिए एक निर्णायक मोड़ माना जा रहा है।

धीरेंद्र शास्त्री जैसे धर्मगुरुओं के बेबाक बयान इस भावना को और धार दे रहे हैं कि आने वाले समय में धार्मिक-सांस्कृतिक बहसें और अधिक प्रबल होंगी।

एक बात अब स्पष्ट है :

भारत में धार्मिक चेतना जाग चुकी है — और यह आवाज अब किसी भी कीमत पर थमने वाली नहीं।

राम मंदिर पर ध्वजारोहण और धीरेंद्र शास्त्री का यह प्रखर बयान — दोनों मिलकर आने वाले समय की दिशा साफ कर देते हैं।

अब पूरी निगाहें मथुरा की तरफ हैं।

देश प्रतीक्षा कर रहा है —

क्या इतिहास का अगला अध्याय वहीं से लिखा जाएगा?

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