Janta Ki Awaz
उत्तर प्रदेश

अयोध्या: धर्म-ध्वजा समारोह के निमंत्रण को लेकर सपा सांसद का आरोप- मुझे बुलाया ही नहीं गया”; राजनीतिक विवाद तेज़

अयोध्या: धर्म-ध्वजा समारोह के निमंत्रण को लेकर सपा सांसद का आरोप- मुझे बुलाया ही नहीं गया”; राजनीतिक विवाद तेज़
X

रिपोर्ट : विजय तिवारी

अयोध्या में राम मंदिर परिसर में होने वाले धर्म-ध्वजा ध्वजारोहण कार्यक्रम को लेकर नया राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया है। समाजवादी पार्टी के अयोध्या सांसद अवधेश प्रसाद पासी ने आरोप लगाया है कि उन्हें कार्यक्रम के लिए बीजेपी सरकार की ओर से कोई निमंत्रण नहीं दिया गया।

सांसद का यह दावा सामने आते ही अयोध्या से लेकर लखनऊ और सोशल मीडिया तक राजनीतिक बहस तेज़ हो गई है।

सपा सांसद का आरोप—“बीजेपी सरकार की ओर से मुझे कार्ड नहीं मिला”

अवधेश प्रसाद पासी का कहना है कि वे कार्यक्रम स्थल के आसपास मौजूद थे, इस उम्मीद में कि कोई अधिकारी या प्रतिनिधि उन्हें फोन करेगा या निमंत्रण पत्र देगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उन्होंने कहा—

“मुझे बीजेपी सरकार की तरफ से कोई आमंत्रण पत्र नहीं दिया गया। मैं कार्यक्रम स्थल के आसपास था, लेकिन मुझे बुलाया ही नहीं गया।”

सांसद का दावा है कि चुनावी राजनीति के चलते उन्हें कार्यक्रम से अलग रखा गया।

धर्म-ध्वजा ध्वजारोहण—आयोजन का महत्व

राम मंदिर के शिखर पर ध्वजा फहराना परंपरागत रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। यह आयोजन—

प्राण प्रतिष्ठा के बाद पहला बड़ा प्रतीकात्मक उत्सव,

देशभर के धर्माचार्यों की उपस्थिति,

सुरक्षा कारणों से सीमित अतिथि-सूची,

राष्ट्रीय स्तर पर प्रसारण

की वजह से उच्च-प्रोफ़ाइल कार्यक्रम माना जा रहा है।

आयोजन से जुड़े सूत्रों के अनुसार अतिथि सूची पहले से तय थी, जिसमें कई धर्माचार्य, संस्थागत प्रतिनिधि और विशिष्ट अतिथि शामिल थे। हालांकि स्थानीय सांसद का नाम शामिल था या नहीं—इस पर अभी तक कोई स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है।

राजनीतिक विश्लेषण—उपेक्षा या प्रशासनिक गलती?

विशेषज्ञ इस पूरे विवाद को दो दृष्टियों से देख रहे हैं—

1. राजनीतिक संदर्भ

अयोध्या सीट हाल के चुनावों से लगातार राजनीतिक रूप से संवेदनशील रही है। सपा और भाजपा के बीच खींचतान पहले से जारी है। ऐसे में सांसद को औपचारिक रूप से न बुलाना राजनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।

2. प्रशासनिक लापरवाही

बड़े आयोजनों में निमंत्रण वितरण सुरक्षा मंजूरी पर निर्भर होता है।

यदि कार्ड न पहुँचा हो, तो यह प्रशासनिक चूक (लैप्स) भी हो सकता है।

हालाँकि सांसद का कहना है—

“अगर गलती थी तो सरकार को तुरंत सुधार करना चाहिए था। मुझे बुलाना कोई मुश्किल काम नहीं था।”

सोशल मीडिया पर विवाद भड़का—वीडियो वायरल

सांसद के बयान वाला वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होते ही बहस दो हिस्सों में बंट गई।

निष्पक्षता की मांग करने वाले यूजर्स के मत

“राम मंदिर किसी दल की संपत्ति नहीं है, स्थानीय सांसद को जरूर बुलाना चाहिए था।”

“धार्मिक आयोजन को राजनीतिक मतभेदों से दूर रखना चाहिए।”

तंज कसने वाले यूजर्स की प्रतिक्रियाएँ

“हर कार्यक्रम में कार्ड-ड्रामा शुरू हो जाता है।”

“सांसद जी को मीडिया में रहने का शौक है।”

ट्रस्ट और प्रशासन की चुप्पी ने बढ़ाए सवाल

अभी तक न तो मंदिर ट्रस्ट और न ही प्रशासन ने स्पष्ट किया है—

क्या सांसद का नाम सूची में था?

कार्ड भेजा गया था या नहीं?

निमंत्रण वितरण किस विभाग की जिम्मेदारी थी?

इस चुप्पी ने विवाद को और गंभीर बना दिया है।

प्रतिनिधित्व और पारदर्शिता का प्रश्न

धर्म-ध्वजा कार्यक्रम से उठे इस विवाद ने फिर से यह सवाल उछाल दिया है कि—

धार्मिक आयोजनों में जनप्रतिनिधियों की भूमिका और सम्मान क्या होना चाहिए?

क्या ऐसे कार्यक्रमों की प्रशासनिक प्रक्रिया पारदर्शी है?

या यह मुद्दा भी चुनावी राजनीति का हिस्सा बन रहा है?

अवधेश प्रसाद पासी का आरोप और सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया ने मामले को और बड़ा बना दिया है। अब सभी की नजरें इस बात पर हैं कि आयोजन समिति या सरकार की ओर से क्या आधिकारिक बयान आता है।

Next Story
Share it