रामराज्य और समाजवाद पर विमर्श जरूरी : दीपक मिश्र

समाजवादी चिंतक ने आज़म ख़ान को भेंट की ‘रामचरितमानस’
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद आज़म ख़ान से समाजवादी चिंतक और बौद्धिक सभा के अध्यक्ष दीपक मिश्र ने शिष्टाचार मुलाकात की। इस दौरान दीपक मिश्र ने उन्हें गोस्वामी तुलसीदास रचित ‘रामचरितमानस’, साहिर लुधियानवी की ‘परछाइयाँ’ और अपनी स्वलिखित पुस्तकें भेंट कीं।
भेंट स्वरूप मिली रामचरितमानस को आज़म ख़ान ने बड़े सम्मान भाव से अपने माथे से लगाया और कहा कि इसे पढ़ने के बाद विश्वविद्यालय की पुस्तकालय में रखा जाएगा ताकि विद्यार्थी इससे प्रेरणा ले सकें।
मुलाक़ात के दौरान दोनों के बीच रामराज्य और समाजवाद पर गहन चर्चा हुई। समाजवादी चिंतक दीपक मिश्र ने कहा कि भारतीय परिप्रेक्ष्य में रामराज्य और समाजवाद समदर्शी अवधारणाएँ हैं। दोनों का लक्ष्य एक शोषणविहीन, समता-मूलक समाज की स्थापना है। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में इन दोनों विचारों के अंतर्संबंधों पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है ताकि इनके नाम पर बोले जा रहे झूठ और भ्रम से राष्ट्र को बचाया जा सके।
दीपक मिश्र ने कहा कि रामचरितमानस उस दौर में लिखी गई थी जब देश में मुग़लिया सल्तनत चरम पर थी, और फिर भी तुलसीदास ने उसमें एक ऐसे समतामूलक समाज की कल्पना की जो समाजवाद के मूल सिद्धांतों से मेल खाती है। यही कारण था कि डॉ. राममनोहर लोहिया जैसे समाजवादी नेता रामायण मेले आयोजित करवाते थे और रामराज्य पर विमर्श को प्रोत्साहित करते थे।
आज़म ख़ान ने दीपक मिश्र से आग्रह किया कि रामराज्य और समाजवाद पर सतत बहस और संवाद को आगे बढ़ाया जाए ताकि समाज में फैली भ्रांतियाँ दूर हों। उन्होंने कहा कि वर्तमान सरकार की नीतियाँ रामराज्य की मूल भावना और दर्शन के विपरीत हैं, जिससे समाज में सांप्रदायिक तनाव, आर्थिक असमानता और अशांति बढ़ रही है।




