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उत्तर प्रदेश

बेटी बचाओ की बात,मगर भूख से लड़ती बेटियाँ — चंदौली में विकास के नाम पर दलित महिलाओं का दर्द अनसुना!

बेटी बचाओ की बात,मगर भूख से लड़ती बेटियाँ — चंदौली में विकास के नाम पर दलित महिलाओं का दर्द अनसुना!
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ब्यूरो रिपोर्ट/चंदौली...

चंदौली। उत्तर प्रदेश में नारी सशक्तिकरण और बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ के नारों के बीच चंदौली की रेवसा में दलित बस्ती की महिलाएँ आज भूख से जूझ रही हैं।विकास की सड़क चौड़ी हो रही है, पर इन परिवारों की ज़मीन, छत और उम्मीदें सिकुड़ गई हैं।

भारतमाला परियोजना के तहत हो रहे विस्तार कार्य में 144 दलित परिवार बेघर होने की कगार पर हैं। पाँच महीने से पुनर्वास और मुआवज़े की मांग कर रहे लोग अब अनिश्चितकालीन धरने और भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं।तीन दिन से महिलाएं और बच्चियां अन्न-जल त्याग कर प्रशासन की संवेदनहीनता के खिलाफ बैठी हैं, मगर अब तक कोई अधिकारी मौके पर पहुँचना ज़रूरी नहीं समझ पाया।

धरने की अगुवाई कर रही कुसुम वर्मा का कहना है कि विकास के नाम पर गरीबों के घर तोड़े जा रहे हैं, पर उनके सपनों की कोई कीमत नहीं।सरकार नारी शक्ति की बातें करती है, लेकिन जब दलित महिलाएं न्याय मांगती हैं तो प्रशासन बहरी दीवार बन जाता है।

इसी धरने में शामिल माधुरी ने प्रशासन पर सीधे आरोप लगाए कहा कि संविधान की दुहाई देने वाले ही संविधान को रौंद रहे हैं।

रात में धमकियाँ मिलती हैं, पुलिस कहती है जगह छोड़ दो।हम डरेंगे नहीं — जान दे देंगे पर अधिकार नहीं छोड़ेंगे।

वहीं छात्रा सुनैना की बातें हर संवेदनशील दिल को झकझोर देने वाली हैं हम दो-तीन लाख नहीं चाहते, हमें ज़मीन और पढ़ाई का अधिकार चाहिए।हमारी सालभर की फीस, भविष्य और आशा सब बर्बाद हो रही है।तीन दिन से भूख हड़ताल पर हैं, लेकिन कोई अधिकारी हाल-चाल तक पूछने नहीं आया।

प्रशासन की चुप्पी, लोकतंत्र की परीक्षा

धरनास्थल पर बैठे लोगों का कहना है कि बार-बार शिकायत देने के बावजूद न तो ज़िला अधिकारी ने कोई टीम भेजी, न एसडीएम ने मौके का निरीक्षण किया।

स्थानीय संगठनों ने सवाल उठाया है कि क्या विकास परियोजनाएँ अब केवल अमीरों के लिए हैं?दलित बस्तियों को उजाड़ना और फिर उन्हें भूख के हवाले छोड़ देना, क्या यही सबका साथ, सबका विकास है?प्रभावित परिवारों को तत्काल पुनर्वास स्थल और आवास दिया जाए,उचित मुआवज़ा और बच्चों की शिक्षा के लिए विशेष राहत मिले,भूख हड़ताल पर बैठी महिलाओं का चिकित्सकीय परीक्षण कराया जाए,परियोजना से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।यह धरना सिर्फ़ एक ज़मीन का नहीं, बल्कि सम्मान और अस्तित्व की लड़ाई है।जहाँ सरकारें नारी शक्ति की मिसालें गिनवाती हैं, वहीं चंदौली में वही नारी आज सड़क किनारे अपनी छत की भीख माँग रही है।प्रशासन की खामोशी ने साबित कर दिया है कि विकास की रफ़्तार बढ़ी है,पर इंसानियत की संवेदना घट गई है।

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