लोक आस्था का महापर्व “छठ पूजा” देशभर में श्रद्धा और आस्था के साथ शुरू

रिपोर्ट : विजय तिवारी
लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ पूजा आज से देशभर में श्रद्धा, आस्था और भक्ति के माहौल में आरंभ हो गया है। कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से प्रारंभ होने वाला यह पर्व सूर्य उपासना और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक माना जाता है।
आज पहले दिन “नहाय-खाय” के साथ व्रत की शुरुआत हुई। श्रद्धालुओं ने नदियों, तालाबों और जलाशयों में स्नान कर पवित्र भोजन ग्रहण किया। यही दिन छठ व्रत की सबसे महत्वपूर्ण और शुद्ध शुरुआत मानी जाती है। इसके साथ ही घरों और घाटों पर स्वच्छता व सजावट का कार्य भी प्रारंभ हुआ।
चार दिन की धार्मिक परंपरा -
छठ पूजा का यह पर्व 25 अक्टूबर से 28 अक्टूबर तक चलेगा।
पहला दिन – नहाय-खाय (25 अक्टूबर): स्नान व शुद्ध भोजन के साथ व्रत की शुरुआत।
दूसरा दिन – खारना (26 अक्टूबर): व्रती दिनभर निर्जला उपवास रखकर शाम को गुड़-चावल की खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करते हैं।
तीसरा दिन – संध्या अर्घ्य (27 अक्टूबर): अस्त होते सूर्य को जल में खड़े होकर अर्घ्य अर्पित किया जाता है।
चौथा दिन – उषा अर्घ्य (28 अक्टूबर): उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता है।
सूर्योपासना और प्रकृति के प्रति आस्था -
छठ महापर्व में सूर्य देव और छठी मैया की आराधना की जाती है। यह पर्व केवल धार्मिक आस्था नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन और स्वच्छता का भी संदेश देता है। व्रती महिलाएं परिवार के सुख, समृद्धि और संतान की दीर्घायु की कामना करती हैं। इस अवसर पर पूरे देश में घाटों पर लाखों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ती है।
देशभर में तैयारियां -
उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, दिल्ली, पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़ से लेकर मुंबई, सूरत , वडोदरा और अहमदाबाद तक छठ पूजा की धूम देखने को मिल रही है। प्रशासनिक स्तर पर सुरक्षा, साफ-सफाई और रोशनी की विशेष व्यवस्था की गई है। दिल्ली में यमुना घाटों की सफाई कर विशेष सजावट की गई है, वहीं पटना, वाराणसी और रांची में घाटों पर सुरक्षा बल तैनात हैं।
रेलवे और परिवहन विभागों ने भी यात्रियों की सुविधा को देखते हुए अतिरिक्त ट्रेनें और बसें चलाने की घोषणा की है।
लोक गीतों और परंपराओं से गूंजे घाट -
घाटों पर लोकगीतों की स्वर लहरियां और छठी मैया के भजनों से पूरा वातावरण भक्तिमय हो उठा है। महिलाएं सूप और डालों में प्रसाद सजाकर सूर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करने की तैयारी में जुटी हैं। केले, गन्ने, नारियल, सिंघाड़ा, अदरक, नींबू और ठेकुआ जैसे पारंपरिक प्रसादों की महक ने आस्था का वातावरण और भी पवित्र बना दिया है।
आस्था, अनुशासन और पर्यावरण का पर्व -
छठ पूजा आत्मसंयम, स्वच्छता और समर्पण की मिसाल है। इसमें कृत्रिमता नहीं, बल्कि सादगी में ही भक्ति का भाव निहित है। सूर्य देव के प्रति आभार व्यक्त करते हुए श्रद्धालु इस पर्व को मानव और प्रकृति के बीच गहरे संबंध का प्रतीक मानते हैं।
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समापन -
चार दिन तक चलने वाला यह महापर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की गहराई और एकता का जीवंत प्रतीक है — जो हमें प्रकृति, परिवार और समाज के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाता है।




