पुराने नोटों में छिपी मजदूर बहनों की बरसों की पूँजी- पेट काटकर जोड़ा रुपया बारूद के बीच मिला — गरीबी, मेहनत और मजबूरी की मार्मिक कहानी

आनन्द गुप्ता / अनवार खाँ मोनू
बहराइच। मिहीपुरवा। जिला मुख्यालय से लगभग पच्चास किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ
गायघाट गाँव में एक ऐसा मामला सामने आया है जिसने प्रशासन से लेकर ग्रामीणों तक सभी को गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया।
राजस्व विभाग और मोतीपुर पुलिस की संयुक्त टीम ने गाँव के एक छोटे से कच्चे मकान में छापेमारी कर पटाखा बनाने की सामग्री और ₹5 लाख 54 हजार 500 रुपये नकद बरामद किए।
पहली नज़र में रकम और बारूद संदिग्ध लगे, लेकिन जब सच्चाई सामने आई तो जांच टीम की आँखें भी नम हो गईं।
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गरीबी की लकीरों में मेहनत की स्याही
गायघाट निवासी स्वर्गीय अमीर हसन की दो बेटियाँ जुमानी और नसीमुन पिछले कई वर्षों से मजदूरी कर अपना जीवन यापन कर रही हैं।
पूछताछ में दोनों बहनों ने पुलिस को बताया —
“साहब, ये पैसा अब्बा के बेचे गए खेत का और हमारी मजदूरी की कमाई है। हम अपनी शादी के लिए धीरे-धीरे जोड़ रहे थे। कुछ नोट अब्बा के ज़माने के हैं।”
छापेमारी के दौरान बरामद रकम में पुराने ₹100, ₹50 और चलन से बाहर हो चुके ₹500 के नोट भी मिले। यह साफ़ संकेत देता है कि यह रकम बरसों की पाई-पाई जोड़कर की गई बचत थी, जो अब नोटबंदी के बाद भी उनकी उम्मीदों के साथ सुरक्षित रखी रही।
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पटाखों के बीच पसीने की गंध
घर से एक बोरी बारूद, फ्यूज़ वायर, कागज़ और अधबने पटाखे भी बरामद हुए। प्रशासन ने सभी वस्तुएँ और नकदी को कब्जे में लेकर जांच शुरू कर दी।
मौके पर एसडीएम मिहीपुरवा रामदयाल, थाना मोतीपुर पुलिस टीम, महिला पुलिसकर्मी और राजस्व विभाग के अधिकारी मौजूद रहे।
ग्रामीणों ने अधिकारियों से गुहार लगाई कि इस पूरे मामले को संवेदनशीलता के साथ देखा जाए।
स्थानीय लोगों का कहना है कि,
“यह कोई अपराध नहीं, बल्कि गरीबी की मजबूरी है। जो पैसा बरामद हुआ, वह मेहनत की बरसों पुरानी गवाही है।”
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संवेदनाओं से बड़ा न हो जाए कानून?
गायघाट की यह घटना केवल पटाखे या पुराने नोटों की बरामदगी का मामला नहीं, बल्कि उस सच्चाई की तस्वीर है जिसमें गरीबी और आत्मसम्मान एक साथ जीने की कोशिश करते हैं।
जुमानी और नसीमुन का घर भले ही बारूद से भरा मिला हो, पर उनके इरादे उतने ही मासूम हैं जितनी किसी गरीब की रोज़ की रोटी।