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उत्तर प्रदेश

अनिल मिश्रा: संविधान के प्रहरी, न्याय के शिल्पकार

अनिल मिश्रा: संविधान के प्रहरी, न्याय के शिल्पकार
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भोपाल। जब विधि का रणक्षेत्र गूंजता है, तो उसमें एक नाम गूंजता है — अनिल मिश्रा।

संविधान के सिद्धांतों के प्रति उनकी निष्ठा और न्याय के प्रति समर्पण ने उन्हें मध्य प्रदेश ही नहीं, बल्कि देश के विधि-जगत में एक विशिष्ट पहचान दी है।

1988 में मध्य प्रदेश बार काउंसिल में पंजीकरण के बाद से मिश्रा जी ने सिविल, आपराधिक और संवैधानिक मामलों में अपनी विशिष्ट छाप छोड़ी है।

उनके नाम पर 2,500 से अधिक रिपोर्टेबल जजमेंट दर्ज हैं, जो उनके अनुभव और कानूनी समझ की गहराई को दर्शाते हैं।

विधि के रणबांकुरे

मिश्रा जी की दलीलें सिर्फ शब्द नहीं, बल्कि संविधान की आत्मा से निकली आवाज़ हैं।

उन्होंने अनुच्छेद 14 से लेकर 32 तक मौलिक अधिकारों की रक्षा को अपने जीवन का ध्येय बनाया है।

न्यायालयों में उनकी तर्कशक्ति और निष्पक्ष दृष्टिकोण के कारण कई ऐतिहासिक मामलों में उन्हें एमिकस क्यूरी के रूप में आमंत्रित किया गया।

वे उन गिने-चुने अधिवक्ताओं में हैं जो न्याय को केवल पेशा नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा का माध्यम मानते हैं।

विधिक परंपरा का गौरवशाली परिवार

मिश्रा परिवार न्याय की उस परंपरा का प्रतीक है जिसने विधि को सेवा का धर्म बनाया।

स्वर्गीय जस्टिस हरगोविंद मिश्रा ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में अपने निष्पक्ष फैसलों से गरीबों और पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा की।

जस्टिस अरुण मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में संविधान की गरिमा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।

जस्टिस विशाल मिश्रा आज मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में उसी परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, जबकि रोहित मिश्रा राज्य के अतिरिक्त महाधिवक्ता के रूप में न्याय की मशाल थामे हुए हैं।

यह परिवार देश की न्यायिक विरासत का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

नेतृत्व और न्याय के प्रति समर्पण

1993–95 में वरिष्ठ उपाध्यक्ष और 2015–17 में अध्यक्ष के रूप में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट बार एसोसिएशन का नेतृत्व करते हुए अनिल मिश्रा ने वकालत समुदाय को एकजुट किया और युवा अधिवक्ताओं को मार्गदर्शन दिया।

200 से अधिक जूनियर वकीलों को उन्होंने विधि की शिक्षा और व्यावहारिक प्रशिक्षण दिया।

उनके अधीन सीखने वाले कई अधिवक्ता आज न्यायालयों में सफलतापूर्वक सेवा दे रहे हैं।

संविधान सर्वोपरि

मिश्रा जी का मानना है कि वकालत केवल तर्क का नहीं, बल्कि नैतिकता और उत्तरदायित्व का भी क्षेत्र है।

वे हर नागरिक के अधिकारों की रक्षा को अपना सर्वोच्च कर्तव्य मानते हैं।

हाल के वर्षों में संवैधानिक और सामाजिक न्याय से जुड़े कई महत्वपूर्ण मामलों में उनकी भूमिका निर्णायक रही है।

उनकी दलीलों ने न्यायालय को कई बार नए दृष्टिकोण प्रदान किए हैं।

जनता का विश्वास

मध्य प्रदेश की जनता मिश्रा जी को केवल एक अधिवक्ता नहीं, बल्कि न्याय का प्रतीक मानती है।

उनका जीवन और कार्य यह संदेश देते हैं कि सच्चा वकील वही है जो संविधान की मर्यादा की रक्षा करते हुए समाज के अंतिम व्यक्ति तक न्याय पहुँचाने के लिए तत्पर रहे।

संविधान और लोकतंत्र के इस सिपाही ने अपनी निष्ठा, नेतृत्व और विद्वता से यह सिद्ध किया है कि न्याय केवल किताबों में नहीं, बल्कि कर्म में जीवित रहता है।

जय न्याय, जय संविधान, जय लोकतंत्र!

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