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20 साल बाद ठाकरे भाइयों का सियासी पुनर्मिलन नगर निगम चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा संकेत

20 साल बाद ठाकरे भाइयों का सियासी पुनर्मिलन  नगर निगम चुनाव से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा संकेत
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

महाराष्ट्र की राजनीति में एक अहम और ऐतिहासिक घटनाक्रम सामने आया है। करीब 20 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की राजनीतिक राहें एक बार फिर करीब आती दिखाई दे रही हैं। आगामी नगर निगम चुनावों को लेकर दोनों दलों के बीच तालमेल और साझा सोच ने राज्य की सियासत में नई चर्चाओं को जन्म दिया है।

साझा संदेश: ‘हमारी सोच एक, बटेंगे तो बिखरेंगे’

दोनों नेताओं की ओर से दिया गया संदेश—“हमारी सोच एक है, बटेंगे तो बिखरेंगे”—मात्र एक राजनीतिक नारा नहीं, बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में मराठी अस्मिता, क्षेत्रीय हितों और शहरी राजनीति में एकजुटता का स्पष्ट संकेत माना जा रहा है। माना जा रहा है कि यह संदेश खास तौर पर उन मतदाताओं के लिए है जो लंबे समय से मराठी नेतृत्व की एकजुटता की अपेक्षा कर रहे थे।

29 नगर निगम चुनाव, 15 जनवरी को मतदान

राज्य की 29 नगर निगमों में 15 जनवरी को मतदान होना है। इन चुनावों को भविष्य की राजनीति का ट्रेलर माना जा रहा है। शहरी क्षेत्रों में होने वाले ये चुनाव यह तय करेंगे कि आगामी वर्षों में महाराष्ट्र की राजनीति किस दिशा में बढ़ेगी। ऐसे में शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के बीच संभावित गठबंधन को बेहद अहम माना जा रहा है।

प्रेस कॉन्फ्रेंस और सियासी संकेत

हालिया कार्यक्रम और संवाद के दौरान ठाकरे भाइयों के बीच सौहार्दपूर्ण माहौल देखने को मिला। सवालों के जवाब में सहजता, मुस्कान और आपसी तालमेल ने यह संकेत दिया कि दोनों नेता अब अतीत के मतभेदों को पीछे छोड़कर वर्तमान राजनीतिक चुनौतियों पर एकजुट होकर सोच रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह केवल चुनावी समझौता नहीं बल्कि रणनीतिक और भावनात्मक दोनों स्तरों पर एक महत्वपूर्ण कदम है।

बदलेगा शहरी राजनीति का समीकरण

इस संभावित गठबंधन से—

शहरी क्षेत्रों में वोटों के बंटवारे पर लगाम लग सकती है

मराठी मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग एक मंच पर आ सकता है।

नगर निगमों में सत्ता संतुलन प्रभावित हो सकता है

अन्य राजनीतिक दलों की रणनीतियों में बदलाव देखने को मिल सकता है।

करीब दो दशक बाद उद्धव–राज ठाकरे का साथ आना महाराष्ट्र की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखा जा रहा है। अब निगाहें 15 जनवरी को होने वाले नगर निगम चुनावों पर टिकी हैं, जो यह स्पष्ट करेंगे कि यह सियासी एकजुटता केवल संदेश तक सीमित रहती है या वास्तव में चुनावी नतीजों और भविष्य की राजनीति की दिशा तय करने में निर्णायक साबित होती है।

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