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हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा द्वारा आयोजित महा रामलीला मंचन सातवां दिन (समापन) : भक्ति, नीति, त्याग और धर्म-विजय की विराट गाथा

हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा द्वारा आयोजित महा रामलीला मंचन  सातवां दिन (समापन) : भक्ति, नीति, त्याग और धर्म-विजय की विराट गाथा
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

वडोदरा।

हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा के तत्वावधान में आयोजित महा रामलीला का सातवां और अंतिम दिन रामकथा के उस निर्णायक अध्याय का साक्षी बना, जहां लंका दहन के पश्चात की समस्त घटनाएं क्रमबद्धता, भावनात्मक गहराई और वैचारिक संतुलन के साथ मंच पर सजीव हुईं।

यह मंचन केवल युद्ध-वर्णन नहीं, बल्कि भक्ति, नीति, कर्तव्य, त्याग और धर्म की पूर्ण विजय का सशक्त उद्घोष बनकर उभरा। मंच-सज्जा, प्रकाश-प्रभाव, पार्श्व-संगीत और संवादों की गंभीरता ने समापन को स्मरणीय शिखर प्रदान किया।

हनुमान का लंका से लौटना : विश्वास और संकल्प की पुनर्स्थापना

लंका दहन के पश्चात हनुमान जी माता सीता का संदेश और चूड़ामणि लेकर प्रभु श्रीराम के पास लौटते हैं। सीता की कुशल-क्षेम का समाचार सुनकर श्रीराम भावविभोर हो उठते हैं। यह दृश्य प्रभु और भक्त के बीच अटूट विश्वास का प्रतीक बना। यहीं से धर्मयुद्ध का संकल्प निर्णायक रूप ग्रहण करता है और वानर सेना को युद्ध की तैयारी का आदेश दिया जाता है।

समुद्र सेतु (राम सेतु) निर्माण : भक्ति से असंभव का संभव

समुद्र द्वारा मार्ग न देने पर श्रीराम धनुष उठाते हैं। उनके तेज से भयभीत समुद्रदेव क्षमा याचना करते हुए

नल–नील के माध्यम से सेतु निर्माण का उपाय बताते हैं। “राम नाम” लिखी शिलाओं से वानर सेना द्वारा सेतु निर्माण का दृश्य यह संदेश देता है कि जहां श्रद्धा और भक्ति होती है, वहां असंभव भी संभव हो जाता है।

विभीषण शरणागति : शरणागत वत्सलता का आदर्श

रावण के अधर्मी मार्ग से असहमत विभीषण श्रीराम की शरण में आते हैं। संदेहों के बीच श्रीराम का स्पष्ट वचन—जो भी भय त्यागकर शरण में आता है, वह स्वीकार्य है—शरणागत वत्सलता की अमिट मिसाल बनता है। विभीषण को लंका का भावी राजा घोषित किया जाता है, जिससे नीति और करुणा का संतुलन स्थापित होता है।

लंका युद्ध का आरंभ : पराक्रम और संगठन की परीक्षा

राम सेतु पार कर सेना लंका पहुंचती है। भयंकर युद्ध छिड़ता है। मेघनाद (इंद्रजीत) का मायावी युद्ध, वानर-वीरों का अद्भुत पराक्रम और रणभूमि की भव्यता—मंच पर धर्म और अधर्म का महासंघर्ष साकार होता है।

लक्ष्मण मूर्छा और संजीवनी पर्वत : आशा की विजय

इंद्रजीत के प्रहार से लक्ष्मण मूर्छित होते हैं। युद्धभूमि में शोक छा जाता है। तब हनुमान हिमालय से संजीवनी पर्वत लेकर आते हैं। यह प्रसंग भक्ति, साहस और असंभव को संभव करने की शक्ति का प्रतीक बनता है। लक्ष्मण के स्वस्थ होते ही सेना में नया उत्साह भर जाता है।

मकरध्वज–हनुमान संवाद : कर्तव्य और आत्मबोध का संतुलन

पाताल लोक के द्वार पर मकरध्वज–हनुमान संवाद अत्यंत अर्थपूर्ण ढंग से मंचित हुआ। मकरध्वज पिता-पुत्र संबंध से ऊपर अपने कर्तव्य को प्राथमिकता देता है। हनुमान उसकी निष्ठा का सम्मान करते हैं। यह दृश्य सिखाता है कि धर्मपथ पर भावनाओं और कर्तव्य का संतुलन ही सच्चा आदर्श है।

अहिरावण वध : अंधकार पर प्रकाश की निर्णायक विजय

इस कड़ी में अहिरावण का प्रसंग विशेष प्रभाव के साथ प्रस्तुत किया गया। लोककथाओं के अनुसार अहिरावण, रावण का सौतेला भ्राता, पाताल लोक का शासक और मायावी तांत्रिक शक्तियों में निपुण था। उसका उद्देश्य राम-लक्ष्मण की बलि देकर अपनी शक्ति बढ़ाना था।

रात्रि में वह माया से लंका में प्रवेश कर हनुमान की पहरेदारी को भ्रमित करता है और राम-लक्ष्मण को पाताल लोक में बंदी बना लेता है। हनुमान इस छल को पहचानकर पाताल लोक पहुंचते हैं, जहां माया, रक्षक मकरध्वज और तांत्रिक अवरोधों को पार करते हैं।

अहिरावण के वध की शर्त—एक साथ पांच दिशाओं में स्थित दीप बुझाना—पूरी करने हेतु हनुमान पंचमुखी रूप धारण करते हैं:

हनुमान (पूर्व), नरसिंह (दक्षिण), गरुड़ (पश्चिम), वराह (उत्तर) और हयग्रीव (ऊर्ध्व)।

एक ही क्षण में पांचों दीपों को नष्ट कर अहिरावण का वध किया जाता है। यह प्रसंग साहस, बुद्धि, भक्ति और दिव्य शक्ति का अद्भुत संगम बनकर उभरा और संकट-मोचन के प्रतीक रूप में पंचमुखी हनुमान की महिमा को स्थापित करता है।

कुंभकर्ण वध : अधर्म की अपार शक्ति का अंत

महाबली कुंभकर्ण निद्रा से जागकर युद्ध करता है। उसकी अपार शक्ति के बावजूद श्रीराम के धर्मयुक्त बाणों से उसका वध होता है। यह संदेश स्पष्ट होता है कि शक्ति यदि अधर्म के साथ हो, तो उसका अंत निश्चित है।

मेघनाद (इंद्रजीत) वध : रणनीति और धैर्य की विजय

विभीषण के मार्गदर्शन में लक्ष्मण यज्ञ-भंग कर इंद्रजीत का वध करते हैं। यह प्रसंग बताता है कि विजय केवल बल से नहीं, बल्कि रणनीति और धैर्य से भी प्राप्त होती है।

रावण वध : अहंकार का पूर्ण अंत

अंततः श्रीराम और रावण का निर्णायक संग्राम होता है। विभीषण के संकेत पर रावण की नाभि में स्थित अमृत का रहस्य समझकर श्रीराम ब्रह्मास्त्र से उसका वध करते हैं। यह अहंकार, अन्याय और अधर्म के पूर्ण अंत का प्रतीक बनता है।

सीता अग्नि परीक्षा : लोकमर्यादा की चरम अभिव्यक्ति

लोकमर्यादा की रक्षा हेतु माता सीता अग्नि में प्रवेश करती हैं। अग्निदेव साक्षी बनकर उनकी पवित्रता सिद्ध करते हैं। यह प्रसंग त्याग, धैर्य और नारी मर्यादा की सर्वोच्च अभिव्यक्ति है।

पुष्पक विमान से अयोध्या गमन, भरत मिलाप और

राज्याभिषेक

लंका में विभीषण का राज्याभिषेक कर श्रीराम, सीता और लक्ष्मण पुष्पक विमान से अयोध्या लौटते हैं।

नंदीग्राम में भरत–राम मिलाप करुणा, भक्ति और त्याग का अद्वितीय संगम बनता है।

अयोध्या में विधि-विधान से श्रीराम का राज्याभिषेक होता है। यहीं से रामराज्य का शुभारंभ होता है—जहां प्रजा सुखी है, शासन न्यायपूर्ण है और सत्य-धर्म सर्वोपरि हैं।

सातवें दिन का यह विराट मंचन यह स्थापित करता है कि भक्ति (हनुमान), नीति (राम), त्याग (भरत) और धर्म-विजय ही रामकथा का शाश्वत सार है—

“धर्म के मार्ग पर चलकर ही लोक और परलोक दोनों का कल्याण होता है।”

इस भव्य समापन के साथ महा रामलीला ने वडोदरा की सांस्कृतिक चेतना में भक्ति, विवेक और नैतिक मूल्यों की अमिट छाप छोड़ दी।

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