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हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा द्वारा आयोजित महा रामलीला मंचन का पहला दिन- नारद मोह से विष्णु आकाशवाणी तक, अधर्म के अंत और राम अवतार की दिव्य भूमिका

हिंदीभाषी महासंघ वडोदरा द्वारा आयोजित महा रामलीला मंचन का पहला दिन- नारद मोह से विष्णु आकाशवाणी तक, अधर्म के अंत और राम अवतार की दिव्य भूमिका
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

वडोदरा।

महा रामलीला के पहले दिन रामायण की पावन कथा की ऐसी सशक्त भूमिका प्रस्तुत की गई, जिसने अधर्म के बढ़ते प्रभाव और धर्म स्थापना की अनिवार्यता को गहराई से उजागर किया। मंचन में एक के बाद एक महत्वपूर्ण प्रसंगों को उसी क्रम और भाव के साथ प्रस्तुत किया गया, जिससे दर्शक कथा के प्रवाह से आत्मिक रूप से जुड़ते चले गए।

नारद मोह : माया, अहंकार और आत्मबोध का संदेश

पहले दिन के मंचन की शुरुआत नारद मोह के प्रसंग से हुई। नारद मुनि के भीतर उत्पन्न मोह, उनका आत्ममंथन और अंततः आत्मबोध—इन दृश्यों को कलाकारों ने सटीक संवाद, भाव-भंगिमा और मंचीय संतुलन के साथ प्रस्तुत किया। यह प्रसंग दर्शाता है कि ज्ञान और तपस्या के साथ विनम्रता और विवेक का होना भी उतना ही आवश्यक है। दर्शकों ने इस दृश्य को गहरी गंभीरता और आत्मचिंतन के भाव से देखा।

रावण अत्याचार : अधर्म की पराकाष्ठा का चित्रण

इसके पश्चात रावण के अत्याचार का प्रभावशाली मंचन हुआ। रावण के बढ़ते अहंकार, शक्ति प्रदर्शन और देवताओं-ऋषियों पर हो रहे अन्याय को मंच पर जीवंत किया गया। संवादों और दृश्य संयोजन के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया कि जब सत्ता अहंकार में बदल जाती है, तब वह विनाश का कारण बनती है। इस प्रसंग ने धर्म स्थापना की आवश्यकता को और अधिक प्रखर किया।

मेघनाद की इंद्र पर विजय और इंद्रजीत की उपाधि

पहले दिन का एक प्रमुख और रोमांचक दृश्य मेघनाद द्वारा देवराज इंद्र पर विजय का रहा। युद्ध दृश्य, दिव्य अस्त्रों का प्रयोग और नाटकीय प्रस्तुति के साथ मेघनाद की शक्ति को दर्शाया गया। इंद्र पर विजय के पश्चात उसे इंद्रजीत की उपाधि प्राप्त होना, रावण वंश के गर्व और अहंकार को और अधिक उभारता है, जो आगे चलकर उसके पतन का कारण बनता है।

देवताओं की शरणागति : महादेव के पास सहायता की पुकार

रावण और मेघनाद के अत्याचारों से व्यथित होकर सभी देवगण महादेव की शरण में पहुंचे। यह दृश्य करुणा और शरणागति से परिपूर्ण रहा। देवताओं की विवशता, धर्म संकट और उनके भावनात्मक संवादों ने दर्शकों को भीतर तक छू लिया।

महादेव का मार्गदर्शन : श्रीहरि विष्णु के ध्यान का उपदेश

महादेव ने देवताओं को शांत और करुण स्वर में समझाया कि इस संकट का समाधान केवल भगवान श्रीहरि विष्णु ही कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि श्रीहरि सर्वव्यापी हैं, सृष्टि के कण-कण में व्याप्त हैं और वही धर्म की पुनः स्थापना का मार्ग दिखाएंगे। महादेव के इस मार्गदर्शन ने देवताओं को विष्णु भक्ति और ध्यान की ओर प्रेरित किया।

विष्णु आकाशवाणी : राम अवतार की घोषणा

महादेव के उपदेश के पश्चात देवताओं द्वारा सामूहिक स्तुति और ध्यान का दृश्य अत्यंत भक्तिमय रहा। तभी आकाशवाणी के माध्यम से भगवान श्रीहरि विष्णु की दिव्य वाणी गूंज उठी। विष्णु भगवान ने देवताओं को आश्वस्त करते हुए कहा कि वे स्वयं राम अवतार लेकर पृथ्वी पर जन्म लेंगे और रावण का संहार करेंगे। इस घोषणा के साथ ही देवताओं का भय समाप्त हुआ और उनके हृदय में विश्वास, शांति और आशा का संचार हुआ।

धर्म स्थापना की सशक्त भूमिका और भावी प्रसंगों की भूमिका

पहले दिन का मंचन आध्यात्मिक और वैचारिक दृष्टि से अत्यंत प्रभावशाली रहा। नारद मोह से लेकर विष्णु आकाशवाणी तक की यह कथा-श्रृंखला रामकथा की मजबूत आधारशिला के रूप में स्थापित हुई। मंच पर प्रस्तुत प्रत्येक प्रसंग यह संदेश देता दिखाई दिया कि जब-जब अधर्म अपनी सीमा लांघता है, तब-तब धर्म की पुनर्स्थापना के लिए ईश्वर स्वयं अवतार लेते हैं।

कलाकारों के सशक्त अभिनय, संवादों की स्पष्टता, प्रकाश संयोजन और पारंपरिक वेशभूषा ने मंचन को और भी जीवंत बना दिया। दर्शकों ने पूरे आयोजन के दौरान गहरी तल्लीनता के साथ कथा का आनंद लिया और कई दृश्यों पर तालियों से कलाकारों का उत्साहवर्धन किया।

महा रामलीला के पहले दिन की यह प्रभावी शुरुआत न केवल धार्मिक चेतना को जागृत करने वाली रही, बल्कि आगामी दिनों में भगवान श्रीराम के अवतरण, बाल लीला, वन गमन और रावण वध जैसे दिव्य प्रसंगों के प्रति दर्शकों की श्रद्धा और उत्सुकता को भी कई गुना बढ़ा गई।

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