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स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के शिल्पकार राम सुतार नहीं रहे, भारतीय कला जगत को अपूरणीय क्षति

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के शिल्पकार राम सुतार नहीं रहे, भारतीय कला जगत को अपूरणीय क्षति
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रिपोर्ट : विजय तिवारी

लखनऊ / नई दिल्ली।

भारतीय कला और शिल्प परंपरा को वैश्विक पहचान दिलाने वाले, विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी के शिल्पकार और आधुनिक भारतीय मूर्तिकला के शिखर पुरुष राम सुतार का 100 वर्ष की आयु में लंबी बीमारी के बाद नोएडा में निधन हो गया। उनके निधन से देश ने न केवल एक महान कलाकार, बल्कि भारतीय इतिहास को आकार देने वाले एक युगद्रष्टा को खो दिया है। उनका अंतिम संस्कार आज गुरुग्राम सेक्टर–94 में किया जाएगा।

प्रारंभिक जीवन और कला यात्रा

राम सुतार का जन्म 19 फरवरी 1924 को मध्य प्रदेश के धार जिले में हुआ था। बचपन से ही उन्हें मिट्टी और आकृतियों से विशेष लगाव था। सीमित संसाधनों के बावजूद उन्होंने अपनी कला साधना को कभी नहीं छोड़ा। आगे चलकर उन्होंने जेजे स्कूल ऑफ आर्ट, मुंबई से शिल्पकला की विधिवत शिक्षा प्राप्त की। यहीं से उनके जीवन की वह यात्रा शुरू हुई, जिसने उन्हें विश्वस्तरीय मूर्तिकार के रूप में स्थापित कर दिया।

राष्ट्रीय महापुरुषों को दी शाश्वत आकृति

राम सुतार ने अपने जीवन में भारत के लगभग सभी प्रमुख महापुरुषों की प्रतिमाएँ गढ़ीं। महात्मा गांधी, सरदार वल्लभभाई पटेल, डॉ. भीमराव आंबेडकर, स्वामी विवेकानंद, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू सहित अनेक ऐतिहासिक व्यक्तित्वों की मूर्तियाँ उनकी कला का प्रमाण हैं। संसद भवन परिसर में स्थापित गांधी जी की प्रतिमा से लेकर देश-विदेश के सार्वजनिक स्थलों पर लगी उनकी कृतियाँ भारतीय इतिहास की जीवंत पाठशाला मानी जाती हैं।

स्टैच्यू ऑफ यूनिटी : जीवन की सबसे बड़ी साधना

गुजरात के केवड़िया में स्थापित 182 मीटर ऊँची स्टैच्यू ऑफ यूनिटी राम सुतार की जीवन साधना का शिखर मानी जाती है। सरदार पटेल की इस विशाल प्रतिमा ने न केवल उन्हें विश्व प्रसिद्ध बनाया, बल्कि भारत को भी वैश्विक पर्यटन और सांस्कृतिक मानचित्र पर नई ऊँचाई दी। यह प्रतिमा राष्ट्रीय एकता, दृढ़ इच्छाशक्ति और शिल्प कौशल का प्रतीक बन चुकी है।

दिग्गज नेताओं से संवाद और सम्मान

राम सुतार का संपर्क देश के अनेक शीर्ष नेताओं से रहा। जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी जैसे प्रधानमंत्रियों ने उनके कार्यों की खुले मंच से सराहना की। हाल के वर्षों में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी उनकी कला और समर्पण की प्रशंसा कर चुके थे। कई अवसरों पर उन्होंने राम सुतार को “भारत की आत्मा को पत्थर और कांसे में ढालने वाला कलाकार” बताया।

राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान

कला के क्षेत्र में उनके अद्वितीय योगदान के लिए राम सुतार को पद्म भूषण (1968) और पद्म विभूषण (2016) जैसे देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मानों से सम्मानित किया गया। इसके अलावा देश-विदेश की अनेक कला संस्थाओं और विश्वविद्यालयों ने उन्हें विशेष सम्मान और उपाधियाँ प्रदान कीं। उनकी कृतियाँ आज भी अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और सार्वजनिक स्थलों की शोभा बढ़ा रही हैं।

सादगी और अनुशासन की मिसाल

अपार यश और सम्मान के बावजूद राम सुतार का जीवन अत्यंत सादा रहा। वे कहते थे कि “कलाकार का सबसे बड़ा पुरस्कार उसका काम होता है।” अंतिम समय तक वे शिल्प और रचनात्मकता से जुड़े रहे तथा नई पीढ़ी के कलाकारों को मार्गदर्शन देते रहे।

अपूरणीय क्षति

राम सुतार का निधन भारतीय कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। उनकी मूर्तियाँ आने वाली पीढ़ियों को भारतीय इतिहास, संस्कृति और राष्ट्र निर्माण की भावना से जोड़ती रहेंगी। पत्थर, धातु और कांसे में गढ़ी गई उनकी कृतियाँ उन्हें अमर बनाए रखेंगी, और भारतीय शिल्पकला के स्वर्णिम अध्याय में उनका नाम सदैव अंकित रहेगा।

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