जगदलपुर / बस्तर : देश का मोस्ट वांटेड नक्सली कमांडर माडवी हिड़मा ढेर, दंडकारण्य में सुरक्षा बलों की सबसे बड़ी सफलता

डेस्क रिपोर्ट : विजय तिवारी
आंध्र प्रदेश के मारेदुमिली के गहरे जंगलों में सोमवार तड़के सुरक्षा बलों ने एक संयुक्त अभियान में नक्सल मोर्चे का सबसे खतरनाक नाम माडवी हिड़मा को ढेर कर दिया। दंतेवाड़ा-सुकमा क्षेत्र में वर्षों तक खूनखराबे का चेहरा रहा यह नक्सली कमांडर कई राज्यों की संयुक्त निगरानी में चल रहे अभियान का लक्ष्य था। उसकी मौत को सुरक्षा एजेंसियाँ बस्तर क्षेत्र में “सैन्य स्तर की निर्णायक बढ़त” मान रही हैं।
ऑपरेशन कैसे चला?
पिछले कुछ हफ्तों से हिड़मा के सीमावर्ती क्षेत्रों में सक्रिय होने की लगातार खुफिया सूचनाएँ मिल रही थीं। इसी आधार पर छत्तीसगढ़ पुलिस, आंध्र प्रदेश की ग्रेहाउंड फोर्स, CRPF और इंटेलिजेंस यूनिट्स ने त्रिसीमा क्षेत्र में गुप्त घेराबंदी बनाई।
सुबह करीब 6 बजे, मारेदुमिली के पहाड़ी और घने वनमार्ग में जब नक्सली दस्ता आगे बढ़ रहा था, तभी सुरक्षा बलों ने उसे इंटरसेप्ट किया। कुछ ही मिनटों में गोलीबारी तेज़ हुई और संघर्ष लगभग एक घंटे चला।
मुठभेड़ में हिड़मा, उसकी पत्नी रजक्का और उसके विश्वस्त दस्ते के कई साथी मारे गए।
मौके से
दो AK-47,
एक पिस्तौल,
संचार उपकरण,
और बैकपैक
बरामद किए गए, जो संकेत देते हैं कि हिड़मा दंडकारण्य के भीतर किसी अहम बैठक या स्थानांतरण की तैयारी में था।
हिड़मा कौन था?
सुकमा जिले के पुवर्ति गांव में जन्मा माडवी हिड़मा कम उम्र में ही माओवादी संगठन से जुड़ गया था।
समय के साथ वह CPI (माओवादी) की सबसे सक्रिय सैन्य इकाई PLGA बटालियन-1 का कमांडर बना। उसकी पहचान सिर्फ हमलों के लिए नहीं, बल्कि जंगल युद्ध रणनीति—एम्बुश-लेआउट, गहरे जंगलों से रैपिड मूवमेंट और IED तकनीक—के कारण हुई।
प्रमुख हमलों में मुख्य भूमिका
2010 ताड़मेटला हमला – 76 जवान शहीद
2013 झीरम घाटी हमला – बड़े राजनीतिक चेहरे निशाना बने
बस्तर क्षेत्र में अनेक घात, IED विस्फोट, काफ़िला हमले
150+ जवानों की हत्या में प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष भूमिका
उसके ऊपर ₹1 करोड़ तक का सरकारी इनाम घोषित था।
हिड़मा का नेटवर्क कमजोर क्यों पड़ रहा था?
आतंरिक मतभेद बढ़ रहे थे; कई पुराने कैडर उसके फैसलों से असहमत थे।
सड़कें, कैंप और मोबाइल टावरों के बाद ग्रामीणों पर उसकी पकड़ कम हुई।
पिछले दो वर्षों में 30 से अधिक सदस्य मार गिराए गए या आत्मसमर्पण कर चुके थे।
तीन राज्यों के बीच चल रही संयुक्त निगरानी से उसके दस्ता का मूवमेंट सीमित हो गया था।
यह पहली बार था कि उसके ठिकानों की लोकेशन लगातार ड्रोन्स और ग्राउंड ट्रैकर्स पर पकड़ में आने लगी।
ऑपरेशन स्थल का महत्व
मारेदुमिली का जंगल नक्सलियों का
सुरक्षित ट्रांजिट पॉइंट,
हथियार यातायात मार्ग,
और आंतरिक बैठकों का स्थान
रहा है।
इसी क्षेत्र में सुरक्षा बलों का दबदबा बढ़ना दंडकारण्य की कई सक्रिय शाखाओं की रीढ़ पर चोट माना जा रहा है।
पहचान कैसे की गई?
सुरक्षा बलों ने
शरीर पर मौजूद विशिष्ट निशानों,
चेहरे की संरचना,
और बरामद हथियारों
के आधार पर पहले चरण में पुष्टि की। इसके बाद उच्च स्तरीय टीम ने आधिकारिक तौर पर घोषणा की कि मारा गया व्यक्ति वास्तव में माडवी हिड़मा ही है।
संगठन में अगला नेतृत्व कौन?
हिड़मा के बाद मोर्चा सम्भवतः
बासा,
भीमा,
या मिसीरू जैसे पुराने कैडर
के हाथ में जा सकता है।
लेकिन सुरक्षा एजेंसियों का मानना है कि हिड़मा जैसी आक्रामक युद्ध क्षमता और रणनीति किसी अन्य में नहीं दिखती।
क्यों माना जा रहा है यह निर्णायक मोड़?
दंडकारण्य के सबसे प्रशिक्षित दस्ते का नेतृत्व खत्म हुआ।
संगठन के सैन्य ढांचे में नेतृत्व-शून्यता आएगी।
भर्ती, प्रशिक्षण और ग्रामीण दबदबे की पूरी प्रणाली हिलेगी।
सुरक्षा बलों के मनोबल में भारी बढ़ोतरी।
त्रिसीमा गलियारे में पहली बार स्पष्ट वर्चस्व।
अब आगे क्या?
भले ही हिड़मा ढेर हो चुका है, लेकिन
दक्षिण बस्तर के दुर्गम पहाड़ी जंगल,
छोटे-छोटे गुट,
और सीमांत गांवों में कमजोर विकास
फिर भी चुनौती बने रहेंगे।
अब सरकार और सुरक्षा एजेंसियों का फोकस
एरिया डॉमिनेशन,
सड़क-संचार विस्तार,
आदिवासी विकास,
और आत्मसमर्पण नीति
पर और तेज़ होगा, ताकि इस सफलता को स्थायी शांति में बदला जा सके।
माडवी हिड़मा का खात्मा सिर्फ एक नक्सली कमांडर की मौत नहीं, बल्कि दंडकारण्य में चल रही लंबी लड़ाई का एक बड़ा मोड़ है। यह सफलता नक्सलवाद की सबसे गहरी जड़ों पर चोट करती है। अब चुनौती इस बढ़त को बनाए रखते हुए क्षेत्र में स्थायी सुरक्षा और विकास स्थापित करने की है।




