नौकरी का था वादा, चला रहे हैं लाठी

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Anonymous14 Dec 2022 1:47 AM GMT
नौकरी का था वादा।
चलवा रहे है लाठी।।
कैसी है यह बर्बरता?
समझो यह है झांकी।।
चुनावी था जो वादा।
दस लाख देंगे रोजगार।।
कलम बन गई है लाठी।
साईन किया शर्मसार।।
खुल रही है अब पोल।
हकीकत यह है बयां।।
दौड़ा दौड़ा कर बांट।
रहे रोजगार ये नया।।
पहली ही बैठक में।
लेना था यह निर्णय।।
क्या ऐसे पूरे होंगे वादे?
बनकर दहशत, भय।।
दुर्भाग्य की है बात।
राष्ट्र के हैं ये निर्माता।।
मांग रहे हैं रोजगार।
सलूक ऐसे किया जाता।।
सुशासन को एहसास।
सुबुद्धि दो उन्हें विधाता।।
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