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बिहार

शहाबुद्दीन के गढ़ में सियासी जंग तेज़ : RJD की पकड़ ढीली, ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम वोटों में दरार — BJP ने मंत्री अवध बिहारी पर जताया भरोसा, जनता बोली- ‘काम बोलता है, चेहरा नहीं’

शहाबुद्दीन के गढ़ में सियासी जंग तेज़ : RJD की पकड़ ढीली, ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम वोटों में दरार — BJP ने मंत्री अवध बिहारी पर जताया भरोसा, जनता बोली- ‘काम बोलता है, चेहरा नहीं’
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डेस्क रिपोर्ट : विजय तिवारी

सीवान (बिहार) : राजद के कद्दावर नेता दिवंगत मोहम्मद शहाबुद्दीन का गढ़ माने जाने वाले सीवान की राजनीति एक बार फिर गर्मा गई है। उपचुनाव के ऐलान के साथ ही यहां का चुनावी समीकरण पूरी तरह बदल चुका है। कभी RJD का अभेद्य किला समझे जाने वाले इस क्षेत्र में अब मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है — एक ओर RJD अपनी साख बचाने में जुटी है, तो दूसरी ओर AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी ने मुस्लिम वोटबैंक में सेंध लगाने के लिए अपना दांव चला है। वहीं बीजेपी ने अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराने के लिए राज्य के मंत्री अवध बिहारी को मैदान में उतारा है।

RJD की साख दांव पर

सीवान हमेशा से ही लालू-तेजस्वी की पार्टी का गढ़ माना जाता रहा है, लेकिन इस बार हालात पहले जैसे नहीं हैं। जनसुराज अभियान के तहत तेजस्वी यादव यहां लगातार जनसंपर्क में हैं, पर स्थानीय स्तर पर संगठन में मतभेद और उम्मीदवार चयन को लेकर असंतोष की चर्चा जोरों पर है।

राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, AIMIM और जनसुराज जैसे विकल्पों के आने से RJD का पारंपरिक वोटबैंक बिखर सकता है। ग्रामीण इलाकों में पिछड़े वर्ग और अल्पसंख्यक मतदाता इस बार खुलकर मंथन करते दिख रहे हैं।

AIMIM का उभरता आत्मविश्वास

ओवैसी की पार्टी ने इस बार सीधे मुस्लिम वोटरों पर फोकस करते हुए मैदान में एक स्थानीय मुस्लिम उम्मीदवार उतारा है, जिसकी पकड़ जमीनी स्तर पर मजबूत मानी जा रही है। पार्टी ने गांव-गांव जाकर जनसंपर्क शुरू कर दिया है, साथ ही स्थानीय मुद्दों — बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी — को चुनावी केंद्र बना रही है।

युवा मतदाताओं में AIMIM की ओर झुकाव देखा जा रहा है, खासकर उन इलाकों में जहां पारंपरिक रूप से RJD को भारी समर्थन मिलता था।

BJP की रणनीति और आत्मविश्वास

भाजपा ने इस उपचुनाव को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है। पार्टी ने अपने लोकप्रिय मंत्री अवध बिहारी को उम्मीदवार बनाकर सीधा संदेश दिया है कि वह विकास और प्रशासनिक अनुभव के दम पर मुकाबले में है। अवध बिहारी का स्थानीय कद, उनका साफ-सुथरा राजनीतिक रिकॉर्ड और जनता से जुड़ाव भाजपा के लिए प्लस पॉइंट बनकर उभरा है।

पार्टी का फोकस जातीय समीकरणों से अधिक “विकास और स्थिर शासन” की छवि पर है। भाजपा कार्यकर्ता बूथ स्तर तक पहुंच बना रहे हैं और सोशल मीडिया पर भी “सीवान बदलेगा, बिहार बढ़ेगा” जैसे नारे से माहौल बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

जनता की राय और बदलता रुझान

ग्रामीण इलाकों से लेकर शहर तक एक बात आम सुनने को मिल रही है — “अवध बिहारी पसंद हैं, AIMIM से दिक्कत नहीं।” यह संकेत बताता है कि मतदाता इस बार परंपरागत जातीय और धार्मिक सीमाओं से आगे बढ़कर स्थानीय नेतृत्व और कामकाज को तवज्जो दे रहे हैं।

कई मतदाता मानते हैं कि अब सिर्फ नारे या जातीय समीकरण नहीं, बल्कि काम और भरोसे की राजनीति चलेगी।

राजनीतिक विश्लेषण और संकेत

राजनीति के जानकार मानते हैं कि सीवान की यह सीट इस बार सिर्फ एक विधानसभा सीट नहीं, बल्कि पूरे बिहार की सियासी दिशा तय करने वाली साबित हो सकती है। अगर AIMIM को यहां अच्छी बढ़त मिलती है, तो यह RJD के लिए बड़ा झटका होगा। वहीं, भाजपा के लिए यह सीट मुस्लिम बहुल इलाके में अपनी पैठ का सबूत बन सकती है।

शहाबुद्दीन का गढ़ अब किसी एक पार्टी की पहचान भर नहीं रहा। सियासत का मैदान खुल चुका है, हर दल अपनी पूरी ताकत झोंक चुका है और जनता इस बार पहले से ज्यादा सजग दिख रही है।

अब देखना यह होगा कि परंपरा पर भरोसा भारी पड़ता है या बदलाव की लहर जीत दर्ज करती है।

सीवान का नतीजा सिर्फ एक उपचुनाव नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति का भविष्य तय करेगा।

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