23 मई को नतीजे आने के बाद तीन तरह के समीकरण बन सकते हैं...

1 मोदी के नेतृत्व में एनडीए को पूर्ण बहुमत
2 मोदी के नेतृत्व में एनडीए 272 के जादुई आंकड़ें से दूर रह सकती, लेकिन उन्हें 230 से ज़्यादा सीटें मिल सकती है. ऐसे हालात में वाईआरएस कांग्रेस, टीआरएस और बीजेडी जैसी क्षेत्रीय पार्टियां समर्थन के बदले बड़े पद के लिए मोल-भाव कर सकती हैं.
3 तीसरा विकल्प ये है कि गैर एनडीए पार्टियों को 300 से ज़्यादा सीटें मिल जाएं. मोदी को बाहर रख कर कांग्रेस खुश हो जाएगी.
ऐसे में कहा जा सकता है कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर सामने आ सकती है. लेकिन बीजेपी के लिए चुनौती ये है कि अगर उन्हें 180-190 सीटें मिलती हैं तो फिर उन्हें साझा सरकार चलाना होगा.
अगर कांग्रेस को आधी सीटें यानी 272 के आस-पास मिल जाती हैं तो फिर बीजेपी और मोदी के लिए मुश्किलें खड़ी हो जाएंगी. ज़्यादातर क्षेत्रीय दल कांग्रेस के साथ मोल-भाव करने की कोशिश करेंगे.
अगर किसी दल को बहुमत नहीं मिलता है तो फिर मायावती और ममता बनर्जी को स्टालिन, नवीन पटनायक, अखिलेश यादव, केसीआर, जगन मोहन रेड्डी, तेजस्वी यादव और राहुल गांधी से समर्थन मिल सकता है. ममता के लिए दिल्ली आना आसान नहीं होगा, क्योंकि पश्चिम बंगाल में कोई और मुख्यमंत्री पद के लिए तैयार नहीं है.
सोनिया गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को काफी लो प्रोफाइल रखा है. वो एक मां और पूर्व अध्यक्ष होने के नाते राहुल को पूरी आजादी देना चाहती हैं. लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद वह भी रणनीति तैयार करना शुरू कर देंगी.
सोनिया को ये अच्छी तरह पता है कि गैर-एनडीए दलों को एक ऐसे व्यक्ति की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चल सके. जो काम जय प्रकाश नारायण (1977) या फिर वीपी सिंह, हरकिशन सिंह सुरजीत (1996, 2004) ने किया था वही काम उन्हें करना होगा.
गुलाम नवी पहले ही बोल चुके है ...कांग्रेस को प्रधानमंत्री पद नहीं दिया जाता है तो कोई आपत्ति नहीं होगी. अ.गर ऐसा हुआ तो फिर कांग्रेस को गैर-एनडीए पार्टी से हाथ मिलाने में कोई परेशानी नहीं होगी.
बीजेपी की ताकत ही उनकी कमज़ोरी है, क्योंकि पीएम पद के लिए वो किसी के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं. इतना ही नहीं बड़े मंत्रालय जैसे कि गृह, रक्षा, रेलवे भी किसी दल के लिए बीजेपी से लेना आसान नहीं होगा.