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चुनाव 2019

रॉबर्ट्सगंज सुरक्षित सीट पर गठबंधन से अपना दल को मिल रही कड़ी चुनौती

रॉबर्ट्सगंज सुरक्षित सीट पर गठबंधन से अपना दल को मिल रही कड़ी चुनौती
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लखनऊः सोनभद्र जिले का गठन 4 मार्च 1989 को मिर्जापुर जनपद के दक्षिणी हिस्से को अलग करके किया गया। सोन, कर्मनाशा, चंद्रप्रभा, रिहंद, रेणू, घग्गर इत्यादि नदियां इसके ग्रामीण इलाकों से होकर बहती हैं। इस शहर का नामकरण ब्रिटिश-राज में अंग्रेजी सेना के फील्ड मार्शल फ्रेडरिक रॉबर्ट के नाम पर हुआ था। यह शहर विन्ध्य और कैमूर की पहाड़ियों के बीच स्थित है। आस-पास के क्षेत्रों में बहुतायत में मिलने वाली गुफाओं के भित्ति-चित्र और चट्टानों पर की गई चित्रकारी से इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि ये क्षेत्र प्रागैतिहासिक काल से ही मानव की गतिविधियों का केंद्र रहा है।

रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट उत्तर प्रदेश के आखिरी छोर पर है। इस लोकसभा सीट पर सभी प्रमुख दलों ने बाहरी प्रत्याशियों पर दांव लगाया है। भाजपा ने यह सीट अपना दल को दी है, तो सपा-बसपा गठबंधन में यह सीट सपा के पास है। अपना दल से पकौड़ी लाल अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, तो समाजवादी पार्टी से भाई लाल कोल चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस ने भगवती चौधरी को मैदान में उतारा है। तीनों ही प्रत्याशी मिर्जापुर के हैं। पकौड़ी लाल 2009 में सांसद रह चुके हैं। पिछली बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे। इस बार उन्होंने अपना पाला बदलकर 'अपना दल' से चुनाव लड़ रहे हैं।

रॉबर्ट्सगंज सीट पर अभी तक 15 बार चुनाव हुए हैं, जिसमें भाजपा और कांग्रेस को लगभग बराबर जीत मिली है। पांच बार कांग्रेस प्रत्याशी विजयी रहे हैं, तो पांच ही बार भाजपा प्रत्याशियों को जीत मिली है। यहां पर जनता पार्टी को एक बार, जनता दल को एक बार, समाजवादी पार्टी को एक बार और उपचुनाव को लेकर बसपा को दो बार जीत हासिल हुई है। कांग्रेस को अंतिम बार 1984 में यहां से जीत मिली थी। उसके बाद कांग्रेस का खाता नहीं खुल पाया।

2014 के आंकड़ों के अनुसार रॉबर्ट्सगंज लोकसभा सीट पर कुल 16,92,618 मतदाता हैं, जिनमें 9,11,331 पुरुष और 7,81,232 महिला मतदाता हैं।

2014 के चुनाव में भाजपा के छोटेलाल को 378211 वोट मिले थे। दूसरे नंबर पर बहुजन समाज पार्टी के शारदा प्रसाद थे, जिनको 1,87,725 वोट मिले थे। रॉबर्ट्सगंज में 5 विधानसभा सीटें आती हैं, जिसमें चकिया, घोरावल, रॉबर्ट्सगंज, ओबरा औहर दुद्धी शामिल हैं।

बदले हुए समीकरण में अगर विश्लेषण करें, तो पता चलता है कि सपा-बसपा के वोट को मिला दिया जाये तो गठबंधन का वोट ज्यादा हो जाएगा और भाजपा को मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। इस बार गठबंधन प्रत्याशियों के भारतीय जनता पार्टी को कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

इसके अलावा केंद्र और राज्य सरकार के प्रति एंटी-इनकंबेंसी भी काफी हद तक देखी जा रही है। लेकिन इस सीट के साथ एक बात और जुड़ी है। पीएम मोदी इस जिले की सीमा के बहुत नजदीक सीट से चुनाव मैदान में हैं। पिछली बार के चुनाव में पीएम की एक जनसभा ने इस लोकसभा सीट के चुनावी समीकरण को बदल दिया था। ऐसा माना जा रहा है कि वाराणसी से चुनाव लड़कर प्रधानमंत्री आसपास की सीटों को साधने का प्रयास करेंगे। मिर्जापुर से अपना दल की प्रत्याशी अनुप्रिया पटेल चुनाव मैदान में हैं। उनका भी पूरा प्रयास रहेगा कि यह सीट एनडीए के खाते में आए।

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