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चुनाव 2019

अयोध्या- हमरे इहां तो भैया फुलवै कै जोर बाय

अयोध्या- हमरे इहां तो भैया फुलवै कै जोर बाय
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सरयू तीरे चुनावी बयार बह रही है। इधर, पूर्वाह्न की दस्तक के साथ कलेक्ट्रेट और कमिश्नरी की रौनक अफरोज हो रही है। कमिश्नरी के बगल नित्य की तरह शंकर अपने ठेले पर ग्राहकों के आर्डर पर बेल का शर्बत बना रहे होते हैं। का माहौल है भइया...। इस सवाल पर युवा शंकर कुछ पल के लिए ठिठकते हैं और अगले पल कहते हैं, अबकिवै कमल खिली...।

फैजाबाद जनपद का नाम अब अयोध्या भले ही हो गया है, लेकिन चुनाव आयोग के रिकार्ड में यह अब भी फैजाबाद संसदीय क्षेत्र के रूप में ही दर्ज है। शंकर के ठेले पर बातचीत के दौरान आस-पास के कुछ अन्य लोग भी चर्चा में शामिल हो जाते हैं। चुनावी माहौल के सवाल पर बगल में ही बाटी-चोखा की दुकान चलाने वाले गुड्डू यादव सूत्रात्मक अंदाज में कहते हैं, मोदी कै काम सही है...। यहीं बाटी-चोखा और शर्बत का इंतजार कर रहे ग्राहकों को भी टटोलने का मौका मिला। नेटवर्क मार्केटिंग से जुड़े श्याम मोहन पांडेय और उनके साथ मौजूद विजय, अंशु निषाद और राहुल एक स्वर में कहते हैं, मोदी की टक्कर का कोई नहीं...। हालांकि इसी झुंड में शामिल रामकुमार यादव इस बात से सहमत नहीं हैं। कहते हैं, गठबंधन सशक्तविकल्प के तौर पर प्रस्तुत है...। करीब 10 मिनट बाद हम फैजाबाद लोकसभा के अयोध्या विधानसभा क्षेत्र अंतर्गत पूरा काशीनाथ की एक परचून की दुकान पर होते हैं। दुकान पर बैठे गौरव यादव चुनावी जिक्रआते ही बोल पड़ते हैं, देश के बारे में सोचें तो मोदी ही दिखाई पड़ते हैं...। मोपेड से फेरी लगाकर जरूरत की वस्तुएं बेंचने वाले मुहम्मद नासिर कहते हैं, मोदी की हवा है पर हम राहुल के साथ हैं...।

विकास की बाट जोहती रही अयोध्या राजनीति को भी करीने से समझती है। रामनगरी भले ही युगों पूर्व से धर्म की राजधानी के तौर पर प्रतिष्ठित रही हो पर सियासी तौर पर यह नगरी तब प्रतिष्ठित हुई, जब रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद से राजनीति की भी दशा-दिशा तय होने लगी। हां, सरयू की लहरें अब कुछ अलग अहसास जरूर कराने लगी हैं। भाजपा में प्रदेश की सरकार बनने के बाद अयोध्या न सिर्फ विकास के केंद्र में है, बल्कि विवादों से ऊपर उठते हुए अपनी राममय पहचान के साथ ही उभरा है। यह पहचान आस्था के साथ तो जुड़ी ही है, विकास की लहरों पर पर भी सवार है। 1991 का आम चुनाव मंदिर मुद्दे से ही उभरी रामलहर में लड़ा गया। इस लहर में लोकसभा में भाजपा के सदस्यों की संख्या सवा सौ के करीब जा पहुंची।

उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान व हिमांचल प्रदेश में भाजपा की सरकार बनी। रामनगरी को दामन में समेटे अयोध्या विधानसभा और फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र को भगवा दुर्ग का रुतबा हासिल हुआ। गत दशक यदि इस दुर्ग के क्षरण के नाम रहा, तो मौजूदा दशक इस दुर्ग की पुनस्र्थापना का है। गौरव की वापसी के मूल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व मुख्यमंत्री योगी हैं। यहां की सियासी फिजां इसे महसूस भी कर रही है।

फैजाबाद में भाजपा ने अपने पुराने प्रत्याशी लल्लू सिंह पर ही उम्मीदों का टोकरा रखा है। सपा- बसपा गठबंधन से आनंदसेन यादव हैं जो पूर्व सांसद मित्रसेन यादव के बेटे हैं और जिन्हें गठबंधन के वोटों का सहारा है। कांग्रेस ने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष निर्मल खत्री को उतारा है, जो क्षेत्र में सहज ही लोकप्रिय हैं। हालांकि इन प्रत्याशियों से ऊपर मोदी का चेहरा है जो चुनाव में हर चौराहे पर चर्चा का केंद्र है।

शाम हो चली है..., रुदौली विधानसभा के ममरेजनगर निवासी बृजेश गुप्त और उनके चार-छह साथी घर जाने के लिए सवारी के इंतजार में हैं। किसकी सरकार आएगी, यह सवाल सुनते ही वह कहते हैं कि मोदी हारि जइहैं तौ नाक कटि जाई...। इनकी बातों से लगता है कि जैसे खुद मोदी ही यहां से चुनाव लड़ रहे हों। खेत से गेहूं की मड़ाई कराकर लौट रहे किसान रामसुरेश कहते हैं, हमरे इहां फुलवै (कमल) कै जोर बाय...।

कांग्रेस ने छह और भाजपा ने चार चुनाव जीते

आजादी के बाद हुए लोकसभा के छह चुनावों में फैजाबाद लोकसभा क्षेत्र में कांग्रेस का ही जादू चला। इस तिलिस्म को 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी के अनंतराम जायसवाल ने तोड़ा। हालांकि 1980 के चुनाव में कांग्रेस ने यह सीट जनता पार्टी से वापस छीनी और 1984 के चुनाव में निर्मल खत्री ने यह सीट कांग्रेस के लिए बहाल रखी। 1989 में भाकपा से मित्रसेन यादव जीते। इसके बाद हुए सात चुनाव में चार बार भाजपा, एक बार सपा, एक बार बसपा और एक बार कांग्रेस जीती

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