पीएम मोदी की आपत्तिजनक फोटो सोशल मीडिया पर वायरल, पुलिस में शिकायत दर्ज

देवरिया, । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आपत्तिजनक फोटो एक वर्ग विशेष के युवक द्वारा देवरिया में सोशल मीडिया पर डालने का मामला सामने में आया है। इससे हिंदु युवा वाहिनी (हियुवा) कार्यकर्ताओं में आक्रोश है।
जिलामंत्री अरुण कुमार सिंह ने पुलिस को तहरीर देकर सोमवार को आवश्यक कार्रवाई की मांग की। पुलिस मामले की छानबीन में जुट गई है। हालांकि, देर शाम तक इस मामले में मुकदमे की कार्रवाई नहीं हो सकी थी। युवक लार थाना क्षेत्र का रहने वाला है। प्रभारी निरीक्षक विजय सिंह गौर ने कहा कि तहरीर मिली है। जांच की जा रही है। जल्द ही मुकदमा पंजीकृत कर लिया जाएगा।
कैडर पर भारी पेडवर्कर, सोशल मीडिया बना प्रचार का माध्यम
पहले के चुनाव में पार्टी कैडरों की बड़ी पूछ होती थी। कैडर भी अपने महत्व को समझते थे। लेकिन जमाना बदला, साथ ही प्रचार का तरीका भी। ऐसे में अब उनका महत्व भी घट गया। इस बार के महासमर में बैनर-पोस्टर लगाने वाले कार्यकर्ता चुनावी परिदृश्य से बाहर है। अब आम वर्कर की जगह पेड वर्कर ने ले ली है।
पहले नामांकन के बाद से ही पार्टी प्रत्याशी कार्यकर्ताओं की खोज शुरू कर देते थे। झंडा, पोस्टर, दीवार लेखन के लिए कार्यकर्ता दिन-रात मेहनत करते थे। जिस दल के पास जितने कार्यकर्ता होते थे वह दल चुनाव में उतना ही मजबूत माना जाता था। यही कारण था कि ऐसे लोगों की भी दल में एक अलग अहमियत थी। चुनावी खर्च का जिम्मा कैडरों के पास होता था। कार्यकर्ता भी चुनाव तक के लिए आम लोगों से चंदा लेते थे। 2009 के चुनाव तक कार्यकर्ताओं की अहमियत थी।
2014 में भी पार्टी प्रत्याशी थोड़ा बहुत पार्टी कैडरों को महत्व देते रहे। लेकिन 2019 में होने वाले महासमर से ऐसे कार्यकर्ताओं का रोल चुनावी परिदृश्य में कहीं नहीं दिखता। बाहरी लोग प्रत्याशी पर हावी होने लगे हैं। इस कारण धीरे-धीरे कार्यकर्ताओं का यह तंत्र पूरी तरह बिखर गया। अब अधिकांश क्षेत्रों में राष्ट्रीय दल के उम्मीदवार चुनाव मैनेजमेंट का काम प्रचार एजेंसियों को सौंपकर निश्चिंत हो जाते हैं।
एक राजनैतिक दल के युवा कार्यकर्ता आनंद सिंह का कहना है कि अब प्रचार का तरीका बदल गया है। स्थानीय स्तर पर यह काम नहीं हो सकता। चुनाव में अब पोस्टर, दीवार लेखन का जमाना नहीं रहा। पार्टी उम्मीदवार प्रमोद कुमार और देवकी नंदन का कहना है कि इसके लिए पार्टी कैडर ही दोषी हैं।
आज स्थिति यह है कि वर्कर हर काम की मजदूरी चाहते हैं। यदि उनका स्वार्थ सिद्ध नहीं होता है तो वे रातों-रात पाला बदल लेते हैं। प्रत्याशी के विरोध में भितरघात भी करने लगते हैं। ऐसी स्थिति में उम्मीदवारों ने पार्टी कैडर के बदले पेड वर्कर को ज्यादा महत्व देना शुरू कर दिया। जो उनकी मन की बात को सुनते और समझते हैं।




