जाने कैसे असर डाल सकते हैं फ्लोटिंग वोटर

वोट किसे देना है, यह तय करने में अंतिम समय तक अनिर्णय की स्थिति में रहने वाले मतदाता इस श्रेणी में आते हैं। इनके लिए पार्टी या विचारधारा अहम नहीं। जिस पार्टी के प्रचार से प्रभावित हो जाएं या जिसे जीतता हुआ आंक लें, उधर चले जाते हैं। पार्टी की लीडरशिप या प्रत्याशी से प्रभावित होकर उसके साथ जा सकते हैं।आसपास के प्रभावशाली लोग जिधर जाते हैं, ये भी वही राह अपना सकते हैं।
लोकसभा चुनाव में हार को जीत में बदलने में 'फ्लोटिंग वोटर' अहम भूमिका निभा सकते हैं। कम अंतर यानी 3 से 5 फीसदी फ्लोटिंग वोटर नतीजे में बड़ा बदलाव कर सकते हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में आधा दर्जन सीटें ऐसी थीं, जिसे भाजपा पांच प्रतिशत से कम वोटों के अंतर जीती थीं।
पिछले लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा व अपना दल ने मिलकर 43.30 प्रतिशत वोट हासिल किए और 80 में से 73 सीटें जीत ली थीं। सपा 22.20 प्रतिशत वोट लेकर पांच सीटें और बसपा 19.60 प्रतिशत वोट हासिल करने के बावजूद एक सीट भी नहीं जीत पाई थी।
2019 में सपा-बसपा-रालोद का गठबंधन है। 2014 के इनके वोट शेयर काे जोड़ें तो यह 42.32 % हो जाता है, यह एनडीए से एक प्रतिशत कम है।2-3 प्रतिशत फ्लोटिंग वोटर जहां-जैसी भूमिका निभाएगा, नतीजों में फर्क ला सकता है।
विश्लेषक बताते हैं कि फ्लोटिंग वोटर को लुभावने वादे अधिक प्रभावित करते हैं। ऐसे वादे जो सीधे उन्हें लाभ पहुंचाए। भाजपा का किसानों को नकद भुगतान, कांग्रेस का 'न्याय' का वादा भी ऐसी ही श्रेणी में आते हैं। मायावती नौकरी देने की बात कर रही हैं। अखिलेश यादव रोजगार देने की बात कर रहे हैं।
पीएम मोदी ने पिछले लोकसभा चुनाव में भी फर्स्ट टाइम वोटर को अपने अभियान के केंद्र में रखा था और इस चुनाव में भी वे यही अपील कर रहे हैं।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और सपा मुखिया अखिलेश यादव युवाओं को जोड़ने पर लगातार फोकस कर रहे हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती ने युवाओं को पार्टी की ओर आकृष्ट करने के लिए अपने युवा भतीजे आकाश आनंद को साथ-साथ मंच पर ले जाना और आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।




