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उत्तर प्रदेश

शपथ को लेकर खत्म हुआ सस्पेंस, अतुल राय बन ही गये मेंबर आफ पार्लियामेंट

शपथ को लेकर खत्म हुआ सस्पेंस, अतुल राय बन ही गये मेंबर आफ  पार्लियामेंट
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लखनऊ। पिछले लोकसभा चुनावों में भाजपा की लहर में राहुल गांधी सरीखे दिग्गज बह गये थे। सपा-बसपा गठबंधन को लेकर कयास तो तमाम लगाये गये थे लेकिन इसकी भी 'हवा' निकल गयी। ऐसी परिस्थितियों के बावजूद 'फरारी' की दशा में बसपा के टिकट पर घोसी से चुनाव जीत कर अतुल राय ने सभी को सकते में डाल दिया था। बावजूद इसके पिछले सात महीनों से वह संसद की सीढ़ियां नहीं चढ़ सके थे। दुष्कर्म के मामले में आरोपित होने के चलते उन्होंने कोर्ट में समर्पण किया तो बाहर निकलने की खातिर तमाम कानूनी दांव-पेंच अपनाने पड़े। हाइकोर्ट में जस्टिस रमेश सिन्हा की पीठ ने इसकी खातिर अनुमति दे दी थी लेकिन पीड़िता के सुप्रीम कोर्ट जाने से एक बार फिर उलझता दिख रहा था। सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप न करने के चलते अंतत: अतुल राय ने शुक्रवार को लोकसभा सदस्य के रूप में शपथ ले ली तो समर्थकों के जान में जान आयी।

सीधे सांसद के रूप में राजनैतिक सफर

गौरतलब है कि अतुल राय ने अपना राजनैतिक कैरियर पिछले विधानसभा चुनावों से शुरू किया था। जमानियां (गाजपिुर) से बसपा के टिकट पर वह चुनाव लड़े थे लेकिन पराजय का सामना करहना पड़ा। खास यह कि जिले के दिग्गज राजनेता और कैैबिनेट मंत्री से लेकर सांसद तक रह चुके ओमप्रकाश सिंह को अतुल राय ने तीसरे नंबर पर धकेल दिया था। यहां से भाजपा प्रत्याशी संगीता परीक्षित को जीत हासिल हुई। अतुल राय को गाजीपुर के एक बाहुबली का करीबी माना जाता था लेकिन लोकसभा चुनाव के समय घोसी (मऊ) से बसपा ने उन पर दांव लगाया तो चर्चाओं का बाजार गर्म होने लगा। बहरहाल दोनों पक्षों ने इस पर खुल कर टिप्पणी नहीं की।

शपथ तक ही बजट सत्र का हिस्सा रहंगे

अतुल राय को भले ही शपथ दिला दी गयी लेकिन वह बजट सत्र में हिस्सा नहीं ले सकेंंगे। दरअसल राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद द्वारा संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक में अभिभाषण के बाद बजट सत्र के पहले दिन लोकसभा की कार्यवाही शुरू होने पर अतुल राय को शपथ दिलायी गयी। हाइकोर्ट ने उन्हें सिर्फ शपथ ग्रहण तक के लिए पैरोल दी थी और उसके बाद सीओ के नेतृत्व में लेकर गयी फोर्स को वापस लेकर आना था। समूची कार्रवाई को एडीजी इलाहाबाद मानीटर कर रहे थे।

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