मजबूर कश्मीरी पंडितो की एक नही दो-दो पीढ़िया प्रभावित हुई है

धनंजय सिंह ....
देश का गणतंत्र अपना 70साल पूरा कर लिया है, तो वही एक दुखद अध्याय का भी 30साल पूरा हो गया है।
अपने घर से कश्मीरी पंडितो का निष्कासन यह भी सिर्फ मजहब के आधार पर देश की ऐसी हकीकत है,जो शर्मसार करती है।
एक पीढ़ी बर्बाद हो गई
दूसरी जड़ों से कट गई
बिना कसूर घर गांव छोड़ने को मजबूर कश्मीरी पंडितो की एक नही दो-दो पीढ़िया प्रभावित हुई है।
विस्थापन के दंश के चलते उस दौर के कई युवा और किशोर अपने सपनो को आकार नही दे पाए।न पढ़ाई कर सके,न नौकरी मिल पाई।बिगड़े माहौल मे दर बदर हुए परिवार को समेटने और जरूरते पूरी करने मे ही समय निकल गया।
अब न नौकरी की उम्र बची है,न ही कोई काम धंधा।
सरकार की मदद से घर चल रहा है,लेकिन इस पीढ़ी को सपने साकार नही कर पाने की टीस है।
इनसे आगे की पीढ़ी पर भी 1990के पलायन का असर पड़ा।
पढ़ाई और रोजगार की तलाश मे बाहर निकली पीढ़ी जड़ों से ही कट गई है।
जम्मू में जगती माइग्रेंट कॉलोनी मे रह रहे 46साल के रवि कुमार कौल कहते है,जब उनका परिवार कश्मीर से निकला था,तो उनकी उम्र 16साल थी।पढ़ाई छूट गई।जरूरते पूरी करने को छोटा मोटा काम किया लेकिन वो भी ज्यादा नही चला।
अब जैसे-तैसे परिवार चला रहे है।इसी कॉलोनी मे रह रहे 48साल के टकिंद्र धर भी विस्थापन से व्यथित है।
कहते है कि जवाहर नगर मे पिता की अच्छी दुकान थी।19जनवरी 1990की रात को पूरे परिवार को सबकुछ छोड़कर पलायन करना पड़ा।उस समय उनकी उम्र 18साल थी।
पढ़ाई का शौक था लेकिन बदली परिस्थितियो मे इसे आगे नही बढ़ा सका।
जम्मू मे आकर पांच सौ रू की नौकरी कर ली।अब फोटोग्राफी का छोटा मोटा काम करता हूं।इसे बढ़ाना चाहता हूं लेकिन बैंक वाले कहते है जमीन के दस्तावेज लाओ तो लोन मिलेगा।कश्मीर मे जमीन थी उस पर लोगो ने कब्जा कर रखा है।घर बर्बाद हो चुका है।
पलायन के समय 26साल के रहे हवा कदल के राजकुमार कहते है कश्मीर छोड़ते समय सोचा था कि हालात सुधरते ही तीन माह मे लौट आयेंगे लेकिन आज तीस साल हो गए।जो युवावस्था मे सपने देखे थे वे साकार नही हो सके।ऐसी ही कहानियां कश्मीरी पंडित के हजारो लोगो की है।




