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उत्तर प्रदेश

कविता : आओ कुछ ऐसा कर जायें

कविता : आओ कुछ ऐसा कर जायें
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आओ कुछ ऐसा कर जायें

चन्दा सूरज बन कर जग में

सबको प्रेम-प्रकाश लुटायें

मानरहित हो, भाव-सिन्धु बन

परहित-दीपक सदा जलायें

आओ कुछ ऐसा कर जायें !

जो हैं अटके-भूले-भटके

उनको खोज सामने लायें

दीन-हीन-जन-मन को छूकर

जीवन में ख़ुशियाँ लौटायें।

आओ कुछ ऐसा कर जायें !

नहीं सभी सौभाग्य-धनी हैं

उनको बढ़ मज़बूत करें हम

कर मज़बूत निखारें जीवन

जन-सेवा-हित हाथ बढ़ायें।

आओ कुछ ऐसा कर जायें !

उपनिषदों, वेदों ने विचारा

वसुधा ही परिवार हमारा

अग जग जगमग करने को हम

दीप ज्ञान का सदा जलायें

आओ कुछ ऐसा कर जायें !

ख़ाली आना, ख़ाली जाना

जीवन का यह चक्र पुराना

हेतु-रहित परहित-रत होकर

जीवन अर्थवान कर पायें।

आओ कुछ ऐसा कर जायें !!

गणतन्त्र दिवस के इस महापर्व पर मेरी ओर से आप एवं आपके परिवार को हार्दिक-शुभकामनाएँ

अजय कुमार आईपीएस

पुलिस अधीक्षक मैनपुरी

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