कविता : आओ कुछ ऐसा कर जायें
BY Anonymous26 Jan 2020 2:48 PM GMT

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Anonymous26 Jan 2020 2:48 PM GMT
आओ कुछ ऐसा कर जायें
चन्दा सूरज बन कर जग में
सबको प्रेम-प्रकाश लुटायें
मानरहित हो, भाव-सिन्धु बन
परहित-दीपक सदा जलायें
आओ कुछ ऐसा कर जायें !
जो हैं अटके-भूले-भटके
उनको खोज सामने लायें
दीन-हीन-जन-मन को छूकर
जीवन में ख़ुशियाँ लौटायें।
आओ कुछ ऐसा कर जायें !
नहीं सभी सौभाग्य-धनी हैं
उनको बढ़ मज़बूत करें हम
कर मज़बूत निखारें जीवन
जन-सेवा-हित हाथ बढ़ायें।
आओ कुछ ऐसा कर जायें !
उपनिषदों, वेदों ने विचारा
वसुधा ही परिवार हमारा
अग जग जगमग करने को हम
दीप ज्ञान का सदा जलायें
आओ कुछ ऐसा कर जायें !
ख़ाली आना, ख़ाली जाना
जीवन का यह चक्र पुराना
हेतु-रहित परहित-रत होकर
जीवन अर्थवान कर पायें।
आओ कुछ ऐसा कर जायें !!
गणतन्त्र दिवस के इस महापर्व पर मेरी ओर से आप एवं आपके परिवार को हार्दिक-शुभकामनाएँ
अजय कुमार आईपीएस
पुलिस अधीक्षक मैनपुरी
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