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राजनीति में अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, चुनाव आयोग से एक सप्ताह में मांगा जवाब

राजनीति में अपराधीकरण पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, चुनाव आयोग से एक सप्ताह में मांगा जवाब
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सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है कि वह देश में राजनीति के अपराधीकरण को रोकने के मद्देनजर रूपरेखा बनाकर एक सप्ताह के भीतर अदालत में पेश करे। चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट को सुझाव दिया कि राजनीतिक दलों से कहा जाना चाहिए कि वे आपराधिक पृष्ठभूमि के उम्मीदवारों को टिकट न दें।

अपराधीकरण पर जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम कानून के नियम

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा आठ दोषी राजनेताओं को चुनाव लड़ने से रोकती है। लेकिन ऐसे नेता जिन पर केवल मुकदमा चल रहा है, वे चुनाव लड़ने के लिये स्वतंत्र हैं। भले ही उनके ऊपर लगा आरोप कितना भी गंभीर है।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(1) और (2) के अंतर्गत प्रावधान है कि यदि कोई विधायिका सदस्य (सांसद अथवा विधायक) हत्या, दुष्कर्म, अस्पृश्यता, विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम के उल्लंघन, धर्म, भाषा या क्षेत्र के आधार पर शत्रुता पैदा करना, भारतीय संविधान का अपमान करना, प्रतिबंधित वस्तुओं का आयात या निर्यात करना, आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होना जैसे अपराधों में लिप्त होता है, तो उसे इस धारा के अंतर्गत अयोग्य माना जाएगा और छह वर्ष की अवधि के लिये अयोग्य घोषित कर दिया जाएगा।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(3) में प्रावधान है कि उपर्युक्त अपराधों के अलावा किसी भी अन्य अपराध के लिये दोषी ठहराए जाने वाले किसी भी विधायिका सदस्य को यदि दो वर्ष से अधिक के कारावास की सजा सुनाई जाती है तो उसे दोषी ठहराए जाने की तिथि से अयोग्य माना जाएगा। ऐसे व्यक्ति सजा पूरी किये जाने की तारीख से छह वर्ष तक चुनाव नहीं लड़ सकेंगे।

जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा आठ(4) के अनुसार यदि दोषी सदस्य निचली अदालत के इस आदेश के खिलाफ तीन महीने के भीतर हाईकोर्ट में अपील दायर कर देता है तो वह अपनी सीट पर बना रह सकता है। हालांकि इस धारा को 2013 में 'लिली थॉमस बनाम यूनियन ऑफ इंडिया' के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक बताकर निरस्त कर दिया था।

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