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दीपिका ने बतौर प्रोड्यूसर पहली फिल्म में वो रिस्क लिया जो उनकी फिल्म पर भारी पड़ गया..

दीपिका ने बतौर प्रोड्यूसर पहली फिल्म में वो रिस्क लिया जो उनकी फिल्म पर भारी पड़ गया..
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बेहतरीन और भावुक कर देने वाली स्क्रिप्ट, कसा हुआ निर्देशन, बेहतरीन और झझकोर देने वाली एक्टिंग, एक बढ़िया संदेश देने के बावजूद दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक को वो सफलता नहीं मिल पाई जो मिलनी चाहिए था। आखिर ऑडिएंस ने छपाक जैसी शानदार फिल्म को क्यों नकार दिया। इसके पीछे पांच वजहें हो सकती हैं जिनके बारे में चर्चा की जानी जरूरी है।

भारतीय दर्शकों की बात करें तो ऑडिएंस ऐसे कंटेंट पर पैसे खर्च करने से बचता है जहां उसे डिप्रेसिव यानी जिंदगी में उदासी भरने वाली बातें, चीजें और वाकये देखने को मिले। ऐसे में दीपिका की फिल्म एक एसिड सर्वाइवर पर बनी थी जिसमें लक्ष्मी अग्रवाल की जिंदगी पर एसिड का भयावह असर देखने को मिलता है। भारीय दर्शक ऐसे वाकयों पर बनी फिल्मों को पचा नहीं पाते। उनके लिए सिनेमा का मतलब मनोरंजन है। नए जमाने में भले ही फिल्में कई तरह के संदेश देने में कामयाब हो रही हों लेकिन सबकी स्क्रिप्ट में हर तरह के दर्शक के लिए कुछ न कुछ मसाला होता है। लेकिन छपाक में ऐसा कुछ नहीं मिला इसलिए दर्शकों ने शानदार रिव्यू के बावजूद फिल्म ठुकरा दी।

सुंदर चेहरे की ललक

भारत में ऑडिएंस ढाई घंटे सिनेमा हॉल में एक या दो,कभी कभी तीन तीन हीरोइनों की सुंदरता का सुख भोगता है। फिल्म भले ही एक्शन बेस्ड हो लेकिन हीरोइन की सुंदरता से दर्शक कॉम्प्रोमाइज करने के मूड में कभी नहीं रहता। खासकर जब फिल्म दीपिका पादुकोण जैसी खूबसूरत हीरोइन की हो तो वो यह जरूर चाहेगा कि दीपिका की सुंदरता पूरी फिल्म में दिखे। दीपिका ने निश्चित तौर पर एक प्रोड्यूसर होने के नाते रिस्क लिया और करियर के शिखर पर ऐसी फिल्म की जहां उन्हें बदरंग चेहरे के साथ दर्शकों से रूबरू होना पड़ा। दीपिका को इसके लिए सलाम किया जाना चाहिए लेकिन दर्शकों ने जिन वजहों से फिल्म को नकारा, उनमें से एक ये वजह हो सकती है।

नाच गाना, एक्शन

भारतीय दर्शकों की मानकिसकता की बात हो रही है तो इतना जान लीजिए कि वो हैप्पी एंडिंग की चाह में थिएटर जाता है। हालांकि शहरों के ऑडिएंस की मानसिकता बदली है लेकिन शहरों के ऑडिएंस फिल्म हिट करा देने की स्थिति में नहीं है अभी भी। कस्बाई ऑडिएंस एक्शन पैक्ड हीरो, बड़ी बड़ी गाड़ियों, महंगी लोकेशन औऱ सुंदर हीरोइनों वाली फिल्मों को तवज्जो देता है। जो वो जिंदगी में नहीं कर पाया, वही पाने की ललक उसे थिएटर ले आती है और ऐसी फिल्में हिट होकर इस वजह को पुख्ता करती जा रही हैं।

जेएनयू विवाद

निश्चित तौर पर जेएनयू विवाद भी इन वजहों में से एक माना जा सकता है। बतौर एक व्यक्ति दीपिका का अधिकार है कि वो कहां जाती है, किसके साथ खड़ी होती है लेकिन फिर भी सोशल मीडिया पर दीपिका के जेएएनयू विजिट को नकारात्मक रिस्पॉन्स मिला। अब इसे दीपिका का गलत समय पर उठाया गया कदम कहा जाए, या सोचा समझा कदम, लेकिन दीपिका की फिल्म को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा। कई राज्यों में टैक्स फ्री होने के बाद भी दर्शक छपाक देखने नहीं जा रहे।

देशभक्ति की डोज

दीपिका पादुकोण की फिल्म छपाक अजय देवगन की वीर रस से पगी देशभक्ति की थीम पर तैयार तानाजी से मुकाबला कर रही थी। ऐसे वक्त में जब बॉलीवुड में देशभक्ति की थीम पर बनी फिल्में पसंद की जा रही है, तानाजी ने बाजी मार ली । अजय देवगन मार्का एक्शन और देशभक्ति की रौ में दर्शक तानाजी की तरफ खिंचा चला गया। पिछले कुछ सालों में देशभक्ति की थीम, पीरियड्स ड्रामा फिल्में काफी सफलता पा रही हैं, ऐसे में तानाजी ने अच्छा बिजनेस किया औऱ छपाक की थीम पसंद करने के बावजूद उसे दर्शक नहीं मिले।

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