पदमपुराण के अनुसार इस संक्रान्ति में दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती

आज है मकर संक्रांति!
संवत् २०७६ माघ कृष पंचमी बुधवार 15 जनवरी 2019।।
इस बार तिथि काल और सूर्य-पृथ्वी की गति के कारण इस बार एक बार फिर मकर संक्रांति का पर्व 15 तारीख को मनेगा । सूर्य 15 जनवरी को प्रातः ७ बजकर ५६ मिनट पर मकर राशि में प्रवेश कर जाएगा। निर्णय सिंधु में संक्रांति काल से पहले के 6 घंटे और बाद 12 घंटे पुण्यकाल के लिए वर्णित हैं। चूंकि संक्रांति काल रात्रिकाल 1 बजकर 56 मिनट से है, इसलिए 14 जनवरी का कोई महत्व नहीं रहेगा,विषेष पुण्य काल 15 जनवरी को सायं 07:56 तक रहेगा एवं सामान्य पुण्यकाल सूर्यास्त तक रहेगा। उदय काल में संक्रांति का पुण्यकाल श्रेष्ठ माना गया है। इसी दिन दान-पुण्य का महत्व माना गया है। इसलिए 15 को मकर संक्रांति मनाई जाएगी । शास्त्रों में इस दिन को देवदान पर्व भी कहा गया है.सम्पूर्ण दिन पुण्यकाल हेतु दान, स्नान आदि का सर्वोत्तम मुहूर्त है. माघ मास में सूर्य जब मकर राशि में होता है तब इसका लाभ प्राप्त करने के लिए देवी-देवताओं आदि पृथ्वी पर आ जाते है. अतः माघ मास एवं मकरगत सूर्य जाने पर यह दिन दान- पुण्य के लिए महत्वपूर्ण है.
पदमपुराण के अनुसार इस संक्रान्ति में दान करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। इस दिन भगवान सूर्य को लाल वस्त्र, गेंहू, गुड़, मसूरदाल, तांबा, स्वर्ण, सुपारी, लालफल, लालफूल, नारियल, दक्षिणा आदि सूर्य दान का शास्त्रों में विधान है। इस संक्रान्ति के पुण्य काल में किये गये दान-पुण्य सामान्य दिन के दान-पुण्य से करोड़ गुना फल देने वाले होता है। इस दिन धृत, कम्बल के दान का भी विशेष महत्व हैं। इस दिन किया गया दान, जप, तप, श्राद्ध तथा अनुष्ठान आदि का दो-गुना महत्व है। इस दिन इस व्रत को खिचड़ी कहते है। इसलिये इस दिन खिचड़ी खाने तथा खिचड़ा तिल दान देने का विशेष महत्व है।
इसी दिन से ही सभी शुभ कार्यों की शुरुआत हो जाती है इस दिन व्रत रखकर, तिल, कंबल, सर्दियों के वस्त्र- आंवला- खिचड़ी-नमक -तिल व तिल के लड्डू आदि दान करने का विधि-विधान है. आज के दिन सूर्य अपने पुत्र शनी की मकर राशि मे आयेगा शास्त्रों में सूर्य को राज, सम्मान और पिता का कारक कहा गया है. और सूर्य पुत्र शनि देव को न्याय और प्रजा का प्रतीक माना गया है. ज्योतिष शास्त्र में जिन व्यक्तियों की कुण्डली में सूर्य-शनि की युति हो, या सूर्य -शनि के शुभ फल प्राप्त नहीं हो पा रहे हों, उन व्यक्तियों को मकर संक्रान्ति का व्रत कर, सूर्य-शनि के दान करने चाहिए. ऎसा करने से दोनों ग्रहों कि शुभता प्राप्त होती है. इसके अलावा जिस व्यक्ति के संबन्ध अपने पिता या पुत्र से मधुर न चल रहे हों, उनके लिये भी इस दिन दान-व्रत करना विशेष शुभ रहता है. सूर्य सिद्धान्त में पृथ्वी की गति प्रतिवर्ष 50 विकला (5 विकला -2 मिनट) पीछे रह जाती है, वहीं सूर्य संक्रमण आगे बढ़ता जाता है। हालांकि अधिवर्ष (मलमास) में ये दोनों वापस उसी स्थिति में आ जाते हैं। इस बीच प्रत्येक चौथे वर्ष में सूर्य संक्रमण में 22 से 24 मिनट का अंतर आ जाता है। यह अंतर बढ़ते-बढ़ते 70 से 80 वर्ष में एक दिन हो जाता है। इस कारण मकर संक्रांति का पावन पर्व वर्ष 2080 से लगातार 15 जनवरी को ही मनाया जाने लगेगा । हर दो साल के अंतराल में बदलेगा क्रम :- साल 2016 में भी मकर संक्रांति 15 को ही मनाई गई थी। फिर मकर संक्रांति मनाए जाने का ये क्रम हर दो साल के अंतराल में बदलता रहेगा। अधिमास वर्ष आने के कारण मकर संक्रांति वर्ष 2017 व 2018 में 14 को ही मनाई गई थी। साल 19 व 20 को 15 को मनेगी। ये क्रम सन 2030 तक चलेगा। मकर संक्रांति का अंतर पृथ्वी की अयन गति से होता है।
शताब्दी अनुसार मकर संक्रांति मनाए जाने का क्रम
16 व 17 वीं शताब्दी में 9 व 10 जनवरी 17 व 18वीं शताब्दी में 11 व 12 को 18 व 19वीं शताब्दी में 13 व 14 जनवरी को
19 व 20 वीं शताब्दी में 14 व 15 को 21 व 22वीं शताब्दी में 14, 15 और 16 जनवरी तक मनाई जाने लगेगी।
पौराणिक कथाओं में वर्णन आता है कि इस दिन भगवान सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाया करते हैं। शनिदेव चूंकि मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है।
मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं। यह भी कहा जाता है कि गंगा को धरती पर लाने वाले महाराज भगीरथ ने अपने पूर्वजों के लिए इस दिन तर्पण किया था। उनका तर्पण स्वीकार करने के बाद गंगा समुद्र में जाकर मिल गई थी। इसलिए मकर संक्रांति पर गंगा सागर में मेला लगता है।
महाभारत काल के महान योद्धा भीष्म पितामह ने भी अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का ही चयन किया था। इस दिन भगवान विष्णु ने असुरों का अंत कर युद्ध समाप्ति की घोषणा की थी व सभी असुरों के सिरों को मंदार पर्वत में दबा दिया था। इस प्रकार यह दिन बुराइयों और नकारात्मकता को खत्म करने का दिन भी माना जाता है।
यशोदा जी ने जब कृष्ण जन्म के लिए व्रत किया था तब सूर्य देवता उत्तरायण काल में पदार्पण कर रहे थे और उस दिन मकर संक्रांति थी। कहा जाता है तभी से मकर संक्रांति व्रत का प्रचलन हुआ। इस शुभ दिन इसलिए कई लोग व्रत धारण करते हैं।
मत्स्य पुराण के अनुसार मकर संक्रान्ति के दिन सूर्योपासना के साथ यज्ञ, हवन एंव दान को पुण्य फलदायक माना गया है। ''शिव रहस्य ग्रन्थ'' में मकर संक्रान्ति के अवसर पर हवन पूजन के साथ खाद्य वस्तुओं में तिल एवं तिल से बनी वस्तुओं का विशेष महत्व बताया गया है। पुराणों के अनुसार मकर संक्रान्ति सुःख शान्ति, वैभव, प्रगति सूचक, जींवों में प्राण दाता, स्वास्थ्य वर्धक, औषधियों के लिए वर्णकारी एवं आयुर्वेद के लिए विशेष है।
इस बार मकर संक्रांति का वाहन सिंह रहेगा। इसके अलावा उपवाहन गज होगा। सफेद रंग के वस्त्र में गोल्ड के बर्तन में अन्न ग्रहण करते हुए व कुंकुंम का लेप करके आ रही ये मकर संक्रांति कारोबार से लेकर व्यापार के लिए बड़ी शुभ होगी। बाजार पर इस तरह असर होगा
बाजार में कुछ वस्तुओं में तेजी तो कुछ में मंदी आएगी। चांदी, चांवल, जौ, चना, कपास, अलसी, सरसो, मैथी, घी में तेजी आएगी। इसके अलावा गुड़, सोना, चांदी में मंदी रहेगी। इतना ही नहीं, लकड़ी, कोयला व पत्थर से जुडे़ कारोबार में तेजी रहेगी। संक्रांति के दिन नए बर्तन, गर्म कपडे़, सुहाग का सामान, गुड़, तिल, सुखी खिचड़ी, भूमि का दान, गाय को चारा, घोडे़ को घांस खिलाने से लाभ होता है।
राशि अनुसार इस तरह रहेगा फल:-
मेष राशि को धन का लाभ, वृषभ राशि को अन्न का दान, मिथुन राशि को स्वास्थ्य का लाभ, कर्क राशि को हर कार्य में सफलता, सिंह राशि को पूर्वजों का आशीर्वाद, कन्या राशि को आवास का लाभ, तुला राशि को सम्मान व प्रतिष्ठा का लाभ, वृश्चिक राशि को वाहन का लाभ, धनु राशि को परीक्षा में सफलता, मकर राशि को दुश्मन पर जीत, कुंभ राशि को धनलाभ व मीन राशि को हर कार्य में सफलता मिलेगी।
---------- पं.अनन्त पाठक
(ज्योतिष वास्तु कर्मकांड)
जेल रोड रायपुर राजा बहराइच 271801 उ०प्र०




