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उत्तर प्रदेश

पुलिस कमिश्नर प्रणाली से पुलिस को मिलेंगे ये अधिकार

पुलिस कमिश्नर प्रणाली से पुलिस को मिलेंगे ये अधिकार
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उत्तर प्रदेश सरकार दो बड़े शहरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू करने की योजना पर विचार कर रही है. सूबे की राजधानी लखनऊ (Lucknow) और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली (NCR) से सटे हुए नोएडा में इसे लागू किया जाएगा. राज्य सरकार का तर्क ये है कि इससे जिलों की कानून व्यवस्था बेहतर होगी. लॉ एंड ऑर्डर समेत तमाम प्रशासनिक अधिकार भी पुलिस कमिश्नर के पास रहेंगे. आइए आपको बताते हैं कि आखिर पुलिस कमिश्नरी प्रणाली क्या होती है. पुलिस कमिश्नर के अधिकार कैसे बढ़ जाते हैं.

पुलिस कमिश्नर को मिलती है मजिस्ट्रेट की पॉवर

भारतीय पुलिस अधिनियम 1861 के भाग 4 के अंतर्गत जिलाधिकारी यानी डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट के पास पुलिस पर नियत्रंण के अधिकार भी होते हैं. इस पद पर आसीन अधिकारी IAS होता है. लेकिन पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू हो जाने के बाद ये अधिकार पुलिस अफसर को मिल जाते हैं, जो एक IPS होता है. यानी जिले की बागडोर संभालने वाले डीएम के बहुत से अधिकार पुलिस कमिश्नर के पास चले जाते हैं.

कमिश्नर के पास होते हैं कई अहम अधिकार

दण्ड प्रक्रिया संहिता (CRPC) के तहत एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट (Executive Magistrate) को भी कानून और व्यवस्था को विनियमित करने के लिए कुछ शक्तियां मिलती है. इसी की वजह से पुलिस अधिकारी सीधे कोई फैसला लेने के लिए स्वतंत्र नहीं हैं, वे आकस्मिक परिस्थितियों में डीएम या कमिश्नर या फिर शासन के आदेश के तहत ही कार्य करते हैं, लेकिन पुलिस कमिश्नरी प्रणाली में IPC और CRPC के कई महत्वपूर्ण अधिकार पुलिस कमिश्नर को मिल जाते हैं.

प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का अधिकार

पुलिस कमिश्नर प्रणाली में पुलिस कमिश्नर सर्वोच्च पद होता है. ज्यादातर यह प्रणाली महानगरों में लागू की गई है. पुलिस कमिश्नर को ज्यूडिशियल पॉवर भी होती हैं. CRPC के तहत कई अधिकार इस पद को मजबूत बनाते हैं. इस प्रणाली में प्रतिबंधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस ही मजिस्ट्रेट पॉवर का इस्तेमाल करती है. एक हरियाणा के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के मुताबिक पुलिस प्रतिबंधात्मक कार्रवाई का अधिकार मिलने से अपराधियों को खौफ होता है. क्राइम रेट भी कम होता है.

बड़े महानगरों के लिए उपयोगी है कमिश्नर प्रणाली

हरियाणा में 3 महानगरों में पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू है. इन शहरों में एनसीआर (NCR) के गुरुग्राम, फरीदाबाद और चंडीगढ़ से लगा पंचकुला शहर शामिल है. हरियाणा पुलिस के एडीजी स्तर के एक अधिकारी ने जानकारी देते हुए बताया कि दिल्ली एनसीआर में आने वाले दूसरे राज्यों के महानगरों की जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है. वहां देशभर के लोग रहने के लिए आते हैं.

NCR के महानगरों में कप्तान

वरिष्ठ अधिकारी के मुताबिक NCR के महानगरों में कई बड़ी कंपनिया और अंतरराष्ट्रीय मुख्यालय भी हैं. ऐसे में आर्थिक अपराध के मामले अक्सर सामने आते रहते हैं. आए दिन वीआईपी लोगों का आना-जाना भी लगा रहता है. उनकी सुरक्षा और अवागमन से संबंधित कार्य भी रहते हैं. इसके अलावा रोजमर्रा की घटनाएं, यातायात संबंधी मामले भी भारी संख्या में आते हैं. ऐसे में एसएसपी या एसपी स्तर का अधिकारी पूरे जिले को नहीं संभाल सकता.

जोन में बांट दिया जाता है महानगर

पुलिस कमिश्नरी प्रणाली लागू होने से पुलिस को बड़ी राहत मिलती है. कमिश्नर का मुख्यालय बनाया जाता है. एडीजी स्तर के सीनियर आईपीएस को पुलिस कमिश्नर बनाकर तैनात किया जाता है. महानगर को कई जोन में विभाजित किया जाता है. हर जोन में डीसीपी की तैनाती होती है. जो एसएसपी की तरह उस जोन को डील करता है. सीओ की तरह एसीपी तैनात होते हैं. जो 2 से चार थानों को डील करते हैं.

आर्म्स एक्ट के मामले भी निपटाते हैं कमिश्नर

खास बात ये कि आर्म्स एक्ट के मामले भी पुलिस कमिश्नर डील करते हैं. इस तरह है महानगर की कानून व्यवस्था भी मजबूत होती है और नागरिकों को सुरक्षा का अहसास होता है. जो लोग हथियार का लाइसेंस लेने के लिए अवादेन करते हैं, उसके आवंटन का अधिकार भी पुलिस कमिश्नर को मिल जाता है. पुलिस कमिश्नर की सहायता के लिए ज्वाइंट पुलिस कमिश्नर, असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर भी तैनात किए जाते हैं.

कानूनी भाषा में कहे तो सीआरपीसी की मजिस्ट्रियल पावर वाली जो कार्यवाही अब तक जिला प्रशासन प्रशासन के अफसरों के पास थे वह सभी मजिस्टेरियल पावर पुलिस कमिश्नर को मिल जाएंगे। यानी सीआरपीसी में 107-16, धारा 144, 109, 110, 145 के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी पुलिस को मिल जाएंगी।

होटल के लाइसेंस, बार के लाइसेंस, हथियार के लाइसेंस देने का अधिकार भी पुलिस के पास आ जाएगा। धरना प्रदर्शन की अनुमति देना ना देना पुलिस तय करेगी। दंगे के दौरान लाठी चार्ज होगा या नहीं, कितना बल प्रयोग होगा यह भी पुलिस तय करेगी। जमीन की पैमाइश से लेकर जमीन संबंधी विवादों के निस्तारण में भी पुलिस को अधिकार मिलेगा। पुलिस सीधे लेखपाल को पैमाइश करने का आदेश देगी। हत्या मारपीट आगजनी बलवा जैसे तमाम घटनाएं जमीनी विवाद से शुरू होती हैं। कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पुलिस ऐसे विवादों का जल्द निस्तारण कर सकेगी।

कमिश्नर प्रणाली से शहरी इलाके में अतिक्रमण पर भी अंकुश लगेगा। अतिक्रमण अभियान चलाने का सीधे आदेश कमिश्नर देगा और नगर निगम को उस पर अमल करना होगा।

पुलिस पर निरंकुश होने का खतरा

इन तमाम खूबियों के बीच इस प्रणाली से पुलिस के निरंकुश होने का भी खतरा होगा। घूसखोरी और भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही उत्तर प्रदेश पुलिस के लिए कमिश्नर प्रणाली दो धारी तलवार की तरह होगी।

नोएडा के पूर्व एसएसपी वैभव कृष्ण के अश्लील वीडियो से शुरू हुआ उत्तर प्रदेश सरकार की किरकिरी का सिलसिला सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति पर विपक्षियों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा बन गया। सरकार को एसएसपी नोएडा को सस्पेंड और भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे 5 आईपीएस अफसरों को हटाना पड़ा। ऐसे में जब पुलिस के पास वसूली के अधिकार होंगे तो पुलिस में भ्रष्टाचार के और अधिक बढ़ने का खतरा भी मंडरा आएगा। लेकिन पुलिस को बेहतर समझने वाले और कमिश्नर प्रणाली की पैरवी करने वाली प्रकाश सिंह कमेटी हो या फिर सुलखान सिंह कमेटी की सिफारिशें, सभी ने एक आईजी स्तर के अफसर के हाथों में जिले की कमान और फिर डीसीपी और ज्वाइंट कमिश्नर के पदों पर भी डीआईजी रैंक के अफसरों की तैनाती इन अफसरों के अनुभव और साख से पुलिस के भ्रष्टाचार का खतरा कम होगा। दलील दी गई कि जब अफसर 15 से 20 साल के अनुभव वाला अफसर जिले की कमान संभालेगा तो उसके अनुभव का लाभ पुलिसिंग में होगा। साथ ही बेदाग करियर की चिंता में अफसर खुद भी भ्रष्टाचार में शामिल नहीं होगा। जिसका उदाहरण दिल्ली, मुंबई बैंगलुरू, हैदराबाद जैसे शहरों में चल रही कमिश्नर प्रणाली उदाहरण है।

प्रयोग के तौर पर ही सही उत्तर प्रदेश सरकार के लिए कमिश्नर प्रणाली लागू करना आसान भी नहीं होगा। सरकार को अभी यह तय करना है कि अगर नोएडा और लखनऊ में पुलिस की कमान आईजी रैंक के अफसर को दी जाएगी तो इलाके के अपर पुलिस अधीक्षक और सीओ सर्किल की कमान डीआईजी और एसपी स्तर के अफसरों को मिलेगी या फिर सिर्फ पद नाम बदलकर, कमिश्नर प्रणाली के अधिकार देकर यह व्यवस्था लागू की जाएगी।

उत्तर प्रदेश में कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कवायद कोई पहली बार नहीं हुई है। सबसे पहले 1976-77 में प्रयोग के तौर पर कानपुर में कमिश्नर प्रणाली लागू करने की कोशिश की गई। फिर साल 2009 में प्रदेश की मायावती सरकार ने भी नोएडा और गाजियाबाद को मिलाकर कमिश्नर प्रणाली लागू करने की तैयारी की। मायावती सरकार में तो ट्रांस हिंडन और ग्रेटर नोएडा समेत चार क्षेत्रों में ज्वाइंट कमिश्नर तैनात कर पुलिसिंग का खाका तक तैयार हो गया था, लेकिन आईएएस लॉबी के अड़ंगे और कमजोर राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी से लागू नहीं किया जा सका। साथ ही 27 दिसंबर 2018 को पुलिस वीक की रैतिक परेड में तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक ने भी प्रदेश की योगी सरकार से लखनऊ, कानपुर, गाजियाबाद समेत तमाम शहरों में प्रयोग के तौर पर ही सही कमिश्नर प्रणाली लागू करने की सिफारिश की थी।

एक बार फिर उत्तर प्रदेश में कमिश्नर प्रणाली को लागू करने की तैयारी हो रही है। लेकिन इस बार प्रदेश में मजबूत इच्छाशक्ति का दावा करने वाली भाजपा की सरकार है। आईपीएस अफसरों के साथ जनता को भी उम्मीद है कि कमिश्नर प्रणाली धीरे-धीरे ही सही लेकिन लागू जरूर हो जाएगी।

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