हम देखेंगे....विश्व हिंदी दिवस

आज विश्व हिंदी दिवस है। हो सकता है आज फिर से माननीय मैक्रोन जी सोशल मीडिया पर हिंदी में भारतीय विकास और अर्थव्यवस्था के बारे में कुछ लिख दें या माननीय ट्रम्प आधुनिकता से लैस नीले आसमान में हिंदी का कोई ड्रोन उड़ा दें या कोई राजा, महारानी डिजिटल स्पेस में हिंदी माँ के अचरा को दुलार कर स्पेस दे दें।
हमें बेशक खुश होना चाहिए कि हिंदी धान की खेती भारतीय जलोढ़ मिट्टी से उठकर फ्रांस, अमेरिका, चीन समेत अनेक देशों के जलोढ़िये, दोमटी मिट्टी पर रोपनी, कटनी कार्य से लेकर कोई विदेशी नागरिक अपनी नवविवाहित एंजिला के साथ रौदा में बैठकर दही चिउरा सान कर खा रहा होगा।
पर ये भी एक कटु सत्य है कि हिंदीभाषी राष्ट्र में 'स्टील प्लांट' को 'इस्पात का पौधा' कहने वाली आयोग आये दिन प्रमुख प्रतियोगिता परीक्षाओं में हिंदी को लाठी से पीट, लथेड़, रगेद देने वाली व्यवस्था कदापि हिंदी धान की खेती को उपजाऊ नहीं बना सकती।
सिर्फ पाठक का पढ़ कर वाह वाह, क्या खूब क्या सुंदर, आप तो करेजा लूट लिए, गज्जब, भाई आप तो मोहब्बत हो करने भर, लेखक का हरेक साल किताब लिख देने भर और प्रकाशन का हजारों किताब बेच बेस्टसेलर बन जाने भर से न तो हिंदी को बचाया जा सकता है और न ही हिंदी माँ के अचरा को वर्णमालाओं से सुसज्जित किया जा सकता है। अगर वाकई में बचाना है तो इस बहुमत प्राप्त सरकार को, 56 इंची के सीना को, हमारे प्रमुख मंत्रालयों को, आयोगों को अपनी ही राष्ट्रभाषा में निष्पक्ष रूप से बिना भेदभाव किये रोजी, रोटी का जुगाड़ करना होगा।
उन्हें ये नहीं लगे कि हिंदी वाले किसी गरीब ड्राइवर बाप का राजा बेटा भला क्या करेगा। मटिया चाटते हुए किसी तरह पीटी, मेंस पास कर गया है। अंग्रेजी वाले तो चंद्रयान उड़ाएंगे, इसरो के बाल में कंघी करेंगे, नासा को धोती कुर्ता पहनाएंगे, अर्थव्यवस्था को अमेरिका, चाइना, जपान की ऊंचाइयों तक ले जाकर फेंक आएंगे।
देश आपका है, भाषा भी आपका है और गलती से हिंदी भी इसी भाषा के अंतर्गत आता है। उम्मीद है कि आप जिस तरह से हिंदु राष्ट्र बनाने के लिए सीना को 56 इंची में फाड़े हुए हैं उसी तरह से निष्पक्ष रूप हिंदी राष्ट्र बनाने के लिए भी कुछ करेंगे।
हम देखेंगे...कि आप क्या करते हैं निष्पक्ष हिंदी राष्ट्र बनाते हैं या गांव के किसी गरीब गुड्डू, पिंकी, सुरेश, प्रियंका का गला घोंटते हैं। ये गुड्डू, पिंकी सिर्फ नाम नहीं है इस देश की ताकतवर रीढ़ के सुंदर बाल बच्चे हैं जिनके पिताजी ने ईंट भी ढ़ोया, किसानी भी किया और आपको भोट भी दिया।
कोई भी भाषा पहले स्वदेशी होती है फिर परदेशी होती है। हम देखेंगे....कि आपके 56 इंची के सीने में अपनी राष्ट्रभाषा का एक, दो इंची जगह भी खाली है या सब ढकोसला है.... हम देखेंगे।
नोट:- खूब हिंदी किताबें पढिये, हिंदी में लिखिये, पुस्तक मेले से किताबें खरीदिये। अगर आने वाले समय में व्यवस्था कुछ न भी करे तो हम कह सकेंगे कि जब हिंदी का कपार फोड़ा जा रहा था तब हम हिंदी भाषा की किताब पढ़कर फूटे कपार पर पट्टी बांध रहे थे। हिंदी में लड़कर हिंदी को बचा रहे थे।
जय हो।
अभिषेक आर्यन




