नए वर्ष का स्वागत करने के साथ नमन उन योद्धाओं को जिससे धर्मभूमि अयोध्या को मुस्कुराने का अवसर मिला

नए वर्ष का स्वागत करने के साथ नमन उन योद्धाओं को, जिनकी कठिन तपस्या के फलस्वरूप पिछले वर्ष लगभग पाँच सौ वर्षों के बाद हमारी धर्मभूमि अयोध्या को मुस्कुराने का अवसर मिला था। मन्दिर के भव्य शिखर पर चमकते स्वर्ण कलश की आभा में खो जाने वाले श्रद्धालु सदैव भूल जाते हैं उन महान हाथों को, जिनके द्वारा नींव के पत्थर जोड़े गए थे। आज उन्ही महान हाथ वाले धर्मयोद्धाओं को प्रणाम...
१- परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज!
जीवन भर अनवरत सीताराम का जप करने वाले दिगम्बर अखाड़े के महंत और राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष परमहंस रामचन्द्र दास जी महाराज ने जीवन में एक ही स्वप्न देखा कि अयोध्या में राममंदिर बने। महाराज श्री जीवन भर इसके लिए लड़े... 2003 में 113 वर्ष की आयु में देह त्याग करने के समय तक राम जन्मभूमि के लिए लड़ते रहे। कल जब मन्दिर बनेगा तो उसकी नींव में पत्थरों के साथ महाराज श्री की तपस्या भी होगी।
१- योगी अवैद्यनाथ जी महाराज!
नाथपन्थ को आज लोग भले योगी आदित्यनाथ जी महाराज और गोरखनाथ मठ से जानें, पर इतना जान लीजिए कि सल्तनत काल के क्रूर शासकों के समय भी पूर्वांचल में सनातन का ध्वज लहराता रहा, तो उसमें नाथपन्थ के गाँव-गाँव घूम कर लोगों को धर्म से जोड़े रखने वाले योगियों की सबसे बड़ी भूमिका थी। जीवन से भूले-भटके युवकों को योगी के रूप में दीक्षित कर धर्मयोद्धा बनाने वाले नाथपन्थ के गोरखपुर मठ ने राममंदिर आंदोलन की लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 1949 में जब विवादित ढाँचे में प्रभु श्रीराम का प्रकटीकरण हुआ तब तात्कालिक महंत गुरु दिग्विजयनाथ जी महाराज अपने कुछ शिष्यों के साथ वहाँ से थोड़ी दूर पर कीर्तन कर रहे थे। फिर यह लड़ाई उन्हीं ने प्रारम्भ की और उनके बाद उनके शिष्य महंत अवैद्यनाथ जी ने अपना समस्त झोंक दिया था राम मंदिर आंदोलन में... दुर्भाग्य कि जोगी बाबा भी मन्दिर निर्माण नहीं देख सके...
३- महर्षि अशोक सिंघल जी महाराज!
राम मंदिर आंदोलन को वैश्विक स्वरूप देने और इसे जन-जन से जोड़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही महर्षि सिंघल की। कभी इंजीनियर रहे आदरणीय सिंघल जी को राम मंदिर का मुख्य आर्किटेक्ट और राम मंदिर आंदोलन का हीरो कहा जाता था। उनकी ख्याति यह थी कि भारत के इतिहास में सबसे बड़ी जनसभा(कहा जाता है कि दस लाख की भीड़ थी) करने का रिकार्ड उन्ही के नाम है। उनकी प्रसिद्धि से जल कर पिछले दिनों में उनके विरोधियों ने एक हल्ला उड़ाया था कि उनकी बेटी ने किसी मुश्लिम से विवाह किया है, जबकि वे स्वयं अविवाहित थे। दुर्भाग्य से वे भी मन्दिर निर्माण नहीं देख सके, पर 89 वर्ष की आयु में पिछले वर्ष जब उनकी मृत्यु हुई तबतक खेतों में खिलने वाले सरसो के चार फूलों ने यह अवश्य बता दिया था कि वसन्त आने ही वाला है।
४- लाल कृष्ण आडवाणी जी
रथयात्रा याद है न? भाजपा को 2 सीटों वाली पार्टी से 200 सीटों वाली पार्टी बनाने वाले श्री आडवाणी जी ने पहली बार राम मंदिर की लड़ाई को राजनीति का मुद्दा बनाया। आज जो भी हुआ है, उसमें आडवाणी जी की भूमिका सबसे बड़ी है। उनके अतिरिक्त श्री मुरली मनोहर जोशी जी, विनय कटियार जी, उमा भारती जी, साध्वी ऋतम्भरा जी, डालमिया जी ने अपना समस्त झोंक दिया था मन्दिर के लिए। आजतक ये लोग कोर्ट में केस लड़ रहे हैं।
५- कल्याण सिंह जी!
नई पीढ़ी शायद ही समझ पाए कि 56 इंच के कलेजे वाला एक और मुख्यमंत्री हुआ था उत्तर प्रदेश में, जिनका नाम कल्याण सिंह था। कुछ कहानियां न कहीं जाँय तो ही अच्छा होता है, बस इतना जानिए कि कल्याण सिंह ने मन्दिर के लिए राजगद्दी त्यागी थी।
६- कोठारी परिवार!
मन्दिर के लिए सबने सबकुछ दिया, पर 23 वर्ष के श्रीराम कोठारी और इक्कीस वर्ष के शरद कोठारी ने अपने प्राण दिए थे। कारसेवा के लिए निकली भक्तों की भीड़ जब मुगलसराय में रोक दी गयी तो छिप कर पैदल निकल गए दोनों, और 200 किलोमीटर पैदल चल कर पहुँचे अयोध्या। रामजन्मभूमि पर राम का ध्वज फहराने का श्रेय इन्हीं को जाता है। 2 नवम्बर 1990 को मुलायम सरकार की गोलियों से छलनी हो जाने वाले इन महाबीरों की कहानियाँ भारत हर युग में गयेगा। पर उनसे तनिक भी कम महान नहीं थे वे माता-पिता, जो अपने दोनों पुत्रों को खो देने के दो साल बाद ही उन्नीस सौ बानबे में स्वयं भी कारसेवा करने अयोध्या पहुँच गए थे। श्रीमती सुमित्रा कोठारी और श्री हीरालाल कोठारी को युगों युगों तक याद रखा जाएगा।
इनके अतिरिक्त भी जाने कितने कितने योद्धा रहे जिनको आज कोई नहीं जानता, पर मन्दिर के लिए उन्होंने अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। 2020 का भारत इन महान योद्धाओं के आगे नतमस्तक है, और रहेगा। धर्म की जय हो....
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।




