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उत्तर प्रदेश

नागरिकता संशोधन क़ानून CAA के विरोध के पीछे के सच पर पत्रकार मोहम्मद मोईन का आंखें खोल देने वाला आंकलन और देश के मुसलमानों से भावुक अपील

नागरिकता संशोधन क़ानून CAA के विरोध के पीछे के सच पर पत्रकार मोहम्मद मोईन का आंखें खोल देने वाला आंकलन और देश के मुसलमानों से भावुक अपील
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मुस्लिम भाइयों,

नागरिकता संशोधन क़ानून को लेकर देश पिछले दो हफ़्तों से हिंसा की आग में झुलस रहा है। देश के ज़्यादातर हिस्सों में सड़कों पर प्रदर्शन व हंगामा हुआ है। डर व दहशत का ऐसा माहौल क़ायम हो गया कि लोग सड़कों पर निकलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे। ये हालात खुद हमने, यानी मुसलमानों ने बनाए हैं। कोहराम मचाने में हमारे साथ सिर्फ वही गैर मुस्लिम शामिल हुए हैं, जिन्हें या तो सियासी फायदा लेना है या जो हमें बीजेपी व मोदी का डर दिखाकर हमको वोट बैंक समझते हुए मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं।

मुझे यह समझ नहीं आ रहा है कि नागरिकता संशोधन क़ानून यानी CAA का विरोध आखिरकार हम क्यों कर रहे हैं। इससे हमें कौन सा नुकसान हो रहा है या आने वाले दिनों में हमारी पहचान पर कौन सा खतरा मंडराने लगेगा। जब देश के प्रधानमंत्री - देश के गृहमंत्री - देश की सरकार और देश की संसद ने यह साफ़ कर दिया है कि यह नागरिकता छीनने या ख़त्म करने का नहीं, बल्कि तीन देशों से आए शरणार्थियों को आसान तरीके से नागरिकता देने का क़ानून है, फ़िर हम विरोध क्यों कर रहे हैं। हम मुल्क का अमन -चैन बिगाड़ने पर क्यों तुले हुए हैं। हम क्यों नफ़रत का माहौल कायम करने में लगे हुए हैं।

क्या हमने कभी इसकी हकीकत जानने की कोशिश की या फ़िर सब कुछ जानते हुए भी हम अनजान बने रहना चाहते हैं। हम सच से कोई वास्ता रखना ही नहीं चाहते या फिर हमें अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करने वालों ने हमारे अंदर नफ़रत का ऐसा बारूद भर दिया है, जो अब अपनी चिंगारी से खुद हमें ही जला रहा है। हमें अपने चुने हुए पीएम और सरकार पर भरोसा क्यों नहीं हो रहा है। हम मौजूदा सरकार के हरेक फैसलों को अपने खिलाफ क्यों मान रहे हैं। हमें हर बात में साजिश की आशंका क्यों नज़र आती है।

मैं दावे से कह सकता हूं कि यह कतई नागरिकता संशोधन क़ानून का विरोध नहीं है, बल्कि यह विरोध केंद्र की सरकार का है। यह विरोध पीएम नरेंद्र मोदी का है और यह विरोध बीजेपी का है। यह विरोध उस सच का है, जिसे अपनी आंखों से देखने और दिमाग से समझने के बावजूद हम झुठलाने की ज़िद किये हुए हैं। बेशक लोकतंत्र में हमें गलत फैसलों के विरोध का पूरा अधिकार है। हमें एतराज जताने और सवाल करने का भी हक़ है। अगर सरकार कोई कदम उठाती है तो उसे और बेहतर करने के लिए सुझाव देने का भी अधिकार हमारे पास है, लेकिन अच्छे कामों और फैसलों की सराहना करने और उसका समर्थन करने की ज़िम्मेदारी भी हमारी है, लेकिन समर्थन और स्वागत छोड़ दीजिये, हमने तो मौजूदा सरकार के हर काम - हर कदम और हर फैसलों में कमियां ढूंढने और उसका विरोध करने की कसम सी खा रखी है।

नोटबंदी पूरे देश में लागू हुई, लेकिन विरोध सिर्फ हमने किया, जबकि काला धन हम मुसलमानों के पास शायद ही थोड़ा- बहुत हो। हमारे पास खुद का रोज़गार न के बराबर है, पर जीएसटी में सबसे ज़्यादा खामी हमें ही नज़र आती है। कश्मीर में हमारी कोई रिश्तेदारी नहीं, फ़िर भी धारा 370 के विरोध में हम उबल पड़ते हैं। एक बार में तीन तलाक के दुरूपयोग पर हम खुद लगाम नहीं लगा सके और कोसते सरकार को हैं। सरकार बार -बार कह रही है कि फिलहाल एनआरसी लागू नहीं हो रही है और लागू होने की सूरत में भी धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव नहीं होगा, फिर भी हम तलवारें चलाने को बेकरार नज़र आ रहे हैं। सीजनल सब्ज़ियों के दाम ज़रा उन्नीस -बीस हो जाते हैं तो हम कोहराम मचा देते हैं। ऐसा लगता है कि महंगाई सिर्फ मुसलमानों के लिए ही है और बाकियों को सरकार से सब्सिडी मिल जाती है। पेट्रोल से लेकर अरहर की दाल और चीनी से लेकर नमक खरीदने में हम आज जितना खर्च करते हैं, उससे ज़्यादा कीमत हम सात साल पहले चुकाते थे, लेकिन तब हम न तो एतराज़ जताते थे और न ही विरोध करते थे। पाकिस्तान के खिलाफ एयर स्ट्राइक होती है तो हम अपने देश की सरकार पर भरोसा न करके उससे सबूत मांगने लगते हैं।

आख़िर हमें हो क्या गया है। हम किस रास्ते पर जा रहे हैं। हमको ऐसा क्यों नहीं लगता कि बीजेपी और मोदी का विरोध करते हुए हम कई बार देश के खिलाफ भी खड़े होते से नज़र आने लगते हैं। हम क्यों यह नहीं सोचते कि जब यादव और दलित भी चुनावों में ट्रेडिशनल वोटिंग से अलग हटकर देशहित में फैसला लेने वालों के साथ खड़ा होता है तो भी अकेले हम ही क्यों टकराते हुए दिखते आते हैं। बीजेपी और मोदी का विरोध करते हुए हम अक्सर देश की भावना के खिलाफ भी चले जाने में नहीं हिचक रहे हैं। बेशक हरेक की अपनी पसंद -नापसंद होती है, लेकिन कई जगहों पर हमारा विरोध अतार्किक हो जाता है और हम सिर्फ विरोध के लिए विरोध करते व जूझते हुए नज़र आते हैं।

दरअसल कड़वी सच्चाई यह है कि लम्बे अरसे से सियासी बिसात पर हम मोहरे की तरह इस्तेमाल हो रहे हैं। हमारे अंदर बीजेपी व मोदी का डर पैदा कर सियासत के खेतों में वोटों की फसल काटी जा रही है। हम इस कड़वे सच से अंजान तो हैं ही, लेकिन इसकी हकीकत से रूबरू भी नहीं होना चाहते। हम छद्म सेक्युलरिज्म का लबादा तो ओढ़े हुए हैं, लेकिन कई मायनों में कट्टरपन की इंतहां पार कर जा रहे हैं। विरोध -विरोध और सिर्फ विरोध से हमें क्या हासिल हुआ। कथित सेक्युलर नुमाइंदे आज हमें जैसा नचाना चाहते हैं, हम वैसा ही उनके इशारों पर नाच रहे हैं।

हमारे पास अब न सोचने की ताकत बची है और न ही फैसला लेने की सोच। सच को सच कहना और हकीकत से रूबरू होना तो हम भूल ही चुके हैं। हम सर्कस के उस शेर की तरह हो गए हैं जो रिंग मास्टर के इशारों पर उछलकूद करते हुए सिर्फ तमाशा दिखाने में यकीन रखता है। हम अपनी ताकत का फायदा लेने के बजाय नेगेटिव सोच की वजह से अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मार ले रहे हैं।

हमने महबूबा मुफ्ती के उस फैसले का विरोध क्यों नहीं किया, जब उन्होंने सत्ता का सुख भोगने के लिए बीजेपी से हाथ मिलाया था। हमेशा मुसलमानों को गालियां देने वाली शिवसेना आखिर किस वाशिंग मशीन में धुलकर सेक्युलर हो गई। जिन्हे फायदा लेना था, उन्होंने ले लिया, लेकिन हम सिर्फ यही सोचकर खुश हैं कि चलो बीजेपी का नुकसान हो गया है। दोस्तों पूरा देश राष्ट्रभक्ति की चासनी में डूबा हुआ है और हमें उस मीठे शीरे में भी कड़वाहट नज़र आ रही है। हम आईने को रगड़-रगड़कर खुद को चमकता हुआ देखने को बेताब तो हैं, लेकिन चेहरे पर जमीं धूल साफ़ करने की पहल भी नहीं करना चाहते।

साथियों, यह मुल्क हम सबका है। इसे हम सबने मिलकर अंग्रेजों की ग़ुलामी से आज़ाद कराया है। सत्तर सालों में बहुत बड़ा बदलाव हम सबकी कोशिशों से ही मुमकिन हो सका है। ऐसे में उस पौधे को हम कैसे मुरझाने दे सकते हैं, जिसे हमने खुद अपने हाथों से लगाया है। खुद अपने खून -पसीने से सींचा है। जब नागरिकता संशोधन क़ानून से हमारा कोई नुकसान होना ही नहीं है, फिर हम हिंसक विरोध कर अपने मुल्क का नुकसान क्यों कर रहे हैं। जब एनआरसी अभी हवा में है और होने पर भी अकेले हमें ही कायदे कानूनों की कसौटी पर नहीं परखा जाएगा तो फ़िर हमने कोहराम क्यों मचा रखा है। विपक्षी पार्टियों के सत्रह मुस्लिम सांसदों ने भी संसद में CAA का समर्थन किया है, फिर यह मुस्लिम विरोधी कैसे हो सकता है।

साथियों, सोचो -समझो -पढ़ो और फिर यह तय करो कि आप सही हो या ग़लत। वैसे हमारा मज़हब भी हमें सच का साथ देने और सच को सही साबित करने के लिए लड़ाई लड़ने की नसीहत देता है। ऐसे में जागरूक बनिए- -ज़िम्मेदार बनिए। विरोध -विरोध का खेल बंद करो और खुद को सियासी कठपुतली बनने से बचाओ। समझदारी से लिया फैसला हमें इतिहास के सुनहरों पन्नों में जगह दिला सकता है तो विरोध की ज़िद हमें इतिहास बना सकती है। अगर हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार ने संसद में दो तिहाई बहुमत से नागरिकता संशोधन क़ानून पास किया है और इससे हमारा कोई नुकसान भी नहीं होना है तो इसका सम्मान व समर्थन हमारी ज़िम्मेदारी भी है और वक्त का तकाज़ा भी। अगर हम फिर भी समर्थन नहीं करना चाहते तो कम से कम हमें विरोध का भी अधिकार नहीं है। हम उन मुसलमानों की फ़िक्र में क्यों दुबले हुए जा रहे हैं, जो अपने मुल्क में रहने वाले हमारे भाइयों को मुसलमान के बजाय मुहाजिर समझते हैं। भारत में तो हमें बहुत आज़ादी मिली हुई है। अधिकार ही नहीं हमें तमाम विशेषाधिकार भी हासिल है। हमारे खिलाफ एक ज़ुबानी जुमला भी बोला जाता है तो बहुसंख्यक समुदाय के लोग हमारी आवाज़ उठाने और हमारे हक़ के लिए जूझने लगते हैं।

हम अपने देश में नागरिकता क़ानून पर कोहराम मचा रहे हैं, लेकिन हमने कभी यह नहीं सोचा कि सऊदी अरब जैसे इस्लामिक देशों में तो यह बहुत पहले से बेहद कड़ाई के साथ लागू है। हमारे जो गरीब मुस्लिम भाई सिलाई -सफाई या दूसरे कामों के लिए उमरा टिकट से अरब जाकर रोज़गार पाते हैं, उन्हें तीस दिन बाद कमरे में कैद होकर रहना पड़ता है, क्योंकि सिर्फ तीस दिन बाद ही हम वहां रहने का अधिकार खो देते हैं। वहां की पुलिस हमें गिरफ्तार कर लेती है और जेल की सलाखों के पीछे डाल देती है। तमाम दूसरे इस्लामिक देशों में भी ऐसे ही नियम हैं, फ़िर हम अपने मुल्क हिन्दुस्तान में भीड़ बढ़ाने की ज़िद पर क्यों अड़े हुए हैं। हम उसकी शुरुआत सऊदी अरब जैसे मुस्लिम देशों से क्यों नहीं कराना चाहते ?

आपने कभी यह सोचा अपवादों को छोड़कर नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ सड़कों पर होने वाले प्रदर्शन में मुस्लिम समाज का कोई भी डाक्टर -वकील -इंजीनियर- शिक्षक- पत्रकार व लेखक शामिल नहीं हुआ, क्योंकि उन्हें इसके बारे में बखूबी पता है। सोचिये दस - बारह साल का बच्चा CAA को कितना जानता है। उसके दिमाग में तो सिर्फ यह भर दिया गया है कि यह तुम्हारे यानी मुसलमानों के खिलाफ है। हमारे दिमाग में यह बैठ गया है कि मौजूदा सरकार हमें ख़त्म करना चाहती है और उसके पास हमको नीचा दिखाने के अलावा कोई दूसरा काम बचा ही नहीं है। आखिर इतना दुराग्रह क्यों ? हमारी आंख पर पट्टी क्यों ?

अगर देश की चुनी हुई सरकार और चुने हुए पीएम पर भरोसा नहीं तो वोटों के सौदागरों पर भरोसा क्यों ? CAA यानी नागरिकता संशोधन क़ानून से हमारा कोई नुकसान नहीं है। भारत में रहने वाले किसी भी नागरिक की नागरिकता पर इससे कोई खतरा नहीं है। NRC फ़िलहाल लागू नहीं हो रहा है और लागू होने पर भी इसमें मुस्लिमों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। यही सच है -यही सच है और सिर्फ यही सच है। इसलिए, आपसे अपील है कि कतई गुमराह न होइए। हिंसा न कीजिये। सड़कों पर न उतरिये। क़ानून को अपने हाथ में न लीजिये। जागरूक बनिए -ज़िम्मेदार बनिए और इस मुल्क को फ़िर से सोने की चिड़िया बनाने और दूध की नदियां बहाने लायक माहौल कायम करने में मददगार बनिए और खुले मन से बोलिये CAA कबूल है -कबूल है और दिल से कबूल है।

आपका अपना

मोहम्मद मोईन ( प्रयागराज, उत्तरप्रदेश )


NOTE : यह विचार मेरे खुद के हैं। हमारे न्यूज़ चैनल व संस्थान से इसका कोई लेना -देना नहीं है।

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मोहम्मद मोईन ( प्रयागराज, उत्तरप्रदेश )

टीवी पत्रकार



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