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उत्तर प्रदेश

अस्पताल की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार से मांगा जवाब

अस्पताल की दुर्दशा पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार से मांगा जवाब
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प्रयागराज. इलाहाबाद हाईकोर्ट में स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के चलते हाल के दिनों में हुई तीन अधिवक्ताओं की मौतों को कोर्ट ने गंभीरता से लिया है. हाईकोर्ट के सरकारी अस्पताल की बदहाली और दुर्दशा पर कोर्ट ने राज्य सरकार और हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल से जवाब मांगा है. अधिवक्ता ममता सिंह की ओर से दाखिल जनहित याचिका में हाईकोर्ट परिसर में आधुनिक सुविधा वाले 20 बेड का एक हास्पिटल बनाने की मांग की गई है.

इलाहाबाद याचिका में कोर्ट के आदेश पर हाईकोर्ट के मुख्य स्वास्थ्य अधीक्षक (CMS) को भी पक्षकार बनाया गया है. जस्टिस बीके नारायण और जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की खण्डपीठ ने यह आदेश दिया. मामले की अगली सुनवाई 11 दिसम्बर को हाईकोर्ट में होगी. गौरतलब है कि 7 नवंबर 2019 को अधिवक्ता अमूल्य रत्न श्रीवास्तव की कोर्ट रूम में बहस के दौरान हार्ट अटैक से मौत हो गई थी. उन्हें हार्ट अटैक आने के बाद कोर्ट परिसर में प्राथमिक उपचार तक नहीं मिल सका था.

इसके साथ ही जिस एम्बुलेंस से उन्हें एसआरएन अस्पताल भेजा गया. उसकी भी हालत खस्ताहाल थी. याचिका के मुताबिक इसके पहले भी इसी तरह दो और अधिवक्ताओं की कोर्ट रुम में ही अचानक बीमारी से मौत हो चुकी है, लेकिन 150 वर्ष पुराने एशिया के सबसे बड़े हाईकोर्ट में स्वास्थ्य सुविधाओं के नाम पर केवल एक होम्योपैथी और एक एलोपैथिक डिस्पेंसरी ही मौजूद है.

जिसमें दवाइयों लेकर मरीजों को लाइव सपोर्ट पर रखने तक का कोई इंतजाम नहीं है. याचिका में कहा गया है कि जबकि हाईकोर्ट में करीब 100 न्यायमूर्ति गण, 18000 अधिवक्ता गण, 1200 तृतीय श्रेणी कर्मचारी, करीब 5000 मुंशी और 600 से 700 सुरक्षाकर्मी प्रतिदिन मौजूद रहते हैं. याचिकाकर्ता अधिवक्ता ममता सिंह ने कोर्ट को बताया है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट से दिल्ली हाईकोर्ट काफी छोटा है. लेकिन इसमें सात मंजिला आधुनिक हॉस्पिटल हैं. इसके अलावा देश के कई दूसरे उच्च न्यायालयों में भी आधुनिक सुविधाओं वाले अस्पताल हैं.

याचिका कर्ता ने सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों द्वारा दिए गए फैसलों के आधार पर कहा कि स्वास्थ्य का अधिकार मौलिक अधिकार है. याची ने इलाहाबाद हाईकोर्ट परिसर में भी उच्च स्तरीय स्वास्थ्य सुविधा वाले अस्पताल बनाने की मांग की है.

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