सादर श्रद्धाञ्जली एगो संस्मरण:डा•(स्व•)बशिष्ठ

हमनी सँ बचपन से सुनत रहीं जा कि आरा के बगले दियरा में बसंतपुर गाँव के एगो मैथ में बहुते तेज आदमी डा• बशिष्ठ नारायन सिंह रहन,जवन कि नेतरहाट आ साईंस काॅलेज पटना सभ जगह से फस्ट क्लास फस्ट क के अमिरिका में वैज्ञानिक बनलनि,आ ऊ अब सनकि गइल बाड़न।
संजोग कहीं कि जब हम महराजा काॅलेज आरा में आई एस सी (82-84) के दूसरा बरिस में रहीं त एक दिन (शायद नवंबर) काॅलेज में नोटिस भइल कि काल्हु गणित के बिशिष्ट विद्वान बाबू बशिष्ठ सिंह जी आवत बानी।सभ छात्र से निहोरा कइल गइल रहे कि दूई चार रोपेया जवन बुझाई चंदा देबे के बा जवन कि उहाँ के ईलाज करे खातिर काॅलेज के तरफ से दीहल जाई।
अगिला दिन साँझि खा करीब 4 बजे के आस पास हमनी के काॅलेज के खचाखच भरल ग्राऊंड में पथर के बनल मंच के पास एगो उजर एंबेस्डर आ के रूकलि।ओहि में से निकलनि:
डा• बशिष्ठ सिंह जी।
दुबर पातर,कपार छिलवले,माथ पर लाल टीका,चुरूकी पुरि के बान्हलि,पुरान बिना आयरन के चिमुराइल ममोराइल मधेस बुलु रंग के प्रिंस कोट।पाकिट में गोलका फरेम के चस्मा।मुँह में पान(ई उनुकर सवख ना रहे)।साथ में बहुते प्रोफेसर लोग।ओहिमें उनुकर एगो छोट भाई जवन कि इंडियन आर्मी में रहलनि।उहें के हमनी के बतवनि कि बाबूजी मरि गइल रहनी हँ, उहें के श्राद्ध खातिर इनिका (भैया) के राँची पगलखाना से छूट्टी लिववा के गाँवे ले आइल रहनीं ह।
आगे बाबू साहब के जीवनी,भाग्य,दुर्भाग्य ,विद्वता आ मेधा के चर्चा हमनी गणित के प्रोफेसर श्री राजेन्द्र मिश्रा कइनी।
महाविद्यालय परिवार के ओर से हमनी के प्रधानाचार्य श्री बद्री सिंह जी के कर कमल से डा• साहब के फूल माला, अंग बस्त्रम् आ नगद 5100/-दिआइल।अंन्त में प्रिंसिपल सर,बशिष्ठ बाबू से हाथ जोरि के निहोरा कइलनि कि रउआ भोजपुर के विद्यार्थी लो के किछु आसीस दिहीं।
बाबू साहब के मानसिक स्थित सही ना रहे बाकि उहाँ के मुसकुराते खाड़ भइनी।आ के मायेक हाथ में धइनी।उहाँ के का कहनि ओहमें से जवन किछु हमरा इयाद बा हम रउआ सभे से जेंव के तेंव साझा कर रहल बानि:
ही ही ही ही ही ही।
खुस रह जा सभ जने।
आ हँ।
तेज बन जा।तेज आदमी के काम बा।
खूबि पढ़ जा तू लोग।
विदवान बने के बा।
ही ही ही ही ही ही।
बाकि हँ-
बसिठवा जस ना।
राजीउ गंधिया काल्हु फोन कइले रहुये।
ऊ बहुते डेराइल रहत बा।
हम कहनि हँ कि बोल भाई का बात?
ऊ एके बात कहुए :-चाईना।
आरे बउराह ए में डेराये के का बा?
हम रिसर्च क देले बानी।अइसन अइसन मसीन बनवले बानी कि रूस में गोरवाचोभ,अमेरिका में रीगन आ लंदन में थैचर मैडम डेराइल बाड़ी।
ए सुनऽ सुनऽ।
का कहल?
दुनिया गोल बा ?
ना,ना,ना-एक दम ना।
कोपरनिकस पूरा सही नइखन।
ई पृथ्बी लेयर से बनल बिया।
एहि में कहीं रूस बा,कहीं जापान, कहीं इटली,कहीं यूरोप,कहीं अमेरिका।
ई सभ मालूम हो रहल बा।
परत खूलि रहल बा।
ये प्रिसिपल साहेब !
ई रोपेया पइसा चद्दर माला काहें के दिहनी हँ।
का बुझनि हँ कि हमरा भी ई सभ नइखे?
जय हो महाराज !
अतना कहि के डा• साहेब पुका फारि के मायके प रोये लगनी।सभ रोये लागल।माहौल किछु देरी के बाद बदललि।
डा•साहब हाथ जोरि के कहनी:
हमरा के गीता प्रेम के गीता (संस्कृत में) आ तुलसी के माला द जा।
तुरंते कार आरा चउक प गइल आ गीता माला आईल।
उहाँ के दिआइल।
बिदाई भइल।
उहाँ के चलि गइनी आज।
बाकि उहाँ के ऊँच्च स्तर के वैज्ञानिक आ अध्यात्मिक सोच बता रहल बा कि उहाँ के फिजिक्स से उपर मेटाफिजिक्स के विद्वान संत रहीं।
अमरेंद्र सिंह
आरा