मात्र तीन महीने बीते हैं, तब वह पिता पराजित हुआ था, और बाजार विजयी...और आज.

कुछ महीनों पूर्व ही किसी के छल में फँस कर घर से भागी इस पिता की पुत्री एक टीवी चैनल पर बैठ कर इसे भला-बुरा कह रही थी। हम सब समझ रहे थे कि तब वह नहीं बोल रही थी बल्कि उसके मुँह से उसका यार और बाजार बोल रहा था, पर वह लड़की नहीं समझ रही थी।
तब बाजार के सामने अपराधी बन कर खड़ा यह पिता अपनी प्रतिष्ठा की भीख माँग रहा था, लेकिन पीड़ा के क्षणों में भी अपनी छली गयी बेटी को आशीर्वाद ही दे रहा था। किसी ने उसकी नहीं सुनी। बाजार उसे नोचता रहा। उसे सबने नोचा। किसी ने उसकी जाति के कारण, किसी ने उसके धर्म के कारण, और उस बाजारू पत्रकार ने अपने धंधे के कारण... वह खड़ा था, और लोग उसके कपड़े नोच कर उसे नंगा कर रहे थे। ठीक वैसे ही, जैसे कभी अरब के बाजारों में बेचने के लिए लड़कियों को नग्न खड़ा किया जाता था।
तब वह पिता पराजित हुआ था, और बाजार विजयी...
मात्र तीन महीने बीते हैं, और आज उसी पिता ने कूड़े में फेंकी गई किसी नवजात कन्या को पुत्री के रूप में अपनाया है। आज वह पिता विजयी हुआ है।
पिता ऐसा ही होता है। उसके बच्चे उसकी प्रतिष्ठा की सौ बार हत्या कर दें, फिर भी वह उन्हें प्रेम ही करता है। वह सारा पाप-पुण्य अपने बच्चों के लिए ही करता है। उसके प्रेम की किसी से तुलना ही नहीं हो सकती।
लड़का हो या लड़की, पिता से अधिक उसे कोई प्रेम नहीं कर सकता। किसी लड़की का प्रेमी उसके सुन्दर शरीर के कारण प्रेम करता है, तो किसी का प्रेमी उसके किसी विशेष गुण के कारण! कुछ तो धन के कारण भी प्रेम करते हैं! पर एक पिता ही होता है जो इन सब चीजों से ऊपर उठ कर प्रेम की सीमा से अधिक प्रेम करता है। बेटी कुरूप हो तब भी, अवगुण की खान हो तब भी, असभ्य हो तब भी...
प्रेमी के प्रेम के पीछे कोई न कोई कारण होता है पर पिता अकारण प्रेम करता है, और इस संसार में अकारण प्रेम करने वाला केवल और केवल पिता ही होता है।
अपने बच्चों द्वारा चलाये गए पत्थर को भी फूल की तरह स्वीकार करने की परंपरा का नाम है पिता! पिता एक व्यक्ति नहीं, एक पवित्र छत का नाम है।
बेटी के कारण ही अपमान के सागर में डूबने के बाद मुक्त होते ही उस पिता ने सबसे पहले बेटी को ही तलाशा है। मेरा दावा है पप्पू भरतौल को इस "सीता" में "साक्षी" ही दिखती होगी। वह इसे भी उतना ही प्रेम करेंगे जितना साक्षी को करते होंगे...
सीता साक्षी के अपराध की प्रायश्चित है। साक्षी एक आदर्श पुत्री न हो सकी, लेकिन राजेश मिश्र एक आदर्श पिता सिद्ध हुए हैं। सीता का राजेश मिश्रा की गोद में पड़ना इस वर्ष की सबसे सुन्दर घटना है।
पप्पू भरतौल और उनकी नवजात पुत्री को ढेरों शुभकामनाएं।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।