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उत्तर प्रदेश

मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए कंधे पर बेटे की लाश लिए भटकता रहा पिता

मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए कंधे पर बेटे की लाश लिए भटकता रहा पिता
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लखीमपुर खीरी. सरकारी व्यवस्थाओं में संवेदनहीनता की ऐसी तस्वीर सामने आई है जो मानवता को शर्मसार करने वाली है. बुधवार को एक पिता अपने मासूम बेटे की लाश को कंधे पर लेकर अस्पताल (Hospital) में सिर्फ डेथ सर्टिफिकेट (Death Certificate) के लिए दौड़ता रहा. आंखों में आंसू और कंधे पर बेटे की लाश का बोझ देखकर भी संवेदनहीन व्यवस्था का कलेजा नहीं पिघला. घंटों मशक्कत के बाद कहीं जाकर पिता को जिला अस्पताल से मृत्यु प्रमाण पत्र मिल सका. एक लाचार पिता की ये तस्वीर जिसमें उसने बेटे के शव को कंधे पर रखा हुआ है, सोशल मीडिया (Social Media) पर वायरल हो रही है.

दरअसल, थाना क्षेत्र नीमगांव के ग्राम रमुआपुर निवासी दिनेश कुमार के दो वर्ष के पुत्र दिव्यांशु को तेज बुखार के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया गया था. इलाज के दौरान बुधवार को दिव्यांशु की मौत हो गई. बच्चे की मौत से दिनेश सदमे में चले गए. जब बेटे के शव को ले जाने की बारी आई तो उसे बताया गया कि डेथ सर्टिफिकेट बनवाना जरूरी है. बिना डेथ सर्टिफिकेट के अस्पताल से छुट्टी नहीं मिलेगी. बेटे की मौत के गम से टूटे दिनेश यह सुनकर परेशान हो गए.

काफी मशक्कत के बाद कहीं जाकर मृत्यु प्रमाण पत्र बन पाया

आंखों से बह रहे आंसू और कंधे पर बेटे की लाश लिए दिनेश डेथ सर्टिफिकेट बनवाने के लिए अस्पताल में दौड़ने लगा. वह लोगों और अस्पताल स्टाफ से मदद की गुहार भी लगाता रहा, लेकिन कुछ भी नहीं हो पाया. वह कभी एक काउंटर पर जाता तो उसे दूसरे काउंटर पर भेज दिया जाता. इस तरह दिनेश काफी देर तक दौड़ता रहा. काफी मशक्कत के बाद कहीं जाकर मृत्यु प्रमाणपत्र बन पाया और वह बेटे के शव को घर ले जा पाया.

इस दौरान अस्पताल में किसी ने दिनेश की तस्वीर मोबाइल में कैद कर उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दी. मामला जब मीडिया में आया तो अस्पताल के सीएमएस डॉ राम कुमार वर्मा ने कहा कि कल दिव्यांशु नाम का दो साल का बच्चा इमरजेंसी वार्ड में एडमिट हुआ था. बच्चे की हालत बेहद नाजुक थी. उसे डॉ सुजीत के द्वारा देखा गया था. ढाई बजे के करीब इमरजेंसी में तैनात डॉ राजेश ने भी उसे देखा, लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. उन्होंने कहा कि डॉक्टर के द्वारा ही मृत्यु प्रमाणपत्र बनाया गया. डेथ सर्टिफिकेट लेने में कोई परेशानी नहीं होती. मरीज की मौत के बाद उसका प्रमाणपत्र जारी हो जाता है.

इलाज ठीक से होता तो बच जाता बेटा

उधर दिनेश का कहना है कि वह बेटे को सुबह आठ बजे के करीब अस्पताल लेकर पहुंचे थे, जहां इमरजेंसी में उसे भर्ती करवाया गया था. दिनेश का कहना है कि इलाज अगर ठीक से होता तो उसका बेटा जिन्दा होता. इतना ही नहीं उसका आरोप है कि उसे दवाई और मृत्यु प्रमाण पत्र के लिए बहुत दौड़ाया गया.

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