कुछ चीजें दिखती हैं पर होती नहीं हैं, कुछ चीजें होती हैं, पर दिखती नहीं हैं।

इस तस्वीर को देखिए, क्या दिख रहा है? बाढ़ के पानी में गर्दन से अधिक डूबा हुआ एक व्यक्ति, केले के खम्भों से बनी नाव और उस पर लदा थोड़ा सा अन्न... यही न? पर रुकिए! एक चीज है जो आपको नहीं दिख रही। वह है इसका छप्पन इंच का सीना...
भइया! थोड़े से अन्न के लिए गर्दन तक पानी में उतरने के लिए छप्पन इंच का सीना चाहिए, वह है इस बिहारी के पास। है न?
एक चीज और है, जो फ़ोटो में तो दिख रहा है पर सच में है नहीं। उस व्यक्ति के चेहरे पर भय और दुख। आपको दिख तो रहा होगा, पर है नहीं! जानते हैं, यह व्यक्ति जब अपनी इस अद्भुत नाव को ले कर सुरक्षित उतरेगा, तो एकाएक खुश हो छरक उठेगा और चिल्ला कर कहेगा, "ये मारा..." उसे निकलता देख कर अन्य बाढ़ पीड़ित होय-होय करेंगे, और उस विपत्ति काल में भी क्षण भर के लिए आनंद पसर जाएगा। जिसे आप भय कहते हैं वह उसके लिए जीवन का दैनिक युद्ध है। ये बिहारी ऐसे ही होते हैं। यूँ ही नहीं ट्रेन की छतों पर बैठ कर पंजाब चले जाते थे...
कुछ मित्रों को देख रहा हूँ, वे बिहार की बाढ़ को लेकर सेलिब्रिटियों की निर्लज्ज चुप्पी से दुखी हैं। हम सारे बिहारी उनकी इस सम्वेदना के लिए हृदय से धन्यवाद देते हैं। पर जानते हैं, सच यह है कि हमें किसी से कोई शिकायत नहीं। हमें तो यह भी पता नहीं कि बाढ़ के नाम पर मुख्यमंत्री राहत कोष में इकट्ठा हुए पैसे से हमें क्या मिलेगा.. सच तो यह है कि हमें ऐसी किसी सहायता की इच्छा ही नहीं, क्योंकि हम जानते हैं कि हमारे नाम पर इकट्ठा हुआ पैसा कोई और खायेगा। हमेशा यही होता रहा है, इस बार भी यही होगा... बाढ़ पीड़ितों को कभी चूड़ा-गुड़ से अधिक भी कुछ मिलता है क्या? भक्क...
बाढ़ राहत घोटाला बिहार में भले एक बार पकड़ा गया था, पर होता हर साल है। लालू राज हो या नीतीश राज, एक आम बाढ़ पीड़ित को न कभी कुछ मिला, न मिलेगा। फिर वह क्यों किसी सेलिब्रिटी से दुखी हो?
हमारी सहायता ससुर शाहरुख, जेठालाल, और कपिल शर्मा क्या करेंगे, यह उनके बस की बात नहीं। हमारी सहायता खुद हम करेंगे। बाढ़ में अपना सब कुछ डुबा चुका बिहारी जानता है कि अब स्थितियाँ तनिक कठिन हो जाएंगी। बच्चों के जो कपड़े, किताब-कॉपियाँ डूब गई हैं उन्हें लाने के लिए उसे तनिक अधिक मेहनत करनी होगी। पत्नी की बह चुकी साड़ियों के लिए रिक्शा दो घण्टे अधिक खींचना होगा।
वह रिक्शा डबल खींच लेगा, मजदूरी में ओवरटाइम कर लेगा। इससे भी नहीं होगा तो जेठालाल के गुजरात जा कर किसी कपड़ा फैक्ट्री में मजदूरी कर लेगा, कपिल शर्मा के पंजाब में जा कर गेहूँ की कटनी कर लेगा या शाहरुख की मुम्बई में ठेकेदारी में काम कर लेगा। हो गया... वह आत्महत्या नहीं करेगा डार्लिंग! वह बाढ़ की छाती फाड़ कर अपने डूबे हुए घर को दुबारा निकाल लेना जानता है भाई, उसे किसी नचनिया-बजनिया के सहयोग की आवश्यकता नहीं है। वह छह महीने में ही फिर इस लायक हो जाएगा कि सिनेमा हॉल में सत्तर रुपया दे के उसी शाहरुख की फ़िल्म देखेगा। वह बिहारी है जी... यूँ ही उसकी जिजीविषा से केजरीवाल से लेकर ठाकरे तक, और हार्दिक से ले कर हुड्डा तक नहीं डरते हैं।
हमारी दिक्कत बस इतनी है कि हम कुछ मामलों में सुधरना नहीं चाहते। हम थोड़े से सुधर जाँय तो... खैर!
बिहारियों के लिए यदि कुछ करना चाहते हैं तो ईश्वर से प्रार्थना कीजिये कि गङ्गा मइया का कोप शान्त हो, और इन्द्र महाराज तनिक दम धरें... शेष तो हम देख ही लेंगे। जिसने कुछ दिया उसका भी भला, जो न दे उसका भी भला... जय हो भारत की।
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।