फूलन बस नाम ही काफ़ी है...........

फूलन वीरता, साहस, संघर्ष, बलिदान, मजबूती, प्रतिरोध, अधिकार, सामाजिक न्याय, हकों की आवाज़ और क्रांति की मशाल का नाम हैl अंतरराष्ट्रीय पत्रिका टाम्स द्वारा किए गए सर्वे में फूलन देवी को दुनिया के सबसे विद्रोही महिला की सूची में शुमार करते हुए, चौथे स्थान पर रखा गया है। फूलन के विद्रोह का डंका भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बजता है। लड़ने को जो माद्दा फूलन दे गई है वो आज की क्रूर परिस्थितियों में और अधिक प्रासंगिक हो गया हैl
फूलन ने अपने ऊपर हुए अत्याचारों के दुःख से रो-रो के लूट-पिट कर मरने के बजाये लड़ने और प्रतिरोध को अपने जीवन का उद्देश्य बनायाl जिस अन्याय और अत्याचार को झेल कर फूलन क्रांति की मशाल जला आई थी उसी लड़ाई को आगे जारी रखने के लिए फूलन राजनीति में उतरी थीl फूलन की स्वीकार्यता हथियार के बल पर ही नहीं बल्कि आम जनता के न्याय के लिए लड़ने वाली नेता के रूप में हैं।
बुंदेलखंड के गाँव के एक गरीब दलित किसान परिवार से निकलकर, विद्रोह करने के बाद, सशस्त्र विद्रोह को छोड़ कर 11 बरस जेल में बिताया इसके बाद 1996 में फूलन देवी ने समाजवादी पार्टी के टिकट पर उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और रिकार्ड वोटों से जीत हासिल कर संसद में कदम रखा। फूलन देवी ने जेल से रिहा होने के बाद अपना धर्म बदल कर बौद्ध धर्म अपना लिया थाl फूलन अपने गिरोह में एक मात्र महिला थीl फूलन ने 14 फ़रवरी 1981 को बहमई में 22 ठाकुरों को लाइन से खड़ा करके गोलियों से भून दिया था क्योंकि ठाकुरों ने उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया थाl
इस सामूहिक हत्या का बदला लेने के लिए वर्ष 2001 में मात्र 38 साल की उम्र में दिल्ली में उनके घर के सामने ही फूलन देवी की हत्या कर दी गई थीl खुद को राजपूत गौरव कहने वाले कायर शेर सिंह राणा ने फूलन की हत्या की थीl हत्या करके भी खुलेआम घूम रहा यही शेर शिंह राणा सहारनपुर दंगों का मास्टर माइंड भी हैl लेकिन सवर्ण सरकार के समर्थन के चलते उसे कुछ नहीं हुआl
यहाँ तक की भारत के सवर्ण फेमिनिज़म में भी फूलन को स्वीकार नहीं किया गयाl
जबकि जरुरत है कि हर एक औरत को अपने अन्दर फूलन जगाये रखेl फूलन मरकर भी जिंदा है.......
स्मृति दिवस पर श्रदांजलि......