क्या राफेल डील पर झूठ बोल रही हैं रक्षा मंत्री, क्यों लहराया रद्द हुए समझौते का कागज?

क्या राफेल लड़ाकू विमान सौदे पर रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण देश से झूठ बोल रही हैं? अगर राफेल डील में कोई घोटाला नहीं है, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों पर वे क्यों भड़कीं? ऐसा क्या है इस डील में, जिस पर न तो प्रधानमंत्री कुछ बोल रहे हैं और न ही देश की रक्षा मंत्री। रद्द हुए समझौते का कागज सदन में लहरा कर आखिर क्या साबित करना चाहती हैं निर्मला सीतारमण? आखिर क्या वजह है कि राफेल डील पर सरकार एक झूठ को छिपाने के लिए दूसरा झूठ बोल रही है।
इस सब के बीच देश की रक्षा मंत्री भूल गईं कि राफेल सौदे से संबंधित कुछ जानकारियां उनका मंत्रालय पहले ही 'अनजाने' में उजागर कर चुका है। 18 नवंबर, 2016 को लोकसभा में प्रश्नकाल के दौरान रक्षा राज्यमंत्री ने एक प्रश्न के जवाब में रक्षा राज्य मंत्री डा. सुरेश भामरे ने जानकारी देते हुए बताया कि 23 सितंबर, 2016 को फ्रांस और भारत सरकार के बीच 36 राफेल विमान खरीदने का समझौता किया गया। उन्होंने बताया कि प्रत्येक राफेल विमान की लागत लगभग 670 करोड़ रुपए है और साल 2022 तक सभी राफेल विमानों की सप्लाई कर दी जाएगी।
इससे पहले शुक्रवार को मानसून सत्र के दौरान लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने जब डील को लेकर फ्रांस के राष्ट्रपति से बातचीत का ब्यौरा दिया, तो रक्षा मंत्री बिफर पड़ीं। राहुल गांधी ने सदन को बताया कि जब फ्रांस के राष्ट्रपति भारत के दौर पर आए, तो फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने बताया था कि राफेल विमान सौदे को लेकर भारत और फ्रांस सरकार के बीच गोपनीयता का कोई समझौता नहीं हुआ है।
राहुल के इन आरोपों के बाद रक्षा मंत्री ने इसे सिरे से खारिज करते हुए आरोपों को 'पूरी तरह गलत' करार दिया। रक्षा मंत्री ने जवाब में 2008 में यूपीए सरकार के दौरान तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटनी का दस्तखत किया एक कागज लहरा दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि 25 जनवरी 2008 को फ्रांस के साथ सीक्रेसी अग्रीमेंट कांग्रेस सरकार ने किया था, हम तो केवल इसे आगे बढ़ा रहे हैं और इस अग्रीमेंट में राफेल डील भी शामिल है।
हालांकि रक्षा मंत्री भूल गईं कि जिस समझौते का कागज सदन में लहरा कर वह सरकार को पाकसाफ करने के सूबत के तौर पर दिखा रही हैं, उसी 12 दिसंबर 2012 को तत्कालीन यूपीए सरकार के राफेल खरीद वाले सौदे को मोदी सरकार पहले ही रद्द कर चुकी है। खरीद रद्द करने का मतलब है सौदा रद्द। ऐसे में जब सौदा ही रद्द हो गया, तो सीक्रेसी क्लॉज को दिखाने का कोई मतलब नहीं रह जाता। यानी कि रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को जो कागज लहराया, वह रद्द हो चुके सौदे का कागज था, जिसका वर्तमान में कोई अस्तित्व ही नहीं है।
राफेल डील को लेकर कांग्रेस का आरोप है कि मोदी सरकार ने प्लेन की कीमत अप्रत्याशित रूप से बढ़ा दी हैं। कांग्रेस का कहना है कि 12 दिसंबर 2012 को तत्कालीन यूपीए सरकार ने 126 मध्यम बहुउद्देश्यीय राफेल लड़ाकू विमानों के लिए 54 हजार करोड़ रुपये में सहमति जताई थी।
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि फ्रांस की कंपनी के लिए सौदे का 50 प्रतिशत भारत में निवेश करना अनिवार्य था। इसी आधार पर 13 मार्च 2014 को एचएएल और दसॉ एवियेशन के बीच में समझौता हुआ था। जिसमें 108 लड़ाकू विमान के 70 प्रतिशत कार्य हिन्दुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड और 30 प्रतिशत डेसाल्ट द्वारा किए जाने थे। वहीं मोदी सरकार ने 30 जुलाई 2015 को लड़ाकू विमान के यूपीए सरकार के समय से चले आ रही खरीद प्रक्रिया को रद्द कर दिया। सुरजेवाला ने बताया कि 23 सितंबर 2016 को केन्द्र सरकार की तरफ से 8.7 अरब डॉलर में बिना तकनीकी हस्तांतरण के 36 राफेल लड़ाकू विमानों को लिए जाने की सूचना सार्वजनिक हुई।
सुरजेवाला के मुताबिक 16 फरवरी 2017 को अनिल अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस डिफेंस ने फ्रांस की दसॉ के साथ साथ रक्षा उत्पादन को लेकर समझौता किया। रिलायंस इंफ्रा की वेब साइट के अनुसार कंपनी ने फ्रांस की कंपनी के साथ 36 राफेल युद्धक विमानों के लिए 30 हजार करोड़ रुपये के ऑफसेट का समझौता किया है।