नियुक्ति के इंतजार में प्रशासन के चक्कर काट रहे उर्दू सहायक अध्यापक भर्ती के अभ्यर्थी
बेसिक शिक्षा विभाग में 4000 उर्दू सहायक अध्यापकों की भर्ती अटकी हुई है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गत फरवरी में सरकार को दो महीने में इनकी भर्ती के आदेश दिए थे, लेकिन अब तक अभ्यर्थियों को नियुक्ति नहीं दी गई है।
सपा सरकार के समय दिसंबर 2016 में 12460 सहायक अध्यापकों और 4000 उर्दू सहायक अध्यापकों की भर्ती निकाली गई थी। प्रदेश में नई सरकार के गठन के बाद 21 मार्च 2017 को काउंसलिंग की गई।
इसके बाद करीब एक वर्ष तक सरकार ने सहायक अध्यापकों और उर्दू शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाया। इस पर अभ्यर्थियों ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। इस पर उच्च न्यायालय ने गत फरवरी में सरकार को दो महीने में नियुक्ति करने के आदेश दिए।
सरकार ने इसी वर्ष अप्रैल-मई में 12460 सहायक अध्यापकों की भर्ती पूरी कर चयनित अभ्यर्थियों को नियुक्ति भी दे दी, लेकिन उर्दू शिक्षकों की नियुक्ति पर कोई निर्णय नहीं लिया है। ऐसे में तीन हजार से अधिक चयनित अभ्यर्थी नियुक्ति के लिए निदेशालय और सचिवालय के चक्कर लगा रहे हैं। अभ्यर्थियों ने गत दिनों लखनऊ में धरना-प्रदर्शन कर बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री अनुपमा जायसवाल को ज्ञापन भी दिया था।
सबका साथ सबका विकास का दावा झूठा
उर्दू शिक्षक अभ्यर्थी इरशाद रब्बानी का कहना है कि भाजपा सरकार सबका साथ सबका विकास का दावा करती है, लेकिन 12460 सहायक अध्यापकों को नियुक्ति दे दी गई, जबकि उर्दू के 4000 शिक्षकों को इसलिए नियुक्ति नहीं दी जा रही है क्योंकि इनमें सर्वाधिक अल्पसंख्यक अभ्यर्थी हैं। प्रत्येक स्तर पर मांग रखने के बाद भी नियुक्ति नहीं दी गई है, जबकि स्कूलों में उर्दू शिक्षक के पांच हजार से अधिक पद खाली हैं।