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उत्तर प्रदेश

अविश्वास प्रस्तावः ताकत नहीं दिखी तो विपक्ष की भारी किरकिरी होगी

अविश्वास प्रस्तावः ताकत नहीं दिखी तो विपक्ष की  भारी किरकिरी होगी
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मोदी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव को लेकर विपक्ष की चुनौती भी कम नही है। वैसे तो प्रस्ताव का गिरना तय है। फिर भी विपक्ष को अपना दमखम दिखाने के लिए प्रस्ताव के समर्थन में अच्छी संख्या जुटानी होगी। यदि वह इसमें सफल नहीं होता है] तो संसद के भीतर उसकी भारी किरकिरी होगी। इससे आगे वह आक्रामक तेवर बरकरार नहीं रख पाएगा।

अविश्वास प्रस्ताव स्वीकार करने को मोदी सरकार का मास्टर स्ट्रोक माना जा रहा है। इसलिए विपक्ष की तरफ से अंतिम वक्त तक दलों को साथ लेने की कोशिश की गई। विपक्ष इस प्रस्ताव के जरिये अपनी एकजुटता एवं शक्ति दिखाना चाहता है। लेकिन जिस प्रकार गुरुवार को अन्नाद्रमुक सरकार के पक्ष में आ गई और बीजद समेत कई दलों ने अपना रुख स्पष्ट नहीं किया। उससे विपक्ष खासकर कांग्रेस की की चुनौती बढ़ गई है। वैसे, यह प्रस्ताव टीडीपी के होने के कारण भी इसमें कई क्षेत्रीय समीकरण भी समा गए हैं।

खबर यह है कि बीजद सिर्फ इसलिए प्रस्ताव पर विपक्ष के साथ नहीं है, क्योंकि वह देखना चाहता है कि पोलावरम बांध पर टीडीपी क्या रुख अपनाती है। ओडिशा बांध के विरोध में है। इसी प्रकार अन्नाद्रमुक के भी आंध्र प्रदेश के साथ कई मुद्दों पर मतभेद हैं।

लोकसभा के पूर्व सचिव देवेंद्र सिंह कहते हैं कि विपक्ष के लिए यह सिर्फ इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि चुनाव से ठीक पूर्व वह एकजुटता दिखा सकता है। जबकि सरकार के लिए इसलिए महत्वपूर्ण है कि उसे पता लग जाएगा कि कौन दोस्त है और कौन दुश्मन। दूसरे, विपक्ष को खुलकर सरकार को किसी भी मुद्दे पर कटघरे में खड़ा करने का मौका मिलेगा। लेकिन लोकसभा में पक्ष-विपक्ष की जो सीट संख्या है,उसके हिसाब से सत्ता पक्ष को बोलने का ज्यादा मौका मिलेगा। यानी विपक्ष के हमलों का भूरपूर जवाब देने का मौका सरकार के पास होगा। इसलिए बोलने के मामले में भी विपक्ष लाभ में नहीं है।

पिछले सत्र में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा नहीं होने के कारण पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध कायम रहा और कोई कामकाज नहीं हो पाया। इस बार अच्छा यह है कि सरकार की तरफ से गतिरोध तोड़ने के लिए पहले ही शुरुआत कर दी गई है। लेकिन इस प्रस्ताव के गिर जाने के बाद विपक्ष पर नैतिक दबाव बनेगा कि संसद चलने दे। क्योंकि उसके समक्ष सरकार को घेरने के लिए तुरंत दूसरा कोई ठोस मुद्दा नहीं होगा।

अब तक 26 अविश्वास प्रस्ताव

- अब तक कुल 26 अविश्वास प्रस्ताव आए हैं। मोदी सरकार के खिलाफ यह 27वां अविश्वास प्रस्ताव है।

- पहली बार 1963 में समाजवादी आचार्य कृपलानी,नेहरू सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाए थे।

- 2003 में वाजपेई सरकार के खिलाफ पिछली बार कांग्रेस अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी।

- 1993 में नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया था।

23 प्रस्ताव कांग्रेस या कांग्रेस समर्थित सरकार के खिलाफ

- 26 अविश्वास प्रस्तावों में सबसे अधिक 23 प्रस्ताव कांग्रेस सरकारों के खिलाफ आए।

- 15 अविश्वास प्रस्तावों का सामना अकेले इंदिरा गांधी सरकार ने किया, सबसे अधिक

- लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव के खिलाफ तीन-तीन, मोरारजी देसाई के खिलाफ दो अविश्वास प्रस्ताव

- पंडित जवाहर लाल नेहरू, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेई सरकार के खिलाफ एक-एक अविश्वास

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