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उत्तर प्रदेश

चंदन मित्रा ने छोड़ा बीजेपी का साथ, तृणमूल का हाथ थामेंगे

चंदन मित्रा ने छोड़ा बीजेपी का साथ, तृणमूल का हाथ थामेंगे
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बीजेपी में पुराने नेताओं की नाराजगी बढ़ती जा रहा है। दो बार के राज्यसभा सांसद व राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य चंदन मित्रा ने भी भाजपा से इस्तीफा दे दिया है। मित्रा 21 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। इसके पहले बीते साल भाजपा के महाराष्ट्र के नेता व लोकसभा सांसद नाना पटोले ने भी भाजपा व लोकसभा दोनों से इस्तीफा दे दिया है।

भाजपा की तेजी से हो रही प्रगति के बीच उसके भीतर के नेताओं की नाराजगी भी सामने आ रही है। सांसद शत्रुघ्न सिन्हा व कीर्ति आजाद का अलग-अलग मुद्दों पर मुखर विरोध सामने आ चुका है। बीते चार साल में पूर्व मंत्री यशवंत सिन्हा व अरुण शौरी तो विरोध करते करते भाजपा से बाहर भी जा चुके हैं। बीते साल गोदिंया-भंडारा से लोकसभा सांसद नाना पटोले ने भी भाजपा व लोकसभा से इस्तीफा दे दिया था। बाद में हुए उपचुनाव में भाजपा वह सीट भी हार गई थी।

अब चंदन मित्रा का इस्तीफा सामने आया है। पूर्व में भाजपा के थिंक टैंक में शामिल रह चुके मित्रा अभी राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य थे और दो बार राज्यसभा सांसद रह चुके हैं। वे बिहार व पश्चिम बंगाल में पार्टी के प्रभारी भी रह चुके हैं। मित्रा ने 2014 में हुगली सीट से लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। हारने पर भी उन्होंने दो लाख से ज्यादा वोट हासिल किए थे। सूत्रों के अनुसार मित्रा 21 जुलाई को तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने जा रहे हैं।

भाजपा ने नहीं दी ज्यादा तवज्जो

चंदन मित्रा के भाजपा से बाहर जाने को पार्टी ने ज्यादा तरजीह नहीं दी है। वैसे भी लंबे समय से मित्रा भाजपा में अलग थलग पड़े थे। पार्टी के एक प्रमुख नेता ने कहा है कि पार्टी छोड़ने वाले को रोका नहीं जाता है। जो सिद्धांतों से बंधे हैं वे पार्टी के साथ हैं। चंदन मित्रा को पार्टी ने भरपूर दिया है, लेकिन वे छोड़ रहे हैं, यह उनका फैसला है। मित्रा ने भी पार्टी को लेकर कोई नाराजगी नहीं जताई है। मित्रा को पार्टी में आडवाणी खेमे का माना जाता था।

तृणमूल को मिलेगा लाभ

पश्चिम बंगाल में भाजपा बड़ी ताकत के रूप में उभर रही है और उसे रोकने के लिए ममता बनर्जी पूरी ताकत लगाए हुए हैं। चंदन मित्रा के साथ आने से उनको लाभ मिलेगा। मित्रा भाजपा की कोर रणनीति से जुड़े रह चुके हैं, ऐसे में वह तृणमूल कांग्रेस की रणनीति में अहम भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, भाजपा का मानना है कि पार्टी की तब की और अब की रणनीति में जमीन आसमान का अंतर है।

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