Janta Ki Awaz
उत्तर प्रदेश

भगवान शिव का एक रूप दक्षिणामूर्ति है, और यह गुरुओं के गुरु हैं : प्रेम शंकर मिश्र

भगवान  शिव का एक रूप  दक्षिणामूर्ति है, और यह गुरुओं  के गुरु हैं : प्रेम शंकर मिश्र
X

वटविटपसमीपे भूमिभागेनिषण्णं,

सकलमुनिजनानां ज्ञानदातारमारात् ।

त्रिभुवनगुरुमीशं दक्षिणामूर्तिदेवं

जनन-मरण-दुखच्छेद-दक्षं नमामि ।।

चित्रं वटतरोर्मूले वृद्धा: शिष्या गुरुर्युवा।

गुरोस्तु मौनं व्याख्यानं शिष्यास्तु छिन्नसंशया: ।। ( श्रीदक्षिणामूर्ति स्तोत्रम्)

अर्थात् "वट वृक्ष की छाया में भूमि आसन पर पद्मासन में विराजमान चार भुजा वाले भगवान दक्षिणामूर्ति सभी मुनियों को मौन रूप से ज्ञान देने वाले , त्रिभुवन पति जन्म और मृत्यु जन्य दुःख को समाप्त करने में दक्ष , उनका हम नमन करते है।

गुरु का दृश्य बड़ा अद्भुत है , श्री दक्षिणामूर्ति गुरु भगवान तो युवा हैं और शिष्य वृद्ध हैं , वह शिष्यों के संशय को मौन रहते हुये छिन्न अर्थात् समाप्त कर रहे हैं"।

शिवतत्व ज्ञान में ९ प्रश्न हैं। १ परम रहस्य क्या है २ देव कौन है ३ मंत्र क्या हैं ४ निष्ठा क्या है ५ उस ज्ञान का साधन क्या है ६परिकर कौन हैं ७ बलि क्या है ८काल क्या है और ९ स्थान क्या है ।

इन सभी प्रश्नों का क्रम से श्री मारकंडे ऋषि ने शौनक आदि उपस्थित मुनियों को उत्तर समझा दिया था । श्री दक्षिणामूर्ति उपनिषद में सब उपलब्ध है ।

"यन्मौनव्याख्यया मौनपटलं क्षणमात्रत:।

महामौनपदं याति स हि में परमागति:"।

मौन ब्याख्यान से ही गुरु शिष्य को छण मात्र के अंदर महामौन पद के साथ परमगति प्रदान कर देते हैं। अर्थात् निर्विषय होकर ध्यान में चित्त समाहित हो जाता है।

श्रीललिता सहस्रनाम और श्री भवानी सहस्र नाम में श्री देवी को दक्षिणामूर्ति -रूपणी कहा गया है । तंत्र शास्त्र के अनेक संप्रदायों में से एक संप्रदाय दक्षिणामूर्ति है जो समय मत के उपदेशक हैं । श्री देवी के अनन्य साधक होते हुये वह गुरु माता से अभेद हैं । श्रीदक्षिणामूर्ति देव सभी विद्या एवं ज्ञान को देने वाले देवता है और इनका आराधक सभी प्रकार के ज्ञान विज्ञान में निष्णात हो जाता है ।

श्री स्वामी करपात्री जी महाराज ने श्री विद्या -रत्नाकर में दक्षिण आम्नाय में श्री दक्षिणामूर्ति देव के मंत्र लिख दिये हैं, जो साधकों के लिये परम उपयोगी हैं । एक मंत्र मैं नीचे दे रहा हूँ , जो कि अनुभूत है और यह मंत्र दैववश मुझे प्राप्त है । यह चौबीस अक्षर का मंत्र है ।इसकी साधना से मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है ।

श्री मेधादक्षिणामूर्ति मंत्र के #ब्रह्मा ऋषि , गायत्री छन्द, और देवता दक्षिणा हैं ।

ध्यान:

स्फटिक रजतवर्णं मौक्तिकीमक्षमाला ,

ममृतकलशविद्यां ज्ञानमुद्रां कराग्रे।

दधतमुरगकछ्यं चन्द्रचूडं त्रिणेत्रं,

विधृतविविधभूषं दक्षिणामूर्तिमीडे ।।

मूल मंत्र :

" ॐ नमो भगवते दक्षिणामूर्तये मह्यं मेधां प्रज्ञां प्रयच्छ स्वाहा "

चौबीस अक्षर वाले इस मंत्र का जप करने से (यज्ञोपवीत संस्कार के बाद) पढ़ाई – लिखाई में विशेष लाभ होता है ।श्री शंकराचार्य महाराज द्वारा रचित एक स्तोत्र उपलब्ध है , जिसका नाम श्रीदक्षिणामूर्तिस्तोत्रम् हैं। इस पर श्री सुरेश्वराचार्य की टीका है जो श्रृंगेरी मठ से प्रकाशित है । प्रत्यभिज्ञा का स्वत: ज्ञान हो जाता है । यह छोटा सा स्तोत्र ज्ञान से पूर्ण है । लोग लाभान्वित हों , यही श्री दक्षिणामूर्ति देव से प्रार्थना है ।

"शिवो गुरु: शिवो वेद: शिवो देय: शिव: प्रभु:।

शिवो$स्म्यहं शिव: सर्वं शिवादन्यन्न किश्चन्" ।।

इति शिवम्

Next Story
Share it