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लाल कृष्ण आडवाणी का जन्मदिन: 10वीं तक किया हर क्लास में टॉप, स्कूल में की लैटिन की पढ़ाई, संस्कृत न सीखने का रहा अफसोस

लाल कृष्ण आडवाणी का जन्मदिन: 10वीं तक किया हर क्लास में टॉप, स्कूल में की लैटिन की पढ़ाई, संस्कृत न सीखने का रहा अफसोस
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भारतीय जनता पार्टी की राजनीति को जिन दो कंधों ने केंद्र की सत्ता तक पहुंचाया उनके नाम अटल बिहारी वाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी हैं। आज भले ही उनकी राजनीतिक सत्ता तेजविहीन नजर आ रही हो लेकिन एक वक्त था कि अटल पार्टी के जनप्रिय नायक थे तो आडवाणी बीजेपी की सांगठनिक ताकत के प्रकाश पुंज थे। लाल कृष्ण आडवाणी मंगलवार (आठ नवंबर) को अपना 89वां जन्मदिन मनाएंगे। पिछले कुछ दशकों में आडवाणी के राजनीतिक जीवन से जुड़ी लगभग हर बड़ी-छोटी बात मीडिया की सुर्खियों में रही है। इसलिए आज उनके जन्मदिन पर हम आपको बीजेपी के लौह पुरुष कहे जाने वाले आडवाणी के शुरुआती निजी और राजनीतिक जीवन के बारे में कुछ कम जानी-सुनी बातें बताएंगे।

आडवाणी का जन्म आठ नवंबर 1927 को कराची शहर में एक संपन्न सिंधी संयुक्त परिवार में हुआ था। आडवाणी ने खुद अपनी आत्मकथा में बताया है कि वो 34 चचेरे भाई-बहनों के बीच पले-बढ़े थे। उनकी शुरुआती पढ़ाई-लिखाई कराची के सबसे बेहतरीन स्कूल माने जाने वाले सेंट पैट्रिक में हुई। उनके पिता किशनचंद कारोबारी और मां ज्ञानी देवी गृहिणी थीं। उनके दादा धर्मदास खूबचंद आडवाणी संस्कृत के विद्वान और सरकारी हाई स्कूल के प्रिंसपल थे। उनकी एक बहन है, शीला जो उनसे छह साल छोटी हैं और अभी मुंबई में रहती हैं।

आडवाणी का परिवार कराची के प्रतिष्ठित पारसी इलाके "जमशेद क्वार्टर" में एक तल्ले के बंगले में रहता था। उनके पास उन दिनों शानोशौकत का प्रतीक माने वाली विक्टोरिया घोड़ागाड़ी भी थी। आडवाणी की उम्र जब 13 साल थी तभी उनकी मां का देहांत हो गया। उसके बाद आडवाणी और उनकी बहन का लालन-पालन उनकी मौसियों ने किया।

आडवाणी ने दसवीं तक पढ़ाई सेंट पैट्रिक हाई स्कूल, कराची से की। वो वहां 1936 से 1942 तक छात्र रहे। ईसाई मिशनिरयों द्वारा 1845 में स्थापित किए गए इस स्कूल में पढ़ना उन दिनों प्रतिष्ठा का विषय समझा जाता था। आडवाणी पढ़ने-लिखने में काफी तेज थे। वो दसवीं तक हर क्लास में प्रथम आते रहे थे। स्कूल में उन्होंने दूसरे विषय के तौर पर लैटिन विषय चुना था जिसमें उन्हें काफी अच्छे नंबर भी आए थे। हालांकि बाद के जीवन में उन्हें संस्कृत न सीख पाने का काफी अफसोस रहा। ईसाई स्कूल होने के कारण वहां संस्कृत की पढ़ाई नहीं होती थी।

1942 में ही आडवाणी के जीवन में ऐसा मोड़ आया जो उनकी भावी जिंदगी की पहचान बनने वाला था। 1942 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े और इसी साल हैदराबाद (अब पाकिस्तान में स्थित) दयाराम गिडुमल नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। कॉलेज की पढ़ाई पूरी करके 1944 में वो कराची के मॉडल हाई स्कूल में टीचर हो गए।

भारत के बंटवारे ने आडवाणी के जीवन की धारा बदल दी। 15 अगस्त 1947 को भारत का विभाजन हुआ और 12 सितंबर 1947 को वो 20 साल की उम्र में सिंध से हवाई जहाज से दिल्ली आए। दिल्ली आने तक उन्हें बहुत मामूली हिंदी आती थी। बाद में उन्होंने हिंदी लेखकों की किताबें पढ़कर अपनी हिंदी बेहतर की। 1947 में ही आडवाणी आरएसएस के प्रचारक के तौर पर राजस्थान के अलवर, भरतपुर, कोटा, बूंदी और झालावाड़ में काम करने लगे। उन्होंने 1951 तक राजस्थान में रहकर प्रचारक के तौर पर संघ का काम किया। 1952 में उन्हें राजस्थान प्रदेश जन संघ का संयुक्त सचिव बनाया गया।

आडवाणी के जीवन में एक बड़ा मोड 1957 में तब आया जब उन्हें अटल बिहारी वाजपेयी और जनसंघ के दूसरे सांसदों की सहायता के लिए राजस्थान से दिल्ली भेजा गया। 1958 से 1963 तक वो दिल्ली राज्य जन संघ के सचिव रहे। 1960 से 1967 तक उन्होंने जन संघ के राजनीतिक समाचार पत्र ऑर्गेनाइजर में असिस्टेंट एडिटर के तौर पर काम किया। 25 फरवरी 1965 को उन्होंने कमला आडवाणी से विवाह किया। आडवाणी दंपति के दो बच्चे हैं। बेटी प्रतिभा और बेटा जयंत। 1967 में वो दिल्ली महानगर पालिका के चेयरमैन बने।

1970 में उन्हें पहली बार राज्य सभा सदस्य बने। दिसंबर 1972 में उन्हें भारतीय जन संघ का अध्यक्ष चुना गया। 26 जून 1975 को जब देश में इमरजेंसी लगाई गई तो आडवाणी को बैंगलोर में गिरफ्तार कर लिया गया। 1977 में जब जनता पार्टी की सरकार बनी तो आडवाणी को सूचना एवं प्रसारण मंत्री बनाया गया।

1980 में अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मिलकर भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की और पार्टी के महासचिव बने। 1986 में बीजेपी के अध्यक्ष चुने गए। 1989 में बीजेपी उनके नेतृत्व में 86 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी संसदीय पार्टी बनकर उभरी। बीजेपी को अपने पहले लोक सभा चुनाव में केवल दो सीटें मिली थीं।

1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा शुरू की। राम मंदिर आंदोलन के अगुआ के तौर पर उन्होंने पूरे देश में पार्टी का प्रभाव बढ़ाने में मदद की। 1999 में जब केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी तो उन्हें गृह मंत्री और उप प्रधानमंत्री बनाया गया। 2004 में जब बीजेपी सत्ता से बाहर हो गई तो नेता विपक्ष बने। 2008 में उन्होंने "माई कंट्री, माई लाइफ" नाम से अपनी आत्मकथा लिखी जिसका लोकार्पण डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम ने किया था। उनकी आत्मकथा का हिंदी, मराठी, कन्नड़, तेलुगु, तमिल और उर्दू अनुवाद हो चुका है। 2009 में पांचवी बार और 2014 में छठी बार लोक सभा के लिए चुने गए।

आडवाणी को किशोरावस्था से ही किताबों से बहुत प्यार है। केएम मुंशी, एसआर राधाकृष्णन, सी राजगोपालचारी, एल्विन टॉफलर, दुर्गा दास बसु जैसे लेखकों की किताबों के आडवाणी बडे़ प्रशंसक रहे हैं। उन्हें नाटक और फिल्म देखना भी बहुत पसंद है। उन्हें सत्यजीत रे, गुरु दत्त, मनोज कुमार और राज कपूर की शुरुआती फिल्में काफी पसंद हैं। अभिनेताओं में उन्हें अमिताभ बच्चन खास तौर पर पसंद हैं। उन्हें लता मंगेशकर के गीत भी काफी पसंद हैं। अपनी पत्रकारीय जीवन के दौरान वो फिल्म समीक्षा भी लिखा करते थे। सिनेमा से उनके प्यार को इसी से समझा जा सकता है कि उन्होंने अपना पिछला जन्मदिन चक्रव्यूह फिल्म देखकर मनाया था।

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