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उत्तर प्रदेश

भाई दूज पूजा विधि 2016: इस समय बहनें करें भाइयों को टीका, जानिए शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

भाई दूज पूजा विधि 2016: इस समय बहनें करें भाइयों को टीका, जानिए शुभ मुहूर्त और व्रत कथा
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दिवाली के पांचवे और अंतिम दिवस के रूप में भाई दूज मनाया जाता है। भाई दूज इस बार एक नवंबर को मनाया जा रहा है। इस दिन बहनें अपनी भाइयों के रोली और अक्षत से तिलक करके उनके उज्जवल भविष्य की कामना करती है। रक्षा बंधन की तरह ही भाई दूज का भी अपना ही महत्व है। इसे भाई बहन के प्यार और त्याग के त्योहार के रूप में मनाया जाता है। हिंदू कैलेंडर के मुताबिक भाई-दूज कार्तिक के महीने में मनाया जाता है। इस साल भाई-दूज के लिए टीके का शुभ समय 2 घंटे 10 मिनट का है। वहीं, टीके का शुभ मुहूर्त दोपहर 01:39 बजे से लेकर 03 बजकर 20 मिनट तक है। बहनों को इस दिन अपने भाई के दीर्घ जीवन, कल्याण एवं उत्कर्ष हेतु तथा स्वंय के सौभाग्य के लिए अक्षत कुमकुम आदि से अष्टदल कमल बानकर इस व्रत का संकल्प कर मृत्यु के देवता की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।

जानें क्या है टीके का शुभ मुहूर्त
दोपहर 01:39 बजे से लेकर 03 बजकर 20 मिनट तक। इस दिन मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल द्वितीय को जो भाई अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार करते हैं उन्हें यमराज का भय नहीं रहता।

जानें कैसे करें भाई-दूज की पूजा विधि
भाई दूज के दिन बहनों को भाई के माथे पर टीका लगा उसकी लंबी उम्र की कामना करनी चाहिए। इस दिन सुबह पहले स्नान करके विष्णु और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके उपरांत भाई को तिलक लगाना चाहिए। भैया दूज वाले दिन बहनें आसन पर चावल के घोल से चौक बनाएं। इस चौक पर अपने भाई को बिठाकर उनके हाथों की पूजा करें। सबसे पहले बहन अपने भाई के हाथों पर चावलों का घोल लगाए। उसके ऊपर सिंदूर लगाकर फूल, पान, सुपारी तथा मुद्रा रख कर धीरे-धीरे हाथों पर पानी छोड़ते हुए मंत्र बोले 'गंगा पूजा यमुना को, यमी पूजे यमराज को। सुभद्रा पूजे कृष्ण को गंगा यमुना नीर बहे मेरे भाई आप बढ़ें फूले फलें।' इस दिन सुबह पहले स्नान करके विष्णु और गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। इसके उपरांत भाई को तिलक लगाना चाहिए।

भैया दूज की कथा
भगवान सूर्य नारायण की पत्नी का नाम छाया था। उनकी कोख से यमराज तथा यमुना का जन्म हुआ था। यमुना यमराज से बड़ा स्नेह करती थी। वह उससे बराबर निवेदन करती कि इष्ट मित्रों सहित उसके घर आकर भोजन करो। अपने कार्य में व्यस्त यमराज बात को टालते रहे। कार्तिक शुक्ला का दिन आया। यमुना ने उस दिन फिर यमराज को भोजन के लिए निमंत्रण देकर, अपने घर आने के लिए वचनबद्ध कर लिया। यमराज ने सोचा कि मैं तो प्राणों को हरने वाला हूं। मुझे कोई भी अपने घर नहीं बुलाना चाहता। बहन जिस सद्भावना से मुझे बुला रही है, उसका पालन करना मेरा धर्म है। बहन के घर आते समय यमराज ने नरक निवास करने वाले जीवों को मुक्त कर दिया। यमराज को अपने घर आया देखकर यमुना की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसने स्नान कर पूजन करके व्यंजन परोसकर भोजन कराया। यमुना द्वारा किए गए आतिथ्य से यमराज ने प्रसन्न होकर बहन को वर मांगने का आदेश दिया। यमुना ने कहा कि भद्र! आप प्रति वर्ष इसी दिन मेरे घर आया करो। मेरी तरह जो बहन इस दिन अपने भाई को आदर सत्कार करके टीका करे, उसे तुम्हारा भय न रहे। यमराज ने तथास्तु कहकर यमुना को अमूल्य वस्त्राभूषण देकर यमलोक की राह की। इसी दिन से पर्व की परम्परा बनी। ऐसी मान्यता है कि जो आतिथ्य स्वीकार करते हैं, उन्हें यम का भय नहीं रहता। इसीलिए भैयादूज को यमराज तथा यमुना का पूजन किया जाता है।

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