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उत्तर प्रदेश

लोहिया के रास्ते पर समाजवादी नेतृत्व : मणेन्द्र मिश्रा 'मशाल'

लोहिया के रास्ते पर समाजवादी नेतृत्व : मणेन्द्र मिश्रा मशाल
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लोहिया की 50वीं पुण्यतिथि पर पिछले पाँच दशकों में उनके विचार परंपरा का समकालीन राजनीति पर पड़ने वाले प्रभाव की चर्चा के लिए सबसे मुफीद समय है।लोहिया ने देश-दुनिया से मिले अपने अनुभवों को अपनी विश्लेषणात्मक मौलिक क्षमता के आधार पर समाज के अंतिम व्यक्ति की बेहतरी के लिए सप्त क्रांति का सिद्धांत दिया।जिसमें सभी प्रकार के भेदभाव का पुरजोर विरोध किया गया।उन्होंने इस बात पर सदैव जोर दिया कि सामाजिक जीवन में रहते हुए व्यक्तिगत आकांक्षाओं की तिलांजलि देनी पड़ती है।राजनीति त्याग और संघर्ष का रास्ता है।उनके जीवन यात्रा को देखते हुए यह आसानी से समझा जा सकता है।

लोहिया होने का मतलब वंचितों की लड़ाई लड़कर उन्हें मुख्यधारा में शामिल करना है।जाति-धर्म से परे हटकर मानव होने के धर्म का पालन ही लोहिया का समाजवाद है।वे आजीवन अपने सिद्धांतों का पालन करते रहे।केरल में निर्वाचित अपनी सरकार के जनविरोधी कदम का विरोध करते उसे इस्तीफ़ा देने का दबाव,बिहार में सोशलिस्ट सरकार के मंत्रियों की फिजूलखर्ची के खिलाफ,नेहरू की आर्थिक नीतियों का पुरजोर विरोध जैसे निर्णय लोहिया को राजनैतिक जमात में तत्कालीन राजनीतिज्ञों से विशिष्ट बनाते हैं।मृत्यु के समय बैंक खाते में कुछ सौ की मामूली रकम,निजी संपत्ति के नाम पर कुछ भी न होना लोहिया की निर्विवाद महानता की बानगी है।अर्थ नीति,भाषा नीति,विदेश नीति, दवा-पढ़ाई मुफ़्ती की नीति सहित अनेक मुद्दों पर उनके मौलिक विचार आज भी राजनीतिक जीवन में सत्ता प्रमुखों के लिए मार्गदर्शन का कार्य करते हैं।

लोहिया के निधन उपरान्त उनके विचार प्रवाह की लौ कभी धीमी नही हुयी। जिसमें बड़ा योगदान उनके व्यक्तित्व से प्रभावित होने वाले समाज के विभिन्न वर्गों का है।सदन में लोहिया के संसदीय दल के नेता रहे राम सेवक यादव से लेकर राज नारायण,जनेश्वर ने उस धारा को बखूबी सशक्त और जनवादी बनाये रखा। नब्बे के दौर में मंडल-कमंडल की राजनीति से जब सामाजिक ताना बाना टूटने लगा,ऐसे में समाजवादी पार्टी सुप्रीमों नेता जी मुलायम सिंह यादव ने न केवल आगे बढ़कर गंगा-जमुनी तहजीब को मजबूत करते हुए सामाजिक समन्वय को बचाये रखा,बल्कि इसके सशक्त प्रतिरोध के लिए लोहिया की धारा के लोगों को एक मंच पर लाकर समाजवादी पार्टी का गठन भी किया।जो बाद के वर्षों में क्षेत्रीय और राष्ट्रीय धरातल पर लोहिया के समाजवादी मॉडल को पूरा करने में सतत् संलग्न रही। मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में जनेश्वर मिश्र के साथ समाजवादी सोच के बृजभूषण तिवारी,बाबू कपिलदेव सिंह,किरणमय नंदा,रामशरण दास,मोहन सिंह,उदय प्रताप सिंह,रजनीकांत वर्मा,राजेन्द्र चौधरी,आजम खां जैसे व्यक्तित्व शामिल रहे। इन्ही साथियों के साथ नेता जी मुलायम सिंह यादव ने बतौर मुख्यमंत्री अपने तीन कार्यकाल में लोहिया के अनेक सपनों को पूरा करने की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य किया।

समाजवादी लक्ष्यों को पूरा करने की जिम्मेदारी महसूस करते हुए एक दशक पूर्व जब समाजवादी आंदोलन के युवा नेतृत्वकर्ता अखिलेश यादव ने जमीनी राजनीति शुरू किया,उन्होंने इसके लिए सबसे पहले नौजवानों को संगठित करने का प्रयास किया।जिसमें वे सफल भी हुए।उन्हें लोहिया को देखने और सुनने का अवसर तो नही मिला लेकिन दिल्ली में संसद के समीप रेल भवन के बगल राजेन्द्र प्रसाद मार्ग पर छोटे लोहिया जनेश्वर मिश्र के आवास 'लोहिया के लोग' से उन्होंने लोहिया को बखूबी समझा।संसद में रहते हुए जनेश्वर के अतिरिक्त पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर,लोहिया के अत्यंत करीबी इलाहाबाद विश्वविद्यालय के साठ के दशक में प्रभावी छात्रसंघ अध्यक्ष रहते हुए सफल सक्रिय राजनीति करने वाले बृजभूषण तिवारी और मोहन सिंह सहित बीते पाँच दशकों से सूबे में सोशलिस्ट राजनीति के प्रमुख चेहरे बाबू भगवती सिंह का सान्निध्य विचार निर्माण में विशेष प्रभावी रहा।बीते चार से अधिक वर्षों में बतौर मुख्यमंत्री सूबे के सभी जिलों के सोशलिस्ट धारा के लोगों से सहज जुड़ाव अखिलेश यादव को लोहिया की राजनीति के बेहद करीब लाती है।सरकार की नीतियों में भी समाजवादी पेंशन योजना के माध्यम से साठ लाख के करीब गरीब परिवारों को सामाजिक सुरक्षा देने की पहल ही असल समाजवाद है।समाजवादी एम्बुलेंस से जिस प्रकार लोगों को तत्काल चिकित्सकीय सुविधा मुहैया कराने में सक्रियता जारी है,यह लोहिया के सोच के काफी करीब है।

लोहिया हमेशा नौजवानों को राजनीति के लिए प्रेरित करते थे।उनका मानना था कि नौजवानों के पास साबुत दिमाग होता है जिससे समाज के अंतिम व्यक्ति के प्रति भी उसके मन में संवेदना होगी और यही जुड़ाव जितना मजबूत होगा समाज की बदहाली उतनी ही तेजी से दूर होगी।अखिलेश यादव भी इसी रास्ते पर चलते हुए नौजवानों को बेहतर राजनीति के लिए प्रेरित करते हुए दिखाई देते है।तीन दिन पूर्व "लोहिया जनेश्वर के लोग' के नाम से जिस प्रकार जनेश्वर मिश्र ट्रस्ट के रूप में एक केंद्र स्थापित किया है,यह समकालीन राजनीति में सुसुप्त हो रही रचनात्मक पहल/कार्यक्रम/प्रशिक्षण शिविर सहित लोहिया के विचार को फिर से उर्वर करने की पहल के रूप में देखी जा सकती है। ट्रस्ट के उपाध्यक्ष के रूप में समाजवादी सिद्धांत-व्यवहार में समानता रखने वाले खांटी सोशलिस्ट राजेन्द्र चौधरी के होने से राजनीति में फिर से रचनात्मक कार्यक्रमों के प्रभावी होने की उम्मीद बंधती है।जिससे राजनीति से इतर सामाजिक/साहित्यिक/सांस्कृतिक लोगों का लोहिया और उसके बाद की समाजवादी धारा से बना जुड़ाव कायम रह सके।बशर्ते छात्रों-नौजवानों को लोहिया के विचार-सिद्धांत में प्रशिक्षित करने की दिशा गंभीर कार्य होता रहे।

लोहिया के जाने के बाद वर्तमान राजनीति में अब तीसरी पीढ़ी सक्रिय हो गयी है।जिसे अब भी 'जिन्दा कौमें पाँच साल इन्तजार नही करती'नारे से विशेष लगाव है।ऐसे में लोहिया की विचार परंपरा पर कार्य करने वाले उत्तर प्रदेश के मुखिया अखिलेश यादव का लोहिया को लेकर बना हुआ आग्रह आम जनता में लोकतंत्र के प्रति एक आशा बनाये हुए है।मुख्यमंत्री आवास कालिदास मार्ग के बगल नवनिर्मित 'लोहिया द्वार' के आगामी उदघाटन से अखिलेश यादव सत्ता प्रमुख को सदैव लोहिया की नीतियों का स्मरण करते रहने का प्रतीक आम जनमानस में लंबे समय तक बना रहेगा।सच्चे अर्थों में यह द्वार एक श्रद्धांजलि के रूप में लोकतंत्र में जनता के सर्वोपरि वाले नीति और लोहिया के रास्ते पर चलते हुए आम जन में खुशहाली और विकास का रास्ता आसान करने की दिशा दिखलाने के रूप में समझा जा सकता है।जिस रास्ते लोहिया के लोग से लेकर लोहिया-जनेश्वर के लोग होते हुए समाजवादी धारा की अनंत यात्रा गतिमान रहेगी।

मणेन्द्र मिश्रा 'मशाल'
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