युद्ध के बनते-बिगड़ते माहौल में गाँधी की याद : डॉ. मनीष पाण्डेय
जिस समय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव के लिए कार्ल मार्क्स की वैचारिकी से प्रभावित होकर हिंसा और सशस्त्र विद्रोह के साये और सहारे में दुनिया के कई हिस्सों में सत्ता का नया स्वरूप उभर रहा था और साम्राज्यवाद के साथ पूंजीवाद के खेल में विश्व युद्ध की परिस्थितियाँ अपने चरम पर थीं, लगभग उसी दौरान गुलामी की पीड़ा और शोषण से जर्जर हो चुके भारत में नस्लीय भेदभाव से बार-बार अपमानित हुए महात्मा गाँधी बढ़ते साम्प्रदायिक विद्वेष के मनोभाव के बीच मिथकों के संदर्भ और भविष्य की दृष्टि से एक काल्पनिक राम राज्य की कल्पना का साहस करते हैं, जहाँ अहिंसा और मानवमात्र के कल्याण का दृढ़ आग्रह है| हालांकि हमेशा से महात्मा गाँधी के विचारों की व्यावहारिकता और प्रासंगिकता पर सवाल खड़े होते रहे हैं, लेकिन समय के साथ कोई भी अल्पमत विचार बहुसंख्य होकर सामान्य व्यवहार बन जाता है| जिस अहिंसक समाज का अपुष्ट अवशेष सिंधु की सभ्यता में मिलता है, तथागत बुद्ध अपनी करुणा और दया की अकल्पनीय शक्ति से नए युग का सूत्रपात करते हैं, वहीं महात्मा गाँधी तत्कालीन जुल्म और युद्ध के नरसंहार से पीड़ित विश्व और पददलित देश का नागरिक होने के बावजूद सत्य का आग्रह करते हुए अहिंसक समाज का स्वप्न देखते हैं और उस दिशा में 'वन स्टेप इज इनफ़ फॉर मी' की सोंच के साथ कदम बढ़ा देते हैं| समाज की गतिशीलता इसी अनुरूप रही है| दुनियाभर में फैली हिंसा और बर्बरता की तमाम घटनाओं के बाद भी गाँधी के विचार ख़ारिज होने के बजाय दिन ब दिन प्रासंगिक हो रहे हैं तो यह विश्वास पैदा होता है कि, उनका काल्पनिक समाज अस्तित्व में आएगा, यह महज यूटोपिया नहीं है|
हालांकि भारत-पाकिस्तान के बीच चल रही वर्तमान तनातनी के माहौल के बीच अहिंसा की बात अप्रासंगिक और सामान्य आलोचना का कारण हो सकती है, क्योंकि व्यक्ति के विचार का समाज और काल की परिस्थितियों के अनुरूप होना मानव समाज की एक सामान्य विशेषता है| लेकिन, गाँधी के न रहने के लगभग आधी सदी बीत जाने के बाद भी जिस प्रकार मानवता संकट में है और दूसरे समूहों के प्रति बढ़ते वैमनस्य के भाव के बीच ख़ास मनसूबों के साथ चयनित विमर्श हो रहा है, उससे गाँधी का वक्त आने की सीमा लगातार बढ़ती जा रही है| महान भौतिकविद अल्बर्ट आइंस्टीन और इतिहासकर ए एल बाशम के संदर्भ से महात्मा गाँधी समय से बहुत आगे थे, लेकिन इस प्रकार बिगड़ती परिस्थितियों में उस संभावित समय की कल्पना करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है| उत्तर आधुनिक सिद्धांतकार वर्तमान समाज को सूचनाओं के प्रवाह का समाज मानते हैं, जिसको संचार क्रांति ने सर्वसुलभ कर दिया है| इसके एक स्वरूप सोशल मीडिया के माध्यम से सभी के आंतरिक मनोभाव बिना फ़िल्टर हुए सामने आ रहे हैं, जिसके कारण भ्रम और भय के माहौल में व्यक्ति अपना विवेक खो रहा है| यहाँ कई सैद्धांतिक कमियों के बाद भी सिगमंड फ्रायड के समाजीकरण का सिद्धान्त याद आ जाता है, जिसमें व्यक्ति के व्यक्तित्व की स्वाभाविक वासनात्मक अभिव्यक्ति 'इड' समाज के मूल्यों और सरोकारों द्वारा नियंत्रित होकर ईगो और अंततः 'सुपर इगो' के दायरे से होकर अभिव्यक्त होती है| वर्तमान मीडिया समाज ने अपनी प्रविधियों से 'इड' रूपी अदम्य इच्छाओं और सोंच को सार्वजनिक कर दिया है| समाज में बढ़ते छिछलापन और अगंभीरता का नमूना है कि सेना के कैंप में शहीद हुए सैनिकों की सहादत पर तत्काल जितनी तीक्ष्णता से जिम्मेदार शासकों को अपमानित कर कोसा गया उतनी ही और वैसी ही प्रवृत्ति की प्रतिक्रिया पाक अधिकृत कश्मीर में हुए एक सर्जिकल ऑपरेशन के बाद दी गई| पूर देश में अजीब सा युद्ध के उन्माद माहौल बनाया जा रहा है, जिसमें लोग पाकिस्तान के बड़े मानव समूह को रातोरात कुचल देना चाहते हैं| इसपर कोई विमर्श नहीं हो रहा है कि शांति, अहिंसा या फिर गीता में श्री कृष्ण के दिये उपदेशों के अनुरूप युद्ध द्वारा ही किसप्रकार का निराकरण किया जाए ताकि भविष्य की पीढ़ी युद्ध और हिंसा की से मुक्त हो सके| परंतु यहाँ तो सर्जिकल स्ट्राइक को झूठा साबित करने और युद्ध विजेता होने का खेल चल रहा है| ओम थानवी जैसे पत्रकार और जगदीश्वर चतुर्वेदी जैसा अकादमिक व्यक्ति नींद खुलते ही इसे झूठा बोल देते हैं, और उसकी पुष्टि में तथ्यों की खोज में बाद में लगते हैं| ऐसे लोगों की लंबी फ़ेहरिस्त है, जो अपने वैचारिक हठ के अधिनायकत्व में अपने ही तर्क गढ़ते हैं| तमाम विद्वतजन, राजनीतिक दलों के नेता और धार्मिक समुदायों से जुड़े बड़ी संख्या के लोग बगैर इंतजार सारा प्रकरण संदेहास्पद कर देने का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष अभियान छेड़े हुए हैं| इन सबके बीच एक सामान्य व्यक्ति के लिए सत्य की पहचान करना मुश्किल हो जाता है| जब सूचनाएँ इतना भ्रमित करने लगती हैं, तब खतरा बढ़ जाता है| फिर तर्क की जगह लोग जाति, धर्म, समुदाय, वैचारिक निकटता या व्यक्तिगत लाभ-हानि के नजरिए से विवेकहीन झुंड का हिस्सा बनने लगते हैं|